जनता को देशप्रेम का सर्टिफिकेट किसी से नहीं चाहिए
जनता को देशप्रेम का सर्टिफिकेट किसी से नहीं चाहिए
जनता को देशप्रेम का सर्टिफिकेट किसी से नहीं चाहिए
DB LIVE | 5 Dec 2016 | GHUMTA HUA AINA | CURRENT AFFAIRS | RAJEEV RANJAN SRIVASTAVA
हिंदुस्तान को आजाद हुए सत्तर साल हो गए।
इन सात दशकों में देश निर्माण के ढेरों काम हुए और विश्व में भारत की अलग पहचान बनी।
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा, यह केवल गीत की पंक्ति नहीं है, बल्कि इसमें भारत की आत्मा, भारत के विचार के दर्शन होते हैं।
सचमुच हिंदुस्तान जैसा कोई मुल्क दुनिया में शायद ही हो, जहां तमाम दुश्वारियों के बावजूद जनता सुनहरे भविषय के लिए उम्मीदें बांधे रहती है।
भारत को आगे बढ़ाने में इस आम जनता का ही सबसे बड़ा योगदान है, जो तरह-तरह की विसंगतियों के बावजूद अपने देश से प्रेम करती है और चुपचाप अपने काम में लगी रहती है। उसे देशप्रेम का सर्टिफिकेट किसी से नहीं चाहिए, न ही वह इसके बदले कुछ चाहती है। लेकिन अब जमाना ऐसा आ गया है कि देशभक्ति भी प्रमाणित किए जाने की मोहताज हो गई है।
आप सरकार के खिलाफ कुछ बोलें तो देश के विरोधी हो जाते हैं। आप सुबह-शाम देशप्रेम के नारे न लगाएं तो देशविरोधी हो जाते हैं।
देशप्रेम प्रदर्शन की वस्तु नहीं है, लेकिन शो बाजी के इस जमाने में अब यही चलन हो गया है।
राष्ट्रगान के रचयिता, कविकुलगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था- देशप्रेम हमारा आखिरी आध्यात्मिक सहारा नहीं बन सकता। मेरा आश्रय मानवता है, मैं हीरे के दाम में ग्लास नहीं खरीदूंगा और जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशप्रेम की जीत नहीं होने दूंगा।
यानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर मानवता को सबसे ऊपर रखते थे। लेकिन आज के हिंदुस्तान में मानवता अंधी गलियों में भटकती रास्ता तलाश रही है और राष्ट्रभक्ति संसद की ड्योढ़ी पर माथा रखकर प्रदर्शित की जा रही है।
संसद तक तो खैर निर्वाचित राजनेता ही पहुंचते हैं, लेकिन जनता उस जगह अपनी राष्ट्रभक्ति प्रदर्शित कर सकती है, जहां फिल्में प्रदर्शित होती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय लिया है कि अब सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाया जाएगा।
देखें - देशबन्धु समाचारपत्र समूह के समूह संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव का विशेष साप्ताहिक कार्यक्रम घूमता हुआ आईना


