जनतन्त्र पर जनता का नियंत्रण नहीं है इसे मानवीय बनाने की जरूरत- खगेन्द्र ठाकुर
जनतन्त्र पर जनता का नियंत्रण नहीं है इसे मानवीय बनाने की जरूरत- खगेन्द्र ठाकुर
आप अपने लिये लड़ते हैं तभी हारते हैं- डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी
विचार की भूमि से ही विचार पैदा होता है- शशिशेखर, प्रधान संपादक ’हिन्दुस्तान’
एक समय प्रतिस्पर्द्धा थी कौन कितना त्याग करता है और आज कौन कितना संचय करता है- सुधांशु रंजन, दूरदर्शन
मुर्दों को जगाने का काम कबीर कर रहे थे- संजय श्रीवास्तव, प्रलेस महासचिव उप्र.
साहित्यकारों ने किया दिनकर की मिट्टी को नमन ! दो दिवसीय साहित्यिक समागम सम्पन्न
बेगूसराय, 26-27 फरवरी। आप अपने लिये लड़ते हैं तभी हारते हैं। सही जगह पहुँचने के लिये सही घोड़ा औए ठीक सवार भी चाहिए। जो लोभी होगा वह निडर कैसे हो सकता है? जो लोग संस्कृति की बात करते हैं कभी उन्होंने- नरहरि दास, मीरा, कबीर, सूर व तुलसी का नाम नही लिया..।
यह विचार विप्लवी पुस्तकालय, गोदरगावाँ के 84 वाँ वार्षिकोत्सव में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने व्यक्त किये। वे ’आजादी के दीवानों के स्वप्न और वर्तमान भारत’ विषय पर आयोजित आमसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि क्या अंबानी को जरूरत है समाजवाद की..? शरीर का एक अंग विकसित हो तो वह तरक्की नहीं कैंसर है। हमने सपने बदल दिये हैं। इसमें अमीर अपने ख्वाहिश पूरा कर लेता है लेकिन गरीब बेरोजगार की फ़ौज बिकने के लिये तैयार है... बाबरी मस्जिद तुड़वा लीजिए या दंगा करवाइये..।
विषय प्रवेश करते हुये दूरदर्शन के एंकर सुधांशु रंजन ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भारतीय परम्परा के पौराणिक ऐतिहासिक उदाहरणों को श्रोताओं के समक्ष रखा। उन्होंने कहा कि न्यायोचित समाज का निर्माण करना देश के लिये सबसे बड़ी चुनौती है। हमारे यहाँ नेता सत्ता का मोह नहीं छोड़ते। एक समय प्रतिस्पर्द्धा थी कि कौन कितना त्याग करता है और आज कि कौन कितना संचय करता है.. एक तरह का विश्वासघात है उन शहीदों के साथ..।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के प्राध्यापक प्रो. वेदप्रकाश ने कहा कि भगत सिंह क्रान्तिकारी के साथ प्रखर बुद्धिजीवी भी थे। पुस्तकालय कैसे क्रान्ति का केंद्र बन सकता है यह भी भगत सिंह ने सिखाया। इंकलाब निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है..।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस गांधी के विकल्प बन गये थे। प्रेमचंद की एक नारी पात्र कहती है कि जान की जगह गोविन्द को बैठाने से क्या होगा... चेहरा बदलने से क्या होगा..? उन्होंने आगे कहा कि जनतन्त्र सिमटता जा रहा है, जिसके पास खाने-पीने का साधन नहीं है उसके लिये कौन सा जनतन्त्र है... जनतन्त्र पर जनता का नियंत्रण नहीं है.. इस जनतन्त्र को मानवीय बनाने की जरूरत है ।
उप्र प्रलेस के महासचिव डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि देश में सांप्रदायिकता की खेती की जा रही है.. चाय की चुस्कियों के साथ !
