जाति वादी हैं हम जन्मजात, हममें से कोई राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता
जाति वादी हैं हम जन्मजात, हममें से कोई राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता
मुक्तबाजार के फर्जी हिंदुत्व एजेंडा के तहत विकास हुआ हो या न हुआ हो, जाति सबसे ज्यादा मजबूत हुई
दुनिया बदलने की जिद न हो तो नहीं बदलेगी दुनिया!
जाति उन्मूलन (Annihilation of caste) के लिए भी कोई मुहम्मद अली चाहिए जो राष्ट्र, राष्ट्रवाद, धर्म, सत्ता, कैरियर, साम्राज्यवाद, युद्ध और रंगभेद के खिलाफ मैदान दिखा दें!
पलाश विश्वास
इस महादेश में जनमने वाले हर मनुष्य स्त्री या पुरुष या ट्रांसजेंडर की जैविकी संरचना बाकी पृथ्वी और बाकी ब्रह्मांड के सत्य, विज्ञान और धर्म के विपरीत है क्योंकि हमारी कुल इद्रियां पांच नहीं छह हैं और सिक्स्थ सेंस हमारा जाति है (Sixth Sense is our caste) और बाकी सब कुछ नॉनसेंस हैं।
पांच जैविकी इंद्रियां भले काम न करें, लेकिन जन्मजात जो सिक्स्थ सेंस का मजबूत शिकंजा हमारे वजूद का हिस्सा होता है, धर्म भाषा क्षेत्र देश काल निरपेक्ष, वह अदृश्य इंद्रिय पितृसत्ता में गूंथी हुई हमारी जाति है।
जाति सिर्फ मनुस्मृति नहीं है।
जाति पितृसत्ता है और वंशवर्चस्व रंगभेद भी है तो निर्मम निरंकुश उत्पादन प्रणाली और अर्थव्यवस्था भी है जिससे हमारा इतिहास भूगोल देश परदेश भूत भविष्य वर्तमान विज्ञान तकनीक सभ्यता संस्कृति कुछ भी मुक्त नहीं है और मुक्तबाजार के फर्जी हिंदुत्व एजेंडा के तहत विकास हुआ हो या न हुआ हो, जाति सबसे ज्यादा मजबूत हुई है।
यही जाति फासिज्म की राजनीति है और फासिज्म का राजकाज मुक्तबाजार है
हमारे लिए शाश्वत सत्य जाति है।
हम जो भी कुछ हासिल करते हैं, वह हमारी जाति की वजह से है तो हम जो भी कुछ खो रहे होते हैं, उसकी वजह भी यही है।
जाति हमारा धर्म है, हमारा कर्म है, हमारा ईश्वर है।
जाति राजनीति है, सत्ता है, क्रयशक्ति है।
जाति मान सम्मान है, जान है, माल है।
हमारा कर्मफल हजार जन्मों से हमारा पