चुनौती अमृतपाल की गिरफ्तारी के बाद की
आपकी नज़र | स्तंभ | हस्तक्षेप | समाचार Editorial on the arrest of Khalistani separatist Amritpal Singh. अमित शाह ने पंजाब सरकार की पीठ थपथपाई है। आप पार्टी ने अपनी सरकार द्वारा वक्त पड़ने पर कड़े कदम उठाने की क्षमता की ओर ध्यान दिलाया है

xr:d:DAFg-neACbQ:5,j:3293373762,t:23042402
खालिस्तानी अलगाववादी अमृतपाल सिंह की गिरफ़्तारी पर देशबन्धु का संपादकीय
खालिस्तान की मांग करने वाले 'वारिस पंजाब दे' नामक संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह की रविवार की सुबह गिरफ़्तारी (Khalistani separatist Amritpal Singh arrested) के बाद साम्प्रदायिक सद्भाव और शांति बनाये रखने की जिम्मेदारी पंजाब व केन्द्र सरकार के साथ-साथ नागरिकों की है। आशा की जाये कि इस अलगाववादी नेता की गिरफ्तारी को राजनैतिक मुद्दा नहीं बनाया जायेगा।
10 मामले दर्ज हैं अमृतपाल सिंह पर
पंजाब के मोगा के रोड़ेवाल गुरुद्वारे के बाहर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के अंतर्गत अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार कर उसे डिब्रूगढ़ (असम) जेल ले जाया गया। खालिस्तान की मांग (demand for khalistan) करने के अलावा एक थाने पर हमला करने और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह को जान से मारने की धमकी सहित 10 मामले हैं। पिछले 36 दिनों से वह फरार था।
भिंडरावाले के गांव जा पहुंचा अमृतपाल
रोड़ेवाला जरनैल सिंह भिंडरावाले का गांव है जहां के गुरुद्वारे में अमृतपाल शनिवार की रात आ गया था। गुरुद्वारे की पवित्रता का ख्याल रखते हुए पुलिस ने उसमें प्रवेश नहीं किया वरन गांव को घेरकर धार्मिक स्थल के बाहर उसे हिरासत में लिया। राज्य भर में हाई एलर्ट जारी किया गया है तथा उन धर्मस्थलों पर विशेष तैनाती है जिनका सम्बन्ध खालिस्तान आंदोलन से किसी भी प्रकार से रहा है। पुलिस ने अफवाहों पर ध्यान न देने की बात कही है।
अमित शाह ने पंजाब सरकार की पीठ थपथपाई है। आप पार्टी ने अपनी सरकार द्वारा वक्त पड़ने पर कड़े कदम उठाने की क्षमता की ओर ध्यान दिलाया है तो कांग्रेस ने इस बात की जांच की मांग की है कि अमृतपाल को भागने में किसने मदद की।
संवेदनशील राज्य क्यों है पंजाब?
पाकिस्तान से सटे होने के कारण पंजाब संवेदनशील तो है ही, यही राज्य खालिस्तान आंदोलन का केन्द्र भी रहा था जिसके चलते दो कौमों के बीच का भाई-चारा बिगड़ा था। 1980 के आसपास जरनैल सिंह भिंडरावाले की अगुवाई में यह मांग इस तरह से उठी थी कि उसने पंजाब में सदियों से रहते आये हिन्दुओं व सिखों को बांट दिया था। बड़ी संख्या में निर्दोषों ने अपनी जानें गंवाई थीं। 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star of 1984) भी इसी आंदोलन की देन थी जिसमें भारतीय सेना को सिखों की श्रद्धा के सबसे बड़े केन्द्र स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करना पड़ा था। इस सैन्य कार्रवाई ने देश की बहादुर व देशभक्त कौम को ऐसा आहत किया था कि उसकी परिणति तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या से हुई थी। यह रक्तरंजित कहानी यहीं पर नहीं ठहरी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ पूरे देश में दंगे भड़क गये थे जिनमें बड़ी संख्या में निर्दोष सिखों के प्राण गये थे और उनकी सम्पत्तियों को नुकसान हुआ था।
तत्पश्चात प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने सूझ-बूझपूर्ण तरीके से ऐतिहासिक लोंगोवाल शांति समझौता कर शांति की ओर कदम बढ़ाया था। इसके बाद हिन्दुओं व सिखों ने एक दूसरे को सम्भाला और हिंसा व नफरत की धधकती आग ठंडी पड़ गई। खालिस्तान आंदोलन के कारण पंजाब जो आर्थिक मोर्चे पर पिछड़ चला था, उसने अपनी खोई हुई लय को फिर से पाया। 2004 में कांग्रेस को जब सरकार बनाने का मौका मिला तो उसने डॉ. मनमोहन सिंह को दो बार (2009 में भी) प्रधानमंत्री बनाकर सिखों की नाराजगी को पूरी तरह से दूर कर दिया था। यह अलग बात है कि दंगों में दोषी अनेक कांग्रेसी नेताओं के लिये उनकी नाराजगी बनी रही तथा कई दंगा पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया। इसके बावजूद यह सही है कि हिन्दुओं और सिखों के रोटी-बेटी के सम्बन्ध पूर्ववत हो गये हैं।
आप सरकार बनने के बाद पंजाब में बढ़ा पृथकतावादी आंदोलन
2017 में पंजाब में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी पर उसकी भीतरी उठा-पटक के चलते और कुछ दोषपूर्ण सांगठनिक फैसलों के कारण उसकी सरकार 2022 के विधानसभा चुनाव में चली गयी। तब तक दिल्ली में सिमटी रही आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनी। तभी से यह आशंका बलवती थी कि सीमित अनुभवों वाली ऐसी पार्टी की सरकार द्वारा ऐसे संवेदनशील सूबे को सम्भालना मुश्किल होगा। उसके राजनैतिक चरित्र को देखते हुए भी ऐसा माना जा रहा था। जो आशंकाएं व्यक्त की जाती थीं, उनमें इस पृथकतावादी आंदोलन के फिर से सिर उठाने की बात भी थी।
फिलहाल तो पंजाब से किसी अप्रिय घटना के समाचार नहीं हैं जो कि अच्छी बात है। अलबत्ता बठिंडा में पुलिस का फ्लैग मार्च हुआ जहां से अमृतपाल को डिब्रूगढ़ एयरलिफ्ट किया गया। प्रदेश में कुछ जगह इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। जो भी हो, उम्मीद की जानी चाहिये कि इस गिरफ्तारी से साम्प्रदायिक सद्भाव को खतरा नहीं होगा और खालिस्तान के मसले का हल सभी मिल-जुलकर निकालेंगे क्योंकि यही सामाजिक शांति और देश के हित में है। यही प्रमुख चुनौती भी है।
(Editorial on the arrest of Khalistani separatist Amritpal Singh)
(किंचित् संपादन के साथ देशबन्धु का आज का संपादकीय साभार)


