जनादेश हिटलर को भी मिला था और कोई जनादेश अंतिम निर्णायक नहीं होता
जनादेश हिटलर को भी मिला था और कोई जनादेश अंतिम निर्णायक नहीं होता
हमें जनजागरण का इंतजार है। चूंकि जनादेश हिटलर को भी मिला था और कोई जनादेश अंतिम निर्णायक नहीं होता।
We, the apolitical activists of creativity from 150 nations stand United Rock solid to sustain Humanity and nature!
दुनियाभर के लेखकों,कलाकारों,कवियों को मेहनतकश जनता का लाल सलाम।
बहुजन समाज का नील सलाम!
हमें जनजागरण का इंतजार है। चूंकि जनादेश हिटलर को भी मिला था और कोई जनादेश अंतिम निर्णायक नहीं होता। मनुष्यता हर हाल में जीतती है और फासिज्म हर हाल में हारता है। भारत में भी हारने लगा है फासिज्म क्योंकि मनुष्यता की रीढ़ सीधी है फिर।
हमें मूक वधिर जनगण, भेढ़ धंसान में तब्दील लोकतंत्र के पंजाब के अग्निपाखी की तरह जागने का इंतजार है। विश्वभर में मनुष्यता फासीवाद के खिलाफ लामबंद हो रही है कायनात की रहमतें बरकतें नियामतें बहाल रखने के लिए।
हमें जनजागरण का इंतजार है। चूंकि जनादेश हिटलर को भी मिला था और कोई जनादेश अंतिम निर्णायक नहीं होता।
मनुष्यता हर हाल में जीतती है और फासिज्म हर हाल में हारता है।
भारत में भी हारने लगा है फासिज्म क्योंकि मनुष्यता की रीढ़ सीधी है फिर।
हमें अपने दोस्त दुश्मन उदय प्रकाश, हिंदी के कवि की इस पहल पर गर्व है। 1976 से जिस राजा का बाजा बजा के कवि मनमोहन को जानता हूं, हमारे आदरणीय काशीनाथ सिंह, हमारे बड़े भाई डूब में तब्दील टिहरी के कवि मंगलेश डबराल, जेएनयू से मित्र प्रोफेसर चमनलाल, मध्यप्रदेश के कवि राजेश जोशी, कर्नाटक की वह सत्रह साल की लड़की, कोलकाता पुस्तक मेले में 2003 में मिली मंदाक्रांता सेन से लेकर कृष्णा सोबती, मृदुला गर्व सभी ने पुरस्कार और सम्मान लौटा दिये हैं। यह अभूतपूर्व है।
नवारुण दा और वीरेन दा होते तो वे भी लौटा देते।
हमें उम्मीद है कि हमारी महाश्वेता दी, गिरिराज किशोर, गिरीश कर्नाड, जावेद अख्तर से लेकर अमिताभ बच्चन और रजनीकांत भी औऱ आखिरकार बंगाल के संस्कृतिकर्मी भी हर हाल में मनुष्यता और प्रकृति के पक्ष में मेहनकशों और बहुजन समाज, छोटे मध्यम कारोबारियों के हक में,भारतीय उद्योग धंधे के हक में फासिज्म के राजकाज के खिलाफ मूक वधिर भारतीय जनता की आवाज बनकर हमारे कारवां में शामिल होंगे।
साझा चूल्हा जो अब भी जल रहा है, जैसा सविता बाबू का कहना है कि साझा चूल्हा सरहदों के आर पार सुलग रहा है, उसे अब घर घर में जलाना है।
उनका मिशन: The Economics of Making in!
उनका मिशन:The institution of the religious partition and the Politics of religion
उनका मिशन: the strategy and strategic marketing of blind nationalism based in religious identity!
मृत मनुष्यता,समाज और सभ्यता की देह में प्राण फूंकना हमारा एजंडा है नरसंहार संस्कृति और नस्ली रंगभेद के इस फासीवाद के खिलाफ,जो भारत में सात सौ साल के इस्लामी शासन और दो सौ साल के अंग्रेजी हुकूमत के बावजूद जीवित सनातन हिंदू धर्म के लोकतंत्र,उसकी आत्मा और उसके मूल्यबोध, नैतिकता, आदर्श और स्थाईभाव विश्वबंधुत्व की हत्या कर रहा है।
संविधान की हत्या कर रहा है।
देश को मृत्यु उपत्यका, गैस चैंबर बना रहा है।
हमारा एजंडा मनुष्यता और कायनात का एजंडा है उनके आर्थिक सुधारों के वधस्थल के विरुद्ध,उनकी मजहबी सियासत के विरुद्ध, उनकी बेइंतहा नफरत के खिलाफ हम मुहब्बत के लड़ाके हैं।
हम खेतों,खलिहानों,कारखानों को आवाज लगा रहे हैं।
हमने हस्तक्षेप को हर बोली हर भाषा में जनसुनवाई का मंच बनाया है। हम फतवों के खिलाफ हैं।
हम नरसंहार संस्कृति और बलात्कारसंस्कृति के खिलाफ देश दुनिया जोड़ने की मुहिम चला रहे हैं।
जिसे घर फूंकना है आपणा इस दुनिया को हमारे बच्चों की खातिर बेहतर बनाने के लिए,वे हमारे कारंवा में शामिल हो।
हस्तक्षेप पर आपके हस्तक्षेप का इंतजार है।


