लोकतंत्र के चार स्तंभों में कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका की हालत खराब है और यदि ऐसे में चौथे स्तंभ मीडिया की भी हालत बिगड़ी तो देश का क्या होगा....

अरविंद केजरीवाल में भी मोदी, सोनिया वाली पोटली ही दिखती है।
नई दिल्ली। आजादी के पहले का काल मीडिया, देशभक्ति का काल कहा जाता था। उस समय के अखबार क्रांति को बढ़ाते थे। कुछ अखबार आपातकाल की स्थिति से पहले सत्ता के समर्थक थे। आपातकाल के बाद अखबारों की वो भूमिका नहीं रही। आज नेता पर हमला हो तो कुछ नहीं होता लेकिन मीडिया पर हमला हो तो सब एक साथ हो जाते हैं। लोकतंत्र के चार स्तंभों में कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका की हालत खराब है और यदि ऐसे में चौथे स्तंभी मीडिया की भी हालत बिगड़ी तो देश का क्या होगा। यह बात सिटीजन फार डेमोक्रेसी की बीती तीस मार्च को हुई बैठक में सामने आई। इस बैठक की ब्योरेवार रपट आज जारी की गई जो इस चुनाव के माहौल में प्रासंगिक है। इस रपट को तैयार किया है साडेड की विजय लक्ष्मी ढ़ौंडियाल ने। पूरी रपट इस प्रकार है-
लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए सीएफडी ने 30 मार्च 2014 को तिवारी भवन, नई दिल्ली में एक बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में मौजूदा दौर में राजनीति में व्याप्त अस्थिरता अराजकता की स्थिति से अवगत कराने तथा आने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मतदाताओं को सही उम्मीदवार का चुनाव करने की दिशा में कुछ मार्गदर्शन देने आदि के संबंध में बातचीत हुई। इस बैठक में देश के कई इलाकों से आए सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, विद्यार्थियों तथा समाज में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने भाग लिया। बैठक में निम्न विचार रखे गए-
एनडी पंचोली - पिछले साल लोकतंत्र और समाज की बैठक हुई थी और 1997 के बाद किसी तरह का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ। सीएफडी की महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए थी लेकिन नहीं हो सकी। बहुत से लोगों ने कहा कि ऐसे हालात में सीएफडी को पुनर्जीवित होना चाहिए जिसके लिए 2-3 बैठकें हुईं और उनका अच्छा परिणाम भी देखने को मिला। सीएफडी की पिछली बैठक का सूत्रपात कुरेशी जी ने किया और उन्होंने इसे बहुत प्रसारित भी किया और ये चर्चा का विषय बना।
आज के दौर में पार्टियां चुनावी धारा में कार्य कर रही हैं। आज यहां तक देखने में आता है कि जो पार्टी किसी अन्य पार्टी के कार्यों या उसकी विचारधारा का विरोध करती दिखती थीं आज वो उन्हीं के साथ दिखाई देते हैं। सीएफडी की स्थापना एक सतत् प्रक्रिया थी। सीएफडी की स्थापना चुनावी सुधार, काम करने का अधिकार अभियान, भ्रष्टाचार आदि के संबंध में काम करने के लिए बनाई गई थी। सीएफडी की आज की बैठक की तिथि आज से डेढ़ महीने पहले ही तय हो गई थीं। