जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में खाद्यान संकट- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में खाद्यान संकट- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
ग्रीनपीस ने खतरे पर काबू पाने के लिये अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने की लगायी गुहार
नई दिल्ली। 31 मार्च 2014। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन के लिये बने अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की नयी रिपोर्ट को आज जापान में जारी किया गया। इस रिपोर्ट ने दुनिया भर में चेतावनी की घंटी बजा दी है। ग्रीनपीस इंडिया ने भारतीय नेताओं से रिपोर्ट में दिये गये चेतावनी पर ध्यान देने की मांग की है। साथ ही, उसने तेजी से स्वच्छ और सुरक्षित ऊर्जा की तरफ बढ़ने की गुहार लगायी है।
आईपीसीसी ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहले से ही सभी महाद्वीपों और महासागरों में विस्तृत रुप ले चुका है। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु गड़बड़ी के कारण एशिया को बाढ़, गर्मी के कारण मृत्यु, सूखा तथा पानी से संबंधित खाद्य की कमी का सामना करना पड़ सकता है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले भारत जैसे देश जो मानसून पर ही निर्भर हैं के लिये यह काफी खतरनाक हो सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से दक्षिण एशिया में गेंहू की पैदावार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वैश्विक खाद्य उत्पादन धीरे-धीरे घट रहा है। आईपीसीसी के अध्यक्ष आरके पचौरी ने यह भी कहा कि दुनिया के कुछ हिस्सों में बहुप्रचारित हरित क्रांति अब स्थिर हो चुका है।
साथ ही एशिया में तटीय और शहरी इलाकों में बाढ़ की वृद्धि से बुनियादी ढाँचे, आजीविका और बस्तियों को काफी नुकसान हो सकता है। ऐसे में मुंबई, कोलकाता, ढाका जैसे शहरों पर खतरे की संभावना बढ़ सकती है। जलवायु परिवर्तन से खतरे वास्तविक हैं, इस बात को आईपीसीसी कार्य समूह दो के रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है। 'जलवायु परिवर्तन 2014: प्रभाव, अनुकूलन और जोखिम' शीर्षक से रिपोर्ट जारी किया गया है। ग्रीनपीस की कैंपेनर अरपना उडप्पा ने कहा कि ‘यह स्पष्ट है कि कोयला और उच्च कार्बन उत्सर्जन से भारत के विकास और अर्थव्यवस्था पर धीरे-धीरे खराब प्रभाव पड़ेगा और देश में जीवन स्तर सुधारने में प्राप्त उपलब्धियां नकार दी जायेंगी। कुछ ही दिनों में भारत फिर से वोट डालने वाला है और नयी सरकार भी जलवायु परिवर्तन से भारत को होने वाले जोखिम से बेखबर नहीं हो सकता है’।
हाल ही में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में करीब 12 लाख हेक्टेयर में हुये ओला वृष्टि से गेहू, कॉटन, ज्वार, प्याज जैसे फसल खराब हो गये थे। ये घटनाएँ भी आईपीसीसी की अनियमित वर्षा पैटर्न को लेकर किए गये भविष्यवाणी की तरफ ही इशारा कर रहे हैं।
आईपीसीसी ने इससे पहले भी समग्र वर्षा में कमी तथा चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि की भविष्यवाणी की थी। उडप्पा कहती हैं कि “इस रिपोर्ट में भी गेहूं के उपर खराब प्रभाव पड़ने की भविष्यवाणी की गयी है। इसलिये भारत सरकार को इस समस्या से उबरने के लिये सकारात्मक कदम उठाने होंगे”।
लेकिन इस रिपोर्ट में केवल निराश करने वाली बातें नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चेतावनी को अगर 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे किया जाएगा तो इससे मध्य तथा निचले स्तर के जोखिम कम होंगे। उडप्पा ने आगे कहा कि “नयी सरकार को तुरंत ही इस पर कार्रवायी करते हुये स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण से जुड़ी योजनाओं को लाना चाहिए”।
आपीसीसी रिपोर्ट में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन आदमी की सुरक्षा के लिये खतरा है क्योंकि इससे खराब हुये भोजन-पानी का खतरा बढ़ जाता है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से विस्थापन और हिंसक संघर्ष का जोखिम बढ़ता है।
ग्रीनपीस इंटरनेशनल की शांति सलाहकार जेन ममन ने कहा कि “तेल रिसाव और कोयला आधारित पावर प्लांट, सामूहिक विनाश के हथियार हैं। इनसे खतरनाक कार्बन उत्सर्जन का खतरा होता है। हमारी शांति और सुरक्षा के लिये हमें इन्हें हटा कर अक्षय ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए”।
ग्रीनपीस ने मांग की है कि नयी सरकार सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के साथ आयोजित जलवायु सम्मेलन में गंभीर प्रस्तावों के साथ भाग ले जो दुनिया और भारत को स्वच्छ तथा सुरक्षित ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करे।


