छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी बातें
जुगनू शारदेय
दुनिया जैसे जैसे छोटी होती जा रही है , वैसे वैसे हम छोटी छोटी बातों को नजर अंदाज कर रहे हैं । छोटी दुनिया बड़े बड़े सपने दिखा रही है । कुछसपने तो हमारे देश में लगभग खानदानी है । इस खानदानी के चक्कर में हमारे खानदानी शहर हाथी होते जा रहे हैं । हाथी में भी उस पुरानी बात जैसी कि हाथी के दांत दिखाने के और होते हैं और खाने का कुछ और । जैसे खानदानी शहर लखनऊ पत्थर का हाथी होता जा रहा है । असली हाथी के लिए जंगल में जगह नहीं है । उसका बसाहट दिन ब दिन सिकुड़ता हुआ जयराम रमेश का बयान होता जा रहा है ।
कभी सपनों का शहर , कभी नहीं हमारे असली से पुराने आका अंग्रेजों की मेहरबानी से – समुद्र किनारे होने की वजह से कल – कारखाने और धंधों का शहर बांबे हो गया । लेकिन जब से यह मुंबई हुआ तब से यह थंबई भी हो गया । मराठी भाषा में थांबा का मतलब रुकना होता है । लगातार चलती हुई मुंबई रुकी हुई है । लगता है कि यहां सिर्फ दिखावटी पैसा बह रहा है । पैसा का असली काम ही बहना है । करीब करीब पुरानी बात जेसी कि बहता पानी निर्मला । वैसे ही बहता धन कुछ कुछ काला हो जाता है । कहावत अब यादों में है गोल गोल चांदी का रुपैया । चांदी का रुपैया शगुन की चीज हो गई है और रुपया महान गांधी की तसवीर के साथ रंगीन हो गया है ।
रंगीन चीज बड़ी हसीन होती है । राष्ट्र के इकलौते महाराष्ट्र में सचिवालय नहीं मंत्रालय होता है । एक थंबईया अंग्रेजी अखबार की खबर है कि वहां के
एंटी करप्शन ब्यूरो ने पंद्रह सालों में मंत्रालय में भ्रष्टाचार रोकने या पकड़ने के लिए पंद्रह छापे मारे हैं । सबसे बड़ा या छोटा सरकारी लेखक कहता है कि नियुक्ति पत्र देने का उसका रेट तो 40 हजार रुपए हैं , पर माननीय विधायक की पैरवी और मारपीट के बाद डिस्काउंट रेट 20 हजार रुपए है । बिहार में तो कभी मंत्री 5 हजार रुपए में ही काम कर दिया करते थे । अब इस महंगाई और निर्वहन कुमार की कड़ाई के बाद भाव बढ़ा दिया हो तो सबको पता
होता है निर्वहन कुमार को छोड़कर । फिर भी निर्वहन कुमार को प्रसन्न होना चाहिए कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे अपनी गिनिस बुक जैसी हड़ताल के साथ दावा कर दिया है कि महाराष्ट्र की हालत बिहार से भी खराब है । अब तक बिहार की तारीफ विदेशी लपुझन्ने ही करते थे – अब अन्ना हजारे का भी प्रमाण पत्र मिल गया है ।
देश में एक प्रधानमंत्री तो प्रसाधन की चीज हैं । एक बिना प्रसाधन के काम की चीज मानें जाते हैं । बड़े पुराने वित्त मंत्री हैं । अभी भी वित्त मंत्री ही हैं । साथ साथ सरकार और कांग्रेस पार्टी के संकटमोचक भी कहे जाते हैं । वह नहीं बताते कि काला धन किसका है । अपना हाथी का दिखाने वाला दांत दिखाते हैं । जी हम नाम नहीं बताएंगे , ऐसा हमारा वादा है किसी विदेशी देश के प्यारे बैंक से । लेकिन मुकदमा चलेगा तो नाम पता चल जाएगा । कमाल है कि नाम जहां सुप्रीम कोर्ट में पेश है, वहां से तहलका को मिल जाता है । उसके सौजन्य से अखबार में छप जाता है । पर वित्त मंत्री नहीं बताएंगे । अब क्या किसी को बताने की जरूरत हैं कि सुप्रीम कोर्ट का सरकारी गोपनीय दस्तावेज कैसे अखबार में छप जाता है । पेड न्यूज पर बड़ी
चर्चा हो गई कि अब किसी को याद भी नहीं । प्लांटेड न्यूज पर कोई बहस नहीं होती ।
यह सब छोटी छोटी बातें हैं । इन्ही बातों से हमारा देश चलते हुए रुका रहता है । जब रुका होता है तो चलती रहती हैं छोटी छोटी बातें ।