बिहार प्रलेस महासचिव राजेन्द्र राजन ने कहा कि युवा पीढ़ी में आधुनिकता और करोड़पति, अरबपति बनने की होड़ लगी है, एक तरफ़ इनके ठाट-बाट हैं तो दूसरी ओर भूख, अभाव, शिक्षा आवास व सुरक्षा के लिये तरसते लोग। युवाशक्ति की ऊर्जा क्षीण हो रही है.. हम किस हिन्दुस्तान को बनाना चाहते हैं..? एक नई किस्म की राजनीति चल रही है.. कुर्सी की राजनीति, समाज को मानवीय बनाने के लिये सपने देखने की जरूरत है।
समारोह का यादगार लमहा प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रवीर गुहा द्वारा निर्देशित व रवीन्द्रनाथ टैगोर लिखित नाटक ’विशाद काल’ का मंचन एवं दिनकर शर्मा द्वारा प्रेमचंद की कहानी का एकल मंचन भी महत्वपूर्ण रहा।
समारोह के दूसरे दिन 27 फ़रवरी को चन्द्र्शेखर आजाद (शहादत दिवस) के सम्मान में आयोजित संगोष्ठी के मुख्य वक्ता दैनिक ’हिन्दुस्तान’ के प्रधान संपादक शशिशेखर (नई दिल्ली) थे। उन्होंने ’लोक जागरण की भारतीय संस्कृति और कट्टरता के खतरे’ पर विचार व्यक्त करते हुये कहा कि विचार की भूमि से ही विचार पैदा होता है। क्या कारण था कि 1947 से पहले स्कूलों में अलख जगा करता था। हम आसानी से एक एक हो जाते थे। आज वैसी सोच नहीं है। हमने उस आइने को छिपा दिया है जिसे कन्फ़्युशियस पास रखते थे। यह आईना हमें हमारी जिम्मेवारी का एहसास कराता है। उन्होंने कहा कि सवालों के हल शब्दों से नहीं कर्म से होता है।
इस सत्र के प्रथम वक्ता प्रो. वेदप्रकाश ने कहा कि लोक जागरण भारत कि विरासत रही है। आत्म जागरण का मतलब आत्म कल्याण के साथ-साथ जन कल्याण भी होना चाहिए।
डॉ. संजय श्रीवास्तव ने संगोष्ठी के वैचारिक विमर्श को आगे बढ़ाते हुये कहा कि लोक जागरण का अग्रदूत कबीर से बड़ा कोई नहीं हुआ। मुर्दे को जगाने का काम कबीर कर रहे थे। बुद्धकाल को लोक जागरण नहीं मानना हमारी बड़ी भूल होगी। हम आज भी कबीर के सहारे खड़े हैं। हमें आज कबीर की जरूरत है।
इस सत्र में डॉ. विशनाथ त्रिपाठी, सुधांशु रंजन ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता जीडी कालेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. बोढ़न प्रसाद सिंह ने की। कार्यक्रम में उमेश कुवंर रचित पुस्तक ’भारत में शिक्षा की दशा व दिशा’ का लोकार्पण भी किया गया।
समारोह में दैनिक ’हिन्दुस्तान’ के प्रधान संपादक शशिशेखर ने स्कूली बच्चों को सम्मानित किया। इस अवसर पर ’हिन्दुस्तान’ के वरीय स्थानीय संपादक डॉ. तीरविजय सिंह, विनोद बंधु सहित अतिथि एवं स्थानीय साहित्यकार मौजूद थे। हजारों दर्शक व श्रोंताओं साथ भाकपा राज्य सचिव राजेन्द्र सिंह, रमेश प्रसाद सिंह, नरेन्द्र कुमार सिंह, धीरज कुमार, आनंद प्र.सिंह, सर्वेश कुमार, डॉ. एस. पंडित, डॉ. अशोक कुमार गुप्ता, सीताराम सिंह, चन्द्रप्रकाश शर्मा बादल, दीनानाथ सुमित्र, सीताराम सिंह, अनिल पतंग, दिनकर शर्मा, वंदन कुमार वर्मा, अमित रौशन, परवेज युसूफ, आनंद प्रसाद सिंह, मनोरंजन विप्लवी, अरविन्द श्रीवास्तव आदि की उपस्थिति ने आयोजन को यादगार बना दिया। (गोदरगावाँ, बेगूसराय से अरविन्द श्रीवास्तव की रिपोर्ट)