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा उसके बाद की गई जिसके चलते आज की बैठक में कुछ अन्य लोग नहीं आ सके। आज प्रेस क्लब में भी बैठक है तो कुछ लोगों के 12 बजे के बाद आने की उम्मीद है। कुरैशी जी को आना था पर उन्हें अचानक कहीं जाना पड़ा। आज राजेन्द्र सच्चर जी को भी आना था लेकिन अचानक बीमार होने के कारण वो आ नहीं पाए। आज की बैठक में रमन रामशरण, विजय प्रताप, कुलदीप नैयर जी मौजूद हैं। आज हम लोग सांप्रदायिक राजनीति, मीडिया की भूमिका और उसमें हमारी भूमिका क्या हो जैसे विषयों पर बात करेंगे। मैं कुलदीप नैयर जी से प्रार्थना करूंगा कि वो हमें अपने सुझाव दें। आज राजनैतिक पार्टियां जिस तरह से काम कर रही हैं उसमें आंतरिक दलों और हमारी क्या भूमिका हो आदि विषयों पर वो हमारी जानकारी बढ़ाएं।
कुलदीप नैयर: प्रजातंत्र में लोगों का राज होता है। राजनैतिक दल अपनी-अपनी बातें कर रहे हैं। कोई आधारभूत मुद्दों को भी नहीं उठा रहा। चुनावी लड़ाई मुद्दों पर नहीं व्यक्तित्व पर होती है। लोकतंत्र में अगर लोगों में संप्रभुता है तो अच्छा है लेकिन यदि लोग मालिक हैं तो इसका अर्थ लोग बदल रहे हैं। आज ऐसा उसूल सभी पार्टियों का हो गया है लेकिन एक पार्टी जो पुनर्जीवित कर रही है। इसके लिए हम सभी को मिलकर कोशिश करनी चाहिए फिर हम चाहें पीयूसीएल में हों या कहीं और हम जितने भी लोग हैं अपने दायरे में कोशिश करें कि देश में प्रजातंत्र को मजबूत करना है। इसी तरह से दिखावे से भी लड़ने की जरूरत है फिर चाहे वो धर्म, जाति, या कोई अन्य चुनौती हो उससे लड़ने की बहुत जरूरत है। मैं मुसलमानों और सिक्खों से भी मिलता हूं। मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं मोदी चुनकर न आ जाएं या आरएसएस चुनकर न आ जाएं। तो आरएसएस का काम तो खुला है लगभग सभी उसको जानते हैं इसलिए आम मुसलमानों में मोदी के लिए डर है। इसलिए हम जितने भी लोग हैं हमें विश्व भर में और खासकर मुसलमानों को यह बताना-समझाना चाहिए कि जिस तरह से वो सोच रहे हैं वैसा इस देश में नहीं होगा। हां ये सत्य है कि इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता कि ऐसा नहीं होगा लेकिन फिर भी हमें विश्वास है कि ऐसा होने नहीं दिया जायेगा। बीजेपी या कांग्रेस पार्टी में कोई फर्क नहीं है वो सेक्युलर हैं और जो पार्टियां सैक्युलर नहीं हैं वो भी ऐसी ही बातें करते हैं। जब ‘आम आदमी पार्टी‘ आई तो एक चोट का सा एहसास हुआ और लगा कि अब राजनीति बदल जाएगी जो काम लैफ्ट नहीं कर पाया वो काम अब ‘आम आदमी पार्टी‘ वो सब करेगी। मैं समझता हूं कि क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस को हराएंगी पर जहां क्षेत्रीय पार्टियां नहीं हैं वहां आम आदमी पार्टी आ सकती है। बाद में यदि मोदी न आया तो उसका जैसा कोई आएगा। लोग कांग्रेस से तंग हैं वो परिवर्तन चाहते हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी का जो शुरू का आदर्शवाद था वो आज नहीं है। अरविंद केजरीवाल में भी मोदी, सोनिया वाली पोटली ही दिखती है। कभी उनमें से किसी ने एनजीओवादी के अरविंद केजरीवाल को समझाया नहीं कि मीडिया आम आदमी पार्टी की विरोधी नहीं है पर वो कांग्रेस के समर्थक हैं। जब आप दिल्ली से बाहर जाएं तो पेड न्यूज की बहुत ज्यादा बातें होती हैं। कई जगह तो मूल्य तय हैं कि यदि हम आपके विरोधी के लिए