जब देश तरह-तरह की आग में झुलस रहा हो क्या तब जश्न की बांसुरी बजाना उचित है?
जब देश तरह-तरह की आग में झुलस रहा हो क्या तब जश्न की बांसुरी बजाना उचित है?
राजीव रंजन श्रीवास्तव
देश इस वक्त बाहरी और भीतरी कई तरह की परेशानियों से जूझ रहा है। पाकिस्तान के साथ तनाव चरम पर है। चीन के साथ रिश्ते सामान्य नहीं हो पा रहे हैं। आतंकवाद और नक्सलवाद सुरक्षा के लिए चुनौती बने हुए हैं। समाज में सांप्रदायिक और जातीय विद्वेष पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गया है। अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। और इनके अलावा गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, प्रदूषण और कुपोषण जैसी समस्याएं तो मानो स्थायी भाव से विराजमान हो गई हैं। इनका लगातार बने रहना ही मानो राजनीतिक दलों के लिए सुविधाजनक है, क्योंकि चुनाव में यही मुद्दे काम आते हैं।
2014 में कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत के पीछे ये तमाम कारण मददगार साबित हुए। भाजपा ने अरसे बाद भारी बहुमत से जीत हासिल कर केंद्र की सत्ता हासिल की।
पहले सौ दिन, फिर एक साल, दो साल और अब भाजपा के तीन साल पूरे होने का जश्न देश भर में मनाया जा रहा है। भाजपा बेशक अपनी जीत की खुशी मनाए लेकिन जनता तो अब भी खुशी को ढूंढती फिर रही है। सबका साथ, सबका विकास का जो नारा तीन साल पहले दिया गया था, उसमें अब विश्वास भी जुड़ चुका है। क्या सचमुच भाजपा यानी मोदी सरकार पर आज भी जनता का विश्वास कायम है?
जब देश तरह-तरह की आग में झुलस रहा हो क्या तब जश्न की बांसुरी बजाना उचित है?
आइए देखते हैं मोदी सरकार के तीन साल पर यह रिपोर्ट –


