चोट सही जगह कीजिए. इरा सिंघल को आसान शिकार न बनाइये !!!
चोट सही जगह कीजिए. इरा सिंघल को आसान शिकार न बनाइये !!!
वरिष्ठ पत्रकार सुशील उपाध्याय की टिप्पणी "तैयारी में जो किताबें काम में आईं, वे सब तो फेंक दीं इरा सिंघल ने !" के बहाने अच्छी बहस छिड़ी है। इस लेख पर संध्या नवोदिता की टिप्पणी तीन किस्तों में प्राप्त हुई है, तीनों टिप्पणियों का संपादित रूप यहां प्रस्तुत है।... आप भी इस बहस में हिस्सा ले सकते हैं...
सं.- हस्तक्षेप
अधिकाँश हिंदी अखबार वैचारिक दिवालियेपन का शिकार हैं
मैं इस लेख "तैयारी में जो किताबें काम में आईं, वे सब तो फेंक दीं इरा सिंघल ने !" से सहमत नहीं हूँ. मैंने इस लेख को पढ़ने के बाद इरा का साक्षात्कार देखा. इरा बहुत ही सहज, आत्मविश्वासी, सरल लगीं. उन्होंने रवीश के सवालों का बहुत संतुलित जवाब दिया. उनका चयन तीन बार आई आर एस में हुआ था पर फिजिकली चैलेंज्ड होने के कारण वे केवल आई ए एस ही ज्वाइन कर सकती थीं.
चौथी बार इरा ने पूरे मनोयोग से जब यह परीक्षा दी तो परिक्षा देने के बाद वे अपने चयन को लेकर बहुत आश्वस्त थीं, रवीश के सवाल के जवाब में इरा ने कहा किसी भी परीक्षा को जीवन मरण का सवाल नहीं बनाया जा सकता . अगर पूरी मेहनत के बाद आई ए एस नहीं मिलता तो ज़िन्दगी खत्म नहीं होनी थी. मैं कुछ और भी करने के लिए मन बना चुकी थी.
हाँ, रवीश का लंगड़ा, अपाहिज वगैरह कहने की जगह और समय खलने वाली बात लगी. यह सब उस इरा सिंघल के सामने नहीं कहना चाहिए जो कहती है कि मैंने खुद को कभी चुनौती नहीं माना. मैं यह सोचती थी कि सभी के पास तो समस्या है . किसी की दीखती है किसी की नहीं दीखती. बहु लोग ऐसे हैं जिनके पास माँ, बाप नहीं हैं, पढ़ाई के मौके नहीं हैं, ज़िन्दगी में स्नेह नहीं है. मेरे पास तो सभी कुछ रहा है.
किताबें फेंकना और ज्योतिष वाली बात को आप गलत सन्दर्भों में प्रस्तुत कर रहे हैं.
आप क्या यह मानते हैं कि आई ए एस क्रान्ति करने के लिए पैदा होते हैं और आई ए एस क्रांतिकारियों के चुनाव की संस्था है ??
आई ए एस इसी व्यवस्था को न सिर्फ बनाये रखने बल्कि और मज़बूत करने और विश्वास बहाल करने का टूल हैं.
अगर आपको ज्योतिष पर आपत्ति है तो लोक सेवा आयोग को कटघरे में खड़ा कीजिए. अब तक के टापर्स के बारे में पता कीजिये वे ज्योतिष में भरोसा रखते थे या नहीं, कितनी अंगूठियाँ पहनते थे, कितने अनुष्ठान कराते थे? कितनो ने भारी भरकम दहेज़ लेकर शादियाँ की?? कितनों ने अकूत संपत्ति के महल खड़़े किये? उनका सेलेक्शन लोक सेवा आयोग ने कैसे किया?? खुद लोक सेवा आयोग के सदस्यों का ज्योतिष ज्ञान पता कीजिए. उनमे अधिकाँश पूजा पाठी और ज्योतिष को मानने वाले क्यों हैं.??
आप को सवाल उठाना है तो ब्रिटिश पीरियड से जस की तस चली आ रही इस सिविल सेवा परीक्षा के नियमों पर सवाल उठाइये.
आई ए एस ट्रेनिंग पर सवाल उठाइये जो जनता के पैसों से ही असंवेदन शील और बहुत बार भ्रष्ट और जनता का खून पीने वाले अधिकारियों की फ़ौज तैयार करती है.
सवाल सही उठाइये, चोट सही जगह कीजिए. इरा सिंघल को आसान शिकार न बनाइये !!!
बल्कि इरा से यह सीखना चाहिए कि मुश्किल लक्ष्य भी कैसे हासिल किये जाते हैं. थोड़ी मेहनत कीजिए और आई ए एस की सडांध भरी और जनता के खिलाफ खड़ी पूरी व्यवस्था को विश्लेषण कीजिए.
मैं खुद आई ए एस व्यवस्था से सहमत नहीं हूँ, पर इसका अर्थ इरा सिंघल पर तोहमतें मढ़ना नहीं है. हमारे समाज में जो सिखाया और पढ़ाया जा रहा है और नौजवानों को सपने दिखाए जा रहे हैं उसके लिए अभी इरा सिंघल को ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता.
हमारे देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था, विषय , पठन सामग्री, पठन पाठन तरीके , छत्तीस तरह की हायरार्की वाली शिक्षा व्यवस्था, गरीबों, महिलाओं, फिजिकली चैलेंज्ड लोगों के लिए संवेदन हीन और क्रूर सामाजिक व्यवस्था.......
इन सब पर बात की जाए तो शायद हम इस परीक्षा के सत्ता गामी मूल चरित्र को विश्लेषित कर पायें.
और आप हिन्दी अखबार न पढ़ने वाली बात बता रहे हैं, कौन सा सिविल सेवा का प्रतियोगी हिन्दी अखबार पढ़ कर अपना ज्ञान या विश्लेषण पुख्ता करता है??
यह भी छोड़िये, आप ही बता दें कौन सा हिन्दी अखबार है जिसे सिविल प्रतियोगियों को आपके हिसाब से पढ़ना चाहिए, जिससे ज्ञान बढ़़े ??
अधिकाँश हिंदी अखबार वैचारिक दिवालियेपन का शिकार हैं. छः से आठ पन्ने की स्थानीय अपराध कथाएं चटखारे लेकर छापते हैं. बाकी जगह में घटिया और भ्रामक विज्ञापन. खैर यह एक अलग विषय है. लेकिन इतना तो कहना पड़ेगा कि आज बहुत सारी सही ख़बरों के लिए हिन्दी वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर निर्भरता बढ़ी है.
लेखक महोदय सिविल परीक्षकों से जाने क्या उम्मीद पाले बैठे हैं? या फिर उनको इरा सिंघल से ही कुछ क्रान्तिकारी उम्मीदें हैं जो इंटरव्यू देखकर नाउम्मीद हो गये.
वैसे इस लेख में बहुत कुंठित नजरिया है.
— संध्या नवोदिता