लिखेंगे, कितने कॉलम की खबर लिखेंगे तो कितना पैसा होगा आदि क्योंकि विपक्षी पार्टी को चुनावों में हारने का डर होता है इसलिए वो रिपोर्टर की इच्छा पूरी करते हैं। चुनाव आयोग चुनाव तो कराती है लेकिन उसके लिए बहुत से पैसे आदि की जरूरत होती है और वो तो चाहिए ही। मुझे लगता है देश कभी तो आदर्शवाद का दौर आएगा। पार्टियां बनेंगी, ग्रुप बनेंगे, कुछ जोरदार आवाज लोकसभा में आए। लोकतंत्र में महत्वपूर्ण होता है कि आप संसद को कितना प्रभावित कर सकते हैं। उसमें बहुलवाद, धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई आदि बातें भी होती हैं। देश के विभाजन के समय गांधी जी कहा करते थे कि अब जो देश बनेगा उसमें जाति नहीं होगी, धर्म नहीं होगा लेकिन आज देखें तो आज धर्म और जाति का ज्यादा प्रयोग हो रहा है। जन आंदोलन कुछ कर नहीं पाए और न कर पा रहे हैं। सीएफडी को अपने सदस्यों की संख्या को और अधिक बढ़ाना चाहिए उसमें ऐसे लोग आएं जो देश में प्रजातंत्र कायम करना चाहें ‘गांधी वाला प्रजातंत्र‘। आज मूल मुद्दे तो सामने आ नहीं रहे। बस 1-2 पर आक्रमण कर रहे हैं। यदि हम ये चुनौती स्वीकार करें कि लोगों के हक की बात करेंगे यदि हमने भी ऐसी बात छोड़ दी तो क्या होगा। 15-16 करोड़ मुसलमान हैं वो बहुत असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। हमें व्यापक मुद्दों को शामिल करना चाहिए। सीएफडी का क्या हो गया कि एक बैठक के बाद दूसरी करते हैं। इन चुनावों के दौरान कुछ मिलकर करना चाहिए जैसे मेधा पाटकर जैसे लोगों के लिए कुछ करें। यदि इस तरह के लोग लोकसभा में गए तो लोगों के हित की बात करेंगे। मैं सीएफडी की ओर से उम्मीद करता हूं कि वो पार्टी का नाम न लें लेकिन आंदोलन के लोगों के लिए जरूर काम करें। सीएफडी का अजेंडा गैर चुनावी ही रहे।
विजय प्रताप- सीएफडी के लोग, आंदोलन से जुड़े लोगों के लिए काम करें। गैर चुनावी लेकिन राजनैतिक काम करें क्योंकि मोदी का खतरा फासिज्म वाला है। उनकी आर्थिक नीतियां जन विरोधी एवं फासिज्म की सी हो गई हैं। कई पार्टियों में आंदोलन के लोग हैं तो उनकी मदद करें।
पंचोली- अभी नैयर साहब ने जो सुझाव दिया है कि जैसे आंदोलन से जुड़े लोग जैसे मेधा पाटकर, प्रो. आनन्द कुमार आदि को समर्थन देने के लिए कोई अपील जारी की जा सकती है क्या ?
राजीव चौरसिया (सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत)- कुलदीप नैयर ने गाजियाबाद में एक सम्मेलन किया था वहां भी ये बात हुई थी कि आज हमारे अंदर द्वंद चलता है कि हम किसी के सहयोग में आएं कि नहीं या फिर किनारे पर रहकर नदी को देखते रहे। लेकिन यदि कोई आदमी नदी में नहीं घुसता तब तक वो कुछ खास नहीं कर सकता। जैसे कोई समाज के आधारभूत मुद्दों को समझता है तो उसके लिए खुलकर आएं। नैयर साहब ने ‘आम आदमी पार्टी‘ की बात की तो वहां भी इसी तरह की हलचल चल रही है। हमें व्यक्ति के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए। यदि हम ऐसा करें तो हम 200-400 साल पीछे चले जाएंगे। देश, एक परिवार की तरह है, उसमें कोई भी असुरक्षित रहेगा तो ठीक नहीं होगा। जैसे एक परिवार में यदि कोई असंतुष्ट है या असुरक्षित है तो वो परिवार से अलग हो जाता है या वो खुद को परिवार से अलग समझता है और वो घर को तोड़ेगा। देश में किसी भी धर्म या जाति से आने वाला कोई भी इंसान यदि असुरक्षित हो तो वो देश के लिए ठीक नहीं है। गैर राजनैतिक आंदोलन देश की रीढ़ की हड्डी हैं। गैर राजनैतिक संगठन आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत हैं। गैर राजनैतिक समूह के लोग यदि खुलकर क्रियाशील नहीं हुए तो कुछ नहीं हो सकता। जो लोग समाज के मुद्दों को छू रहे हैं उनके साथ हों हम किसी दल के चुनावी घोषणा पत्र पर बात नहीं करेंगे। नैयर जी ने कहा कि आज देश में एक तिहाई लोग भूखे सोते हैं लकिन देश में भूखे सोने वालों की संख्या लगभग आधी है और जो उन भूखे सोने वाले लोगों के हितों की बात करें उनके बारे में सोचें हमें उनके साथ होना चाहिए।
वक्ता - जय प्रकाश जी ने 77 में जनता पार्टी का समर्थन किया लेकिन उनकी निर्दलयीता पर कोई फर्क नहीं पड़ा। आज साम्प्रदायिकता और पूंजीवाद हो गया। आम आदमी की आवाज लोकतंत्र तक नहीं जाती। सीएफडी ऐसे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। हम खुलकर किसी पार्टी का समर्थन न करें पर आंदोलन से निकले लोगों का समर्थन करें और संकेाच न करें।
राजेन्द्र नटखट- ‘विचार‘ ही समस्या पैदा करते हैं और ‘विचारों‘ से ही समाधान भी निकलते हैं। 204 के चुनाव के बाद दो बार कांग्रेस को सत्ता में बैठाया गया लोग तो समझदार हैं पर लोग अब भी परेशान हैं और उस परेशानी को बुद्धिजीवी हीं नहीं उठाना चाहते कि उस समय तो उन्होंने कांग्रेस को दोबारा बिठाया था और अब वो खुद उन्हें क्यों नहीं चाहते। उन्होंने देश के आर्थिक तंत्र का दिवाला निकाला। धर्म इस तरह से काबिज हो गया कि सारे देश को शून्य बना दिया। जो बंदे तैयार किये जा रहे थे जो हमारे समर्थन में खड़े थे उनपर ठप्पा लगाकर शून्य बना दिया। उनकी दूसरी सेना बालकपन से तैयार कर रही है वो तो वही करेंगे जो गुजरात में किया। वो तो डालर और पौंड के गुलाम हैं। हमारे बुद्धिजीवियों की बुद्धि मुलायमवादी हो गई। जहां तक अपील करने की बात है तो हम लोगों ने मेधा और इसी तरह के दो-चार और लोगों के नाम सुने हैं तो हमें उनकी मदद करनी चाहिए।
रवीन्द्र कुमार- अपील करना कोई बुरी बात नहीं। वैसे आप जिन लोगों के साथ होने की बात कर रहे हैं उनमें अधिकतर आम आदमी पार्टी में हैं। ‘आम आदमी पार्टी‘, एनजीओ संस्कृति को लेकर बनी पार्टी थी लेकि वो राजनैतिक पार्टी हो गई है। तो यदि हम अपील करें तो उससे ऐसा ही लगेगा कि जैसे सीएफडी के साथ हैं तो आप पहले मुद्दों को तय करें और कहें कि जो लोग हमारे मुद्दों पर लड़े, मूल्यों पर लड़ें हम उनके साथ हैं। हम मूल्यों को महत्वपूर्ण मानते हैं, व्यक्तियों को नहीं।
मिर्जा जकी अहमद (एआईएमसी)- सीएफडी एक एनजीओ है वो लोगों के सामने न आएं तो उन मुद्दों पर कांग्रेस और बीजेपी के लोग भी हो सकते हैं। हमारा इस संदर्भ में कहना है कि व्यावहारिक मतदान का समर्थन करें। जो आदमी सैक्युलर मिजाज हो वो सैक्यूलर मुद्दों पर काम करें उनके साथ हों।
पंचोली- जैसे उत्तर प्रदेश ने कहा, सीएफडी के मंच से अपील की जाए। हम ये कहे कि हम न किसी प्रत्याशी और न ही किसी पार्टी का नाम लें। आज विशेष खतरा फासीवाद का है जो उसकी खिलाफत हो तो ये आंदोलन वाले ही लड़ सकते हैं।
पंचोली- जो इच्छुक हैं वही फासीवाद को हरा सकते हैं।
विजय प्रताप- आंदोलन हमारी प्रथम प्राथमिकता है। सीएफडी 73 में बनी थी जब लोकतंत्र पर संघर्ष था। तो तब दिल्ली में जेपी ने भाषण में कहा कि युवाओं की बैठक में भाषण दिया तो उसके आधार पर हमें भी करना चाहिए।
अनिल सिन्हा- जहां तक व्यक्तियों की बात की जाए तो जहां नव-उदारवादी और फासीवाद के खिलाफ दोनों विपक्षी पार्टियां हैं। जैसे कोई लैफ्ट को भी समर्थन करना चाहता है।
वक्ता- आप जो अपील पत्र बनाएं उसमें ये लाइन भी जोड़ दीजिए कि जो भी सांप्रदायिक ताकतों को हराना चाहता हो वो हमारे साथ जुड़ें।
हर्ष- किसी व्यक्तिगत आचरण की बात न करें। आम आदमी पार्टी से डर लगता है। आम आदमी पार्टी बहुत अधिक राजनीतिज्ञ हो गई है। वो समस्या का पता लगाना ही नहीं चाहती। 10-12 साल से जो लोग किसी न किसी मुद्दे पर आग लगाते रहे कोई भी क्रिया स्थिर नहीं रही। यदि बड़े सवालों के साथ रोजमर्रा के सवाल न जुड़ें जैसे कि गैस, अस्पताल आदि तो किसी भी पार्टी का अर्थ नहीं। सैक्यूरलिज्म जैसे मुद्दे दिमाग को जमा देने वाले मुद्दे हैं। लेकिन तमाम चीजें यदि सामान्य रूप से पहुंच में हैं तो ये माना जाता है कि वो बहुत टिकाऊ रास्ता है। यदि सिर्फ चुनावी राजनीति को लें तो बीजेपी या अन्य पार्टीयां ही सामने आती हैं लेकिन जहां बीजेपी आज लोकतंत्रवादी पार्टी के रूप में लड़ रहे है, उन्होंने ढ़ाई साल से संसद की कार्यवाहियां नहीं चलने दिया। लोकतंत्र को विभाजित किया जा रहा है।
मिर्जा जकी- सीएफडी ने अच्छा फैसला लिया। हम हिन्दू-मुस्लिम सदियों से एक साथ रहे हैं। मदरसा, स्कूल, शिशु मंदिर आदि में छोटे-छोटे बच्चों में जहर घोला। आम आदमी पार्टी, राजनैतिक पार्टी है और उसने व्यक्तिगत रूप से लोगों को गाली दी लेकिन सिस्टम को गाली भी दे रहे हैं और उसमें आ भी रहे हैं। साम्प्रदायिकता का आलम ये है कि उनकी पहचान हो गई कि वो हिन्दुस्तान नहीं हिन्दू-मुस्लिम हो गया। इस विभाजन को रोके। हम नदी के धार में कूदे और उस बहाव को अच्छे की ओर मोड़ दें। मीडिया में भी कुछ लोग हैं जो पैसे ने नहीं बिके और हक की बात करते हैं।
आप ‘बीजेपी‘ भी नहीं ‘मोदी सरकार‘ की बात कर रहे हैं। यदि बुद्धिजीवी तबका समाज के हर तबके के अंदर जाए तो रद्द हो सकता है। हां! वो ब्लाक में जाकर अपनी बात करता था। हम गुड़ और चना छोड़ कुर्सी आदि के आदी हो चुके हैं। दशा और दिशा दुरस्त करने के लिए बुद्धिजीवी आगे आएं। डरकर जीने से अच्छा शोर की तरह जिएं। अमेरिका अणु बम्ब बना सकता है पर डर का माहौल बनाया है उसे खत्म किया जाए। आप को अंदर जाकर काम करना होगा छोटी-छोटी मीटिंग छोड़कर चार-चार लोग इक्ट्ठा कर गली मोहल्लों में जाएं। हिन्दू-हिन्दू रहें और मुसलमान-मुसलमान। ऐसा नहीं कि मैं हिन्दू हूं और काम मुसलमान का करूं आदि। भयभीत न हों आगे आएं। मोदी सेक्युलरिज्म की भावना से 6 महीने सरकार नहीं चला पाएंगे। हमारे स्कूल-काॅलेज में बच्चों को कोई भेद न हो। सीए