जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल : अनैतिक और बेईमान धंधेबाजों द्वारा प्रायोजित साहित्यिक आयोजन!!!
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल : अनैतिक और बेईमान धंधेबाजों द्वारा प्रायोजित साहित्यिक आयोजन!!!
पिछले साल की तरह इस साल भी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों और प्रतिभागियों ने बरबाद हो रहे पर्यावरण, मानवाधिकारों के घिनौने उल्लंघन और इस आयोजन के कई प्रायोजकों द्वारा अंजाम दिए जा रहे भ्रष्टाचार के प्रति निंदनीय उदासीनता दिखाई है। 2011 में जब इन बातों पर चिंता व्यक्त करते हुए बयान दिए गए, तब फेस्टिवल-निदेशकों ने कहा था कि पहले किसी ने इस ओर हमारा ध्यान नहीं दिलाया था और अगर ये तथ्य सामने लाये जायेंगे तब हम ज़रूर उन पर ध्यान देंगे, लेकिन 2012 में भी उन्होंने ऐसा नहीं किया।
फेस्टिवल के प्रायोजकों में से एक, बैंक ऑफ अमेरिका ने दिसंबर 2010 में यह घोषणा की थी कि वह विकिलीक्स को दान देने में अपनी सुविधाओं का उपयोग नहीं करने देगा। बैंक का बयान था कि 'बैंक मास्टरकार्ड, पेपल, वीसा और अन्य के निर्णय को समर्थन करता है और वह विकिलीक्स की मदद के लिये किसी भी लेन-देन को रोकेगा'। क्या यह बस संयोग है कि रिलायंस उद्योग के मुकेश अम्बानी इस बैंक के निदेशकों में से हैं? फेस्टिवल में शामिल हो रहे लेखक और कवि क्या ऐसी हरकतों का समर्थन करते हैं? यह दुख की बात है कि विकिलीक्स की प्रशंसा करने वाले कुछ प्रतिष्ठित प्रकाशन और समाचार-पत्र भी इस बैंक के साथ इस आयोजन के सह-प्रायोजक हैं।
अमेरिका और इज़रायल जैसी वैश्विक शक्तियों के रवैये को दरकिनार करते हुए मई 2007 से लागू सांस्कृतिक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा कहती है कि शब्दों और चित्रों के माध्यम से विचारों के खुले आदान-प्रदान के लिये आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय कदम उठाये जाने चाहिए। विभिन्न संस्कृतियों को स्वयं को अभिव्यक्त करने और आने-जाने के लिये निर्बाध वातावरण की आवश्यकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, माध्यमों की बहुलता, बहुभाषात्मकता, कला तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान (डिजिटल स्वरूप सहित) तक समान पहुंच तथा अभिव्यक्ति और प्रसार के साधनों तक सभी संस्कृतियों की पहुंच ही सांस्कृतिक विविधता की गारंटी है।
यूनेस्को द्वारा 1980 में प्रकाशित मैकब्राइड रिपोर्ट में भी कहा गया है कि एक नई अंतर्राष्ट्रीय सूचना और संचार व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमें इन्टरनेट के माध्यम से सिमटती भौगोलिक-राजनीतिक सीमाओं की स्थिति में एकतरफा सूचनाओं का खंडन किया जा सके और मानस-पटल को विस्तार दिया जा सके।
याद करें कि 27 जनवरी 1948 को पारित अमेरिकी सूचना और शैक्षणिक आदान-प्रदान कानून में कहा गया है कि 'सत्य एक शक्तिशाली हथियार हो सकता
है'। जुलाई 2010 में अमेरिकी विदेशी सम्बन्ध सत्यापन कानून 1972 में किये गए संशोधन में अमेरिका ने अमेरिका, उसके लोगों और उसकी नीतियों से
