‘नो मार्क्स’ स्टाइल का जन लोकपाल
जन लोकपाल - रामलीला मैदान में अन्नालीला
अन्ना नाटक का फायनल एपीसोड अब अपने चरम पर है। 16 अगस्त की सुबह अन्ना और उनकी टीम की गिरफ्तारी के बाद पूरे देश में जबर्दस्त तनाव पैदा करने की कोशिशें की गईं। तथाकथित सिविल सोसायटी के असामाजिक तत्वों ने खुलकर दिल्ली की सड़कों पर अपनी असलियत जाहिर की। इंटरनेट पर अन्ना समर्थकों ने जमकर गाली-गलौच की। इतना ही नहीं 16 की शाम को जिस तरह से प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता अन्ना के समर्थन में खुलकर दिल्ली की सड़कों पर उतरे उससे कांग्रेसी प्रवक्ताओं के ये आरोप सच साबित हुए कि अन्ना के पीछे आरएसएस का हाथ है। अब यह आरोप और भी पुष्ट हो गया जब यह सुना गया कि अन्ना का बिल सांप्रदायिकता की आग भड़काने वाले वरूण फिरोज गांधी संसद में पेश करेंगे।
देश में एक अजब किस्म का माहौल पैदा किया जा रहा है। हमारा पूंजीवादी मीडिया और सुबह शाम जमकर भ्रष्टाचार करने वाला उच्च मध्य वर्ग यह धारणा बनाने पर लगा हुआ है कि अगर आप अन्ना हजारे के जनलोकपाल से असहमत हैं तो भ्रष्ट हैं। हांलांकि अन्ना बेचारे को भी यह बात ठीक से नहीं मालूम है कि जनलोकपाल क्या है और लोकपाल क्या है। सही बात तो यह है कि अन्ना मंडली ने जनलोकपाल का असली ड्राफ्ट अंग्रेजी में तैयार किया है उसे खुद अन्ना कायदे से समझ ही नहीं पाए हैं।
यहां यह साफ करना जरूरी है कि हमारा न अन्ना से और न उनकी टीम से कोई व्यक्तिगत मतभेद है और न अन्ना के विरोध में होने का मतलब कांग्रेसी होना व भ्रष्टाचार का समर्थक होना है। भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी है, टीम अन्ना नहीं। इसलिए एक आम भारतीय नागरिक के दिमाग़ में जो प्रश्न कौंध रहे हैं उनका उत्तर तो टीम अन्ना को देना ही होगा। आखिर स्वतंत्रता दिवस का बहिष्कार करने वाले हुर्रियत कांफ्रेंस अगर देशद्रोही हैं तो इस देश के लोकतंत्र, संविधान को कोसने वाले और स्वतंत्रता दिवस पर बत्तियां बुझाकर ब्लैक आउट का आव्हान करने वाले कैसे राष्ट्रभक्त हो गए? हां अन्ना को एक बात का क्रेडिट जरूर दिया जाना चाहिए कि बापू के हत्यारे भी अब अनशन की बातें करने लगे हैं।
अन्ना की गिरफ्तारी के बाद अब अन्ना मंडली कह रही है कि यह मूलभूत अधिकारों का हनन है। ऐसी बातें हालांकि अन्ना मंडली के मुख को शोभा नहीं देतीं क्योंकि जिन मूलभूत अधिकारों की दुहाई यह दे रही है वे अधिकार तो उसी लोकतंत्र और संविधान की देन हैं जिसे ये मंडली गालियां देते नहीं थक रही! सरकार ने जो किया वह सत्ता का चरित्र है। सत्ता में जब जो दल होता है वह ऐसा ही करता है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में चाहे कोई सत्तारूढ़ दल हो या अराजनैतिक प्रक्रिया में कोई फौजी तानाशाह, सब ऐसा ही बर्ताव करते हैं। लेकिन एक बात अभी भी समझ से परे है कि अन्ना के साथ केंद्र सरकार इतनी नरमी से क्यों पेश आई? आंदोलनों में तो पुलिस की लाठी भी चलती है, पानी की बौछारें भी फेंकी जाती हैं, पुलिस आंदोलनकारियों को घसीट-घसीट कर मारती भी है, उन पर