जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तराखंड की बागवानी पर संकट: फल उत्पादन में 44% की गिरावट
उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों ने बागवानी और फल उत्पादन पर गहरा असर डाला है। बढ़ते तापमान, अनियमित बारिश और चरम मौसम की घटनाओं ने विशेष रूप से आम, लीची, और अमरूद जैसे फलों की पैदावार को प्रभावित किया है।

बदलती जलवायु ने उत्तराखंड की बागवानी का बदला स्वरूप, फल उत्पादन में चिंताजनक गिरावट
उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन: एक गंभीर चुनौती
उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों ने बागवानी और फल उत्पादन पर गहरा असर डाला है। बढ़ते तापमान, अनियमित बारिश और चरम मौसम की घटनाओं ने विशेष रूप से आम, लीची, और अमरूद जैसे फलों की पैदावार को प्रभावित किया है। क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से 2023 के बीच फलों की खेती के क्षेत्र में 54% की कमी और उत्पादन में 44% की गिरावट दर्ज की गई है। जानिए इस समस्या से निपटने के लिए क्या उपाय अपनाए जा रहे हैं और कैसे नई तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन ने उत्तराखंड की बागवानी, खासकर उष्णकटिबंधीय फलों की खेती पर गहरा असर डाला है। यह हिमालयी राज्य, जो अपनी विविध जलवायु परिस्थितियों के लिए जाना जाता है, पिछले सात वर्षों में फलों की पैदावार में भारी गिरावट का सामना कर रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण हैं—बढ़ते तापमान, अनियमित बारिश और बार-बार आने वाली चरम मौसम घटनाएँ।
बागवानी में चरम मौसम की भूमिका
क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि दीर्घकालिक वृद्धि चक्र और विशेष जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर होने के कारण, सदाबहार फलों की फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। गर्म सर्दियों, बारिश के बदलते पैटर्न और चरम मौसम घटनाओं ने फूलने, फल बनने और पकने की प्रक्रिया को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसका नतीजा ये हुआ कि 2016 से 2023 के बीच, उत्तराखंड में फलों की खेती का क्षेत्र 54% तक घट गया और कुल उपज में 44% की गिरावट आई। विशेष रूप से आम, लीची और अमरूद जैसे ग्रीष्मकालीन फलों के लिए गंभीर चुनौतियां सामने आई हैं, जहां अत्यधिक गर्मी और बारिश में उतार-चढ़ाव के कारण फलों का जलना, फट जाना और फफूंद संक्रमण जैसी समस्याएँ बढ़ गई हैं।
फल उत्पादन में गिरावट के कारण और प्रभाव
राम नगर, नैनीताल के आम एवं लीची किसान दीप बेलवाल बताते हैं कि फल (आम एवं लीची) का आकार अब छोटा होता जा रहा है। जब मानसून आता है तो आम में बहुत तेज़ी से टूट टूट कर नीचे गिरने लगते हैं। लीची को बहुत ज़्यादा धूप की मार झेलनी पड़ रही है। ऐसी घटनाओं की पिछले कुछ सालों में आवृत्ति बढ़ी है। जलवायु परिवर्तन के कारण फलों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। मानसून जब ऐसे बदलता है जैसे की इस वर्ष सितंबर में कम समय में बहुत ज़्यादा झमाझम पानी बरसा तब फलों में फंगस और अन्य बीमारियाँ पैदा होती हैं। लंबे समय तक उच्च तापमान और आर्द्रता फलों की फसल और फलों को प्रभावित कर रही है। अब मानसून 4 महीने से अधिक समय तक फैल रहा है।
आम और लीची की पैदावार में गिरावट की मुख्य वजहें
दीप बेलवाल बताते हैं चरम सीमाएँ भी बढ़ रही हैं, जिससे खेती कठिन हो गई है और उत्पादन लागत भी बढ़ रही है जबकि उपज घट रही है और फलों की गुणवत्ता भी गिर रही है। कुल मिलकर मौसम परिवर्तन का फलों की गुणवत्ता और पैदावार पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। उच्च तापमान और आर्द्रता से आम और लीची की फसल प्रभावित हो रही है। पैदावार घट रही है, लागत बढ़ रही है, और नई तकनीकें अपनाने के बावजूद स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।नई तकनीक को देख रहे हैं जैसे गर्मियों की दोपहर में रेन गन का उपयोग करके पानी गिरा कर तपती गर्मी के तापमान को कुछ नीचे लाया जा सकता है, बैगिंग और जाल प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है, हालांकि इन प्रौद्योगिकियों को लागू करने की लागत बहुत अधिक है।