संबंधित वैसी किसी भी सूचना के अमेरिका की सीमा के अन्दर वितरित किए जाने पर पाबंदी लगा दी गयी है जिसे अमेरिका ने अपने राजनीतिक और रणनीतिक
उद्देश्यों की पूर्ति के लिये विदेश में बांटने के लिये तैयार किया हो।
इस संशोधन से हमें सीखने की ज़रूरत है और इससे यह भी पता चलता है कि अमेरिकी सरकार के गैर-अमेरिकी नागरिकों से स्वस्थ सम्बन्ध नहीं हैं।
इस आयोजन को अमेरिकी सरकार की संस्था अमेरिकन सेंटर का सहयोग प्राप्त है। यह सवाल तो पूछा जाना चाहिए कि दुनिया के 132 देशों में 8000 से अधिक परमाणु हथियारों से लैस 702 अमेरिकी सैनिक ठिकाने क्यों बने हुए हैं? हम कोका कोला द्वारा इस आयोजन के प्रायोजित होने के विरुद्ध इसलिए हैं क्योंकि इस कंपनी ने केरल के प्लाचीमाड़ा और राजस्थान के कला डेरा सहित 52 सयंत्रों द्वारा भूजल का भयानक दोहन किया है जिस कारण इन संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों को पानी के लिये अपने क्षेत्र से बाहर के साधनों पर आश्रित होना पड़ा है।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की एक प्रायोजक रिओ टिंटो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी खनन कंपनी है जिसका इतिहास फासीवादी और नस्लभेदी सरकारों से गठजोड़
का रहा है और इसके विरुद्ध मानवीय, श्रमिक और पर्यावरण से संबंधित अधिकारों के हनन के असंख्य मामले हैं।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग की जांच के अनुसार इस आयोजन की मुख्य प्रायोजक डीएससी लिमिटेड को घोटालों से भरे कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के दौरान 23
प्रतिशत अधिक दर पर ठेके दिए गए।
हमें ऐसा लगता है कि ऐसी ताकतें साहित्यकारों को अपने साथ जोड़कर एक आभासी सच गढ़ना चाहती हैं ताकि उनकी ताकत बनी रहे. ऐसे प्रायोजकों की मिलीभगत
से वह वर्तमान स्थिति बरकरार रहती है जिसमें लेखकों, कवियों और कलाकारों की रचनात्मक स्वतंत्रता पर अंकुश होता है।
हमारा मानना है कि ऐसे अनैतिक और बेईमान धंधेबाजों द्वारा प्रायोजित साहित्यिक आयोजन एक फील गुड तमाशे के द्वारा 'सम्मोहन की कोशिश' है।
हम संवेदनात्मक और बौद्धिक तौर पर वर्तमान और भावी पीढ़ी पर पूर्ण रूप से हावी होने के षड्यंत्र को लेकर चिंतित हैं।
हम जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल होने का विचार रखने वाले लेखकों, कवियों और कलाकारों से आग्रह करते हैं कि वे कॉरपोरेट अपराध, जनमत बनाने
के षड्यंत्रों, और मानवता के ख़िलाफ़ राज्य की हरकतों का विरोध करें तथा ऐसे दागी प्रायोजकों वाले आयोजन में हिस्सा न लें।
हस्ताक्षर
गोपाल कृष्ण, सिटिज़न फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज़
Mb: 9818089660, Email:[email protected]
प्रकाश के. रे, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय शोध-छात्र संगठन
Mb: 9873313315, [email protected]
अभिषेक श्रीवास्तव, स्वतंत्र पत्रकार
Mb: 8800114126, [email protected]
शाह आलम,अवाम का सिनेमा
Mb: 9873672153 E-mail [email protected]
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प्रेस विज्ञप्ति