घोड़े भी दौड़ाए जाते हैं, पुलिस फायरिंग भी करती है लेकिन ऐसा कुछ अन्ना मंडली के साथ नहीं हुआ। ऐसा महज इत्तेफाक नहीं है बल्कि इसके पीछे एक बड़ा कारण है। अन्ना को देश के बड़े काॅरपोरेट घरानों का समर्थन हासिल है। पूंजीपतियों का संगठन चैंबर आॅफ काॅमर्स अन्ना के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित कर ही चुका है। इंडिया अगेंस्ट करप्शन को कई बड़े काॅरपोरेट घराने खुले आम समर्थन दे रहे हैं, सरकार के अरबों रुपयों के आयकर की चोरी करने वाले बाॅलीवुड के अभिनेता और खिलाड़ी उनके साथ हैं, इतना ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा शोषक देश अमरीका भी अन्ना के साथ है इसलिए सरकार की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह अन्ना के साथ वह सुलूक करे जो अन्य आंदोलनकारियों के साथ करती है। अन्ना तो उस कहावत में भी फिट नहीं बैठते जिसमें कहा जाता है ”उंगली कटाकर शहीद हो गए“। अन्ना तो बिना उंगली कटाए ही शहीद हुए जा रहे हैं। यह छवियों के निर्माण का दौर है इसमें पूंजीवादी मीडिया ऐसे ही नायक गढ़ता है।
जबकि अन्ना बेचारे को न लोकपाल का मतलब मालूम है और न जनलोकपाल का लोकतंत्र विरोधी मंतव्य। उनके पीछे काॅरपोरेट घरानों से वित्त पोषित एक पूर्व अफसरों का समूह है जो सब कुछ तय कर रहा है। दरअसल अन्ना मंडली की असल समस्या यह नहीं है कि सरकारी लोकपाल में प्रधानमंत्री को शामिल नहीं किया गया है बल्कि उसकी असल चिंता यह है कि पूंजीपतियों के टुकड़ों पर पलने वाले एनजीओएस को क्यों इसकी परिधि में लिया गया है? अन्ना टीम ने हड़बड़ाहट में अपनी यह चिंता जाहिर भी कर दी है। टीम कहती है-”पूरे देश के करीब 4.5 लाख एनजीओ और असंख्य गैर पंजीकृत समूह (बड़े बड़े आन्दोलनों से लेकर शहरों गांवो के छोटे छोटे युवा समूह तक) इस कानून की जांच के दायरे में होंगे।“ और अपनी चिंता वह इस तरह जाहिर करती है कि गैर सरकार संगठनों को इस जांच में शामिल करना-”भ्रष्टाचार के आन्दोलनों और गैर सरकारी संगठनों को दबाने का नया तरीका है।“ देखिए-http://lokpal&hindi-blogspot-com/2011_06_01_archive-html लिंक।
अब तो समझ में आ जाना चाहिए कि इस मंडली का असल मकसद क्या है? एनजीओ इस वैश्वीकृत होती साम्राज्यवादी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के एजेन्ट हैं जो पूंजीपतियों, के पैसों पर पलते हैं और राज्य की कल्याणकारी भूमिका का विरोध करते हैं। अधिकांश एनजीओएस या तो अफसरों की बीवियों के हैं या पूंजीपतियोें के। आखिर क्यों इन एनजीओएस को आयकर की धारा 80 जी के तहत छूट दी जाती है? इस छूट से जो पैसा राष्ट्र के विकास में लगना चाहिए वह इन एनजीओएस के पेट में समा जाता है। उत्तर नरसिंहाराव काल में इस देश में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े केन्द्र यही एनजीओएस हैं जिन्हें अन्ना मंडली लोकपाल के डंडे से बचाना चाहती है। पिछले दिनों ही एक खबर आई थी कि नेहरू युवा केन्द्र से जुड़े कई हजार एनजीओ सरकार से धन लेकर गायब हो गए। क्या किसी ने सुना है कि कोई एनजीओ किसी गरीब का भी है?