इसके अलावा, कीटों का बढ़ता प्रकोप और परागण गतिविधियों में व्यवधान ने फलों की गुणवत्ता और बाजार में बिक्री पर भी असर डाला है। उत्तराखंड में फलों (आम, अंगूर और अन्य ताजे फल) का निर्यात 2015-16 में 4551.35 मीट्रिक टन से घटकर 2023-24 में 1192.41 मीट्रिक टन रह गया। क़ीमत के हिसाब से देखें तो फलों का निर्यात 2015-16 में 10.38 करोड़ था। जो गिरकर 2023-24 में 4.68 करोड़ हो गया।
बागवानी में चरम मौसम की भूमिका
चरम मौसम की स्थितियों ने कटाई के बाद फलों के खराब होने की समस्या को बढ़ा दिया है, जिससे स्थानीय आपूर्ति शृंखलाओं पर दबाव पड़ा है और आयातित किस्मों पर निर्भरता बढ़ी है। इससे उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
राज्य मधुमक्खी पालन केंद्र, बागवानी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग में वरिष्ठ कीटविज्ञानी सुश्री भावना जोशी कहती हैं कि दस साल पहले उत्तराखंड में सेब का बहुत अच्छा उत्पादन होता था। पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हो रहे राज्य के ठंडे घंटों में कमी से सेब उत्पादन में गिरावट आई है। किसान अब कम ठंड में उगने वाली सेब और आड़ू की किस्में लगा रहे हैं, साथ ही ड्रैगन फ्रूट और कीवी जैसे सूखा सहन करने वाले फलों की खेती कर रहे हैं। राज्य ने अब सेब उत्पादन बढ़ाने के लिए ‘एप्पल मिशन’ शुरू किया है, जिसमें उच्च घनत्व वाली खेती शामिल है। ‘एप्पल मिशन’ के तहत किसानों को कम ठंड में उगने वाली सेब की किस्में दी गई हैं, और अब वे अच्छी गुणवत्ता के सेब उगा रहे हैं। इसके अलावा, पॉली हाउस और टपक सिंचाई जैसी तकनीकें किसानों को जलवायु परिवर्तन से बचाने में मदद कर रही हैं।प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से ड्रिप सिंचाई योजना पर किसानों को 80% सब्सिडी प्रदान कर रहे हैं। इन उपायों से फल उत्पादकता में सुधार हो सकता है। फलों की उत्पादकता बढ़ाने में मधुमक्खी पालन महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि सेब जैसे फलों में परागण में मधुमक्खियों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
ICAR-IARI के सहायक महानिदेशक डॉ. विश्व बंधु पटेल बताते हैं कि फलों की खेती के लिए अब कम ठंड में बढ़ने वाली और जल्दी तैयार होने वाली किस्में विकसित की जा रही हैं। तापमान बढ़ने के कारण अब हम ड्रैगन फ्रूट, कीवी और ब्लूबेरी जैसी फसलें उगा पा रहे हैं, जिनके लिए पहले हमें आयात पर निर्भर रहना पड़ता था। उत्तराखंड में इन फलों की संभावनाएं बढ़ी हैं। खासकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ड्रैगन फ्रूटऔर का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है, और हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में इनका आयात रुक जाएगा। इसी तरह बड़े पैमाने पर कीवी उत्पादन की संभावनाएँ बहुत बढ़ गयी हैं। ये उपाय सकारात्मक संकेत देते हैं, लेकिन उत्तराखंड की बागवानी की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए निरंतर शोध, निवेश और रणनीतिक योजना की आवश्यकता होगी ताकि जलवायु संकट से निपटा जा सके।
किसानों की नई तकनीकों और उपायों की दिशा में बढ़ते कदम
यह रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड के फल उत्पादन क्षेत्र की स्थिरता बनाए रखने के लिए तकनीकी और बाजार आधारित समाधान अपनाना ज़रूरी है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सके।


