राहुल गांधी सामान्य दल के नेता नहीं है। वह ऐसे दल के प्रमुख नेता हैं जिसने भारत पर चार दशक से अधिक समय शासन किया है। सारी दुनिया का उनको, उनके परिवार और उनके दल को विराट अनुभव है। उनकी तुलना में नरेन्द्र मोदी और भाजपा डुईंया नेता और पार्टी हैं। इन दोनों को न्यूनतम अनुभव और ज्ञान है।

राहुल गांधी जब बोलते हैं तो वे अपनी पूरी विरासत के अनुभव के साथ बोलते हैं, भाजपाईयों ने उनकी इस पृष्ठभूमि की उपेक्षा की और आम लोगों में पप्पू-पप्पू कहकर उनको अनुभवहीन ठहराने की कोशिश की और मोदी को महा अनुभवी बताया जबकि मोदी-भाजपा को देखें और कांग्रेस-राहुल गांधी को देखें तो दोनों के अनुभवों में जमीन-आसमान का अंतर है।

पीएम मोदी ने एक अकल्पनीय विपत्ति में झोंक दिया है भारत की जनता को

राहुल गांधी के बार-बार आगाह करने के बावजूद उनकी अपील पर पीएम मोदी ने कोई ध्यान न देकर भारत की जनता को एक अकल्पनीय विपत्ति में झोंक दिया है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने जब सावधान किया था उसी समय उनसे बुलाकर नरेन्द्र मोदी को आसन्न संकट को समझकर उनके बताए रास्ते पर चलने की जरूरत थी लेकिन नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने अपने ही गढ़े नकली प्रचार अभियान में कैद रहकर राहुल गांधी की सलाह की उपेक्षा की। इसका परिणाम है कि भारत में भयानक बेकारी और गरीबी छाई हुई है।

राहुल की तुलना में मोदी : राहुल गांधी की वास्तविकता क्या है?

मोदी का गढ़ा प्रचार है कि राहुल गांधी पप्पू और कुछ नहीं जानता। जबकि वास्तविकता यह है राहुल गांधी मोदी से अधिक पढ़े लिखे हैं, ज्ञान में भी मोदी उनसे कोसों पीछे हैं, जीनियस शिक्षितों की सोहबत के मामले में भी मोदी पीछे हैं।

गांधी परिवार में देश-विदेश के सबसे जीनियस लोगों का निरंतर आना-जाना, उनकी सोहबत में राहुल गांधी की शिक्षा दीक्षा का होना स्वयं में उनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी ताकत है। इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी अपनी पूरी जिंदगी आरएसएस और सेठों के औसत बुद्धि के नीतिविहीन लोगों के सोहबत में रहकर बड़े हुए हैं और आज भी उनमें ही समय यापन करते हैं। नरेन्द्र मोदी के घर बुद्धिजीवियों का प्रवेश निषेध है, सारे देश में उन्होंने बुद्धिजीवियों के खिलाफ घृणित प्रचार अभियान संगठित किया है। जबकि कांग्रेस ने ऐसा घृणा अभियान तो आपातकाल में भी नहीं चलाया था।

दूसरी ओर राहुल गांधी के पास कांग्रेस की समृद्ध विरासत है जिसके पास देश की हरेक समस्या की रीयल पकड़ है। नीतियों की गहरी समझ है। ऐसी अवस्था में आर्थिक संकट और करप्शन को लेकर राहुल गांधी की राय पर पीएम मोदी को ध्यान देकर उनकी सलाह से काम करना चाहिए था लेकिन मोदी और उनकी मंडली ने उनकी राय की उपेक्षा की और देश को स्थायी नरक के हवाले कर दिया है। इसकी वजह से भारत के जन-धन की अकल्पनीय क्षति हुई है। राहुल गांधी की बातों पर गौर करने की बजाय राहुल गांधी को सदन से बाहर कर देना। उनकी सदस्यता खत्म कर देना, अपने आपमें शत्रुतापूर्ण कदम है। इससे राहुल गांधी की बातें पुष्ट होती हैं। उन्होंने कहा कि देश पर संकट है, लोकतंत्र खतरे में है। अदानी लूट रहा है। इन सब बातों की पुष्टि होती है।

अभी भी समय है पीएम मोदी पहल करके राहुल गांधी के उठाए सवालों पर विचार करें और कांग्रेस से सलाह करें, जिससे संभावित क्षति को कम किया जा सके।

दूसरी बात यह कि सोशल मीडिया पर बुद्धिजीवियों, राहुल गांधी और दूसरे बड़े कांग्रेस नेताओं के खिलाफ विषवमन बंद होना चाहिए। यदि मोदी एंड कंपनी के इशारे और प्रौपेगैंडा के तहत विषवमन जारी रहा तो जो राक्षस हर गली- मुहल्ले में तैयार किए गए हैं वे राक्षसी हरकतों से समाज को और भी तकलीफ देंगे।

राहुल गांधी के खिलाफ चले निंदा अभियान पर रघुवीर सहाय की कविता याद आ रही है।

रघुवीर सहाय की कविता है-

'निंदा'-

'तुम निंदा के जितने वाक्य निंदा में कहते हो/ वे निंदा नहीं रह गए हैं और केवल तुम्हारी/ घबराहट बताते हैं/'

जगदीश्वर चतुर्वेदी

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