और तो और ईमानदारी की ठेकेदारी अब अन्ना और केजरीवाल के ही पास है। पूरी की पूरी राजनीति को कोसने वाले अन्ना मंडली के पास ईमानदार लोगों का अथाह भंडार है! है न दुनिया का आठवां आश्चर्य! मंडली अपनी पीठ थपथपाते हुए कहती है-”यहां तक कि बहुत से ईमानदार आइएएस, आईपीएस अधिकारियों ने इस कानून को बनाने में मदद की है। वकीलों और रिटायर्ड जजों ने इसमें सहयोग किया है। इतनी सारी चर्चाओं के बाद इसके ड्राफ्ट को 13 बार संशोधित किया गया। तब जाकर, अन्ना ने सरकार से कहा कि आप जो लोकपाल कानून बना रहे हैं वह कागजी है।” देखिए लिंक
http://lokpal&hindi-blogspot- com/2011_07_01_archive-html
दरअसल लोकपाल की आड़ में अन्ना मंडली लोकतंत्र की हत्या करने पर आमादा है। वह संवैधानिक संस्थाओं से ऊपर एक और सुपर पाॅवर चाहती है। उनका तर्क देखिए-” सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल या तो स्वयं के प्रति जवाबदेह होगा या फिर सरकार के प्रति। हम इसे देश के आम लोगों के प्रति जवाबदेह बनाना चाहते हैं।“ लेकिन यह जनता के प्रति किस तरह जवाबदेह होगा इसका इस मंडली के पास कोई उत्तर नहीं है। क्या अन्ना के लोकपाल के भ्रष्ट होने पर जनता उसे वापस बुला सकेगी? बिल्कुल नहीं, क्योंकि अन्ना का लोकपाल न संसद् के प्रति उत्तरदायी होगा और न सरकार के प्रति और न लोकतंत्र के प्रति। यह सिर्फ आरोप भर नहीं है अन्ना मंडली की एक मांग के पीछे छिपे खतरनाक नापाक मंसूबों को देखिए-” भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को नौकरी से हटाने का अधिकार लोकपाल को दिया जाना चाहिए ना कि उसी विभाग के मंत्री को“ ( देखिए लिंक http://lokpal&hindi-blogspot-com/2011/06/blog&post_3629-html#more½ यानी जब जनता द्वारा निर्वाचित सरकार का मंत्री अपने अधीन कर्मचारी को हटाने की भी ताकत नहीं रखेगा तो सरकार कैसे चलेगी? आज जब यह आरोप लगते हैं कि राजनीतिक दखलंदाजी प्रशासन में बहुत ज्यादा है तब अधिकारी शासन के आदेशों को ताक पर उठाकर रख देते हैं और जब शासन के पास अधिकार ही नहीं होंगे तब क्या ये अधिकारी सही काम करेंगे?
इसलिए बिना भावनाओं में बहे अन्ना मंडली के खतरनाक मंसूबों को समझना बहुत जरूरी है। हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि 250 सालों के संघर्ष के बाद हमें आजादी और लोकतंत्र हासिल हुए हैं, इसे किन्हीं काॅरपोरट दलालों के बहकावे में हम गिरवी नहीं रख देंगे।
हाय अफसोस जंतर-मंतर फिर तहरीर चौक बनने से रह गया! 21वीं सदी के आधुनिक गांधी जी अनशन पर बैठने से पहले ही गिरफ्तार कर लिए गए। मालूम है किरन बेदी ‘नो माक्र्स’ नाम की एक क्रीम बेचती हैं जिससे सारी लड़कियों के चेहरे से दाग़ धब्बे गायब हो जाते हैं, इसलिए समझना चाहिए अन्ना जी का जनलोकपाल भी ‘नो मार्क्स’ की तरह जादू की छड़ी रखता है वह भ्रष्टाचार मिटा देगा!!! टीम अन्ना का हुक्म है। इसलिए खबरदार चुप रहिए!
अमलेन्दु उपाध्याय
अमलेन्दु उपाध्याय: लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं। http://hastakshep.com/oldold के संपादक हैं. संपर्क[email protected]