सलमान रूश्दी के कार्यक्रम रद्द होने पर निराशा
दिनांक: 20.01.2012
सलमान रूष्दी के जयपुर आने के कार्यक्रम के सम्बन्ध में जब कंछ मुस्लिम संगठनों ने हिंसक विरोध की चेतावनी दी थी तभी पी.यू.सी.एल. ने तुरन्त उसके विरोध में अपना वक्तव्य दिया था और कुछ प्रभावषाली मुस्लिम संगठनो तथा उस समाज के प्रबुद्ध नागरिकों से सम्पर्क कर उनसे विस्तृत चर्चायें की थीं। उन्होने भी हमारे दृष्टिकोण को समझा था और किसी प्रकार के हिंसक विरोध के सम्बन्ध में अपनी असहमति भी प्रकट की थी। परन्तु वह सलमान रूष्दी का जयपुर आगमन पर अपने विरोध के स्वरो को मुखरित करने के अधिकार को सुरक्षित रखना चाहते थे। इसमें कोई आपत्ति भी नहीं हो सकती थी परन्तु ऐसे विरोध की सीमायें कहॉं तक हांेगी इस पर चर्चा जारी थी। इसी बीच सरकार की ओर से यह वक्तव्य दिया गया कि सलमान रूष्दी के आने से कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। इसलिए उनके आने पर पाबंदी लगाने पर विचार किया जा रहा है। पी.यू.सी.एल. ने सरकार के इस रवैये का जमकर विरोध किया था और इस पर एक प्रदर्षन भी आयोजित किया था। मुस्लिम संगठनों से इसके बाद विस्तृत चर्चा हुई और उन्होने भी यह स्वीकार किया कि कानून और व्यवस्था की स्थिति नहीं बिगड़ने देगें। लेकिन लगता है कि सरकारों को यह प्रयास रूचिकर नहीं लगे और आज सलमान रूष्दी ने ई-मेल सन्देष भेेजकर अपना कार्यक्रम रद्द करते हुए यह कहा है कि उन्हें राज्य सरकार से सन्देष प्राप्त हुआ है कि कुछ उग्रवादी तत्व किसी अन्य प्रदेष से आकर उनकी जान लेने की कोषिष कर सकते हैं। हंालाकि उन्होने स्वयं इस प्रकार की खबर को सन्देहात्मक बताया है परन्तु अपना कार्यक्रम रद्द करने का यही कारण बताया है।
इस घटनाक्रम से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार खुद यही चाहती थी कि पहले विरोध उठे और फिर सरकार के हस्तक्षेप से कार्यक्रम रद्द हो जाय तो मुस्लिम समाज उनका आभारी होगा और अभी होने वाले चुनावों में उनकी पार्टी को समर्थन देगा। जब सही बात यह है कि ऐसे किसी खतरे की आषंका नहीं थी और फिर पुलिस और अन्य सुरक्षा ऐजेन्सी द्वारा किये जाने वाले सुरक्षा इन्तजाम किस के लिये हैं ?
हम यह स्पष्ट कर देना चाहते है कि सलमान रूष्दी के जयपुर आने के सम्बन्ध में और लिटरेचर फेस्टिवल में भाग लेने न लेने पर हमें मूल रूप से कोई दिलचस्पी नहीं है जब अभिव्यक्ति के अधिकार पर हमला और हिंसक विरोध जैसी बातें होती हैं तो वह हमारे लिए मानव अधिकार के हनन का प्रष्न बन जाता है और इसलिए हमने तीव्रगति से अपनी ओर से कार्यवाही की थी और इसलिए सलमान रूष्दी के द्वारा कार्यक्रम रद्द कर देने से हमे ंनिराषा ही हुई है।
निराषा इस बात से भी हुई हे कि मानव अधिकार हनन के सवाल पर और इन मूल्यों पर अपने साथ जिस मजबूती की आषा हमें स्वयं सलमान रूष्दी जैसे लेखक और लिटरेचर फेस्टीवल के आयोजकों से करते थे वह खरी साबित नहीं हुई। परन्तु यह भी सही है कि मानवाधिकार के सम्बन्ध में हमारे संघर्ष की भावना बहुत तेजी से उभर कर सामने आई है।
भवदीय!
प्रेमकृष्ण शर्मा
(अध्यक्ष)
कविता श्रीवास्तव
(महासचिव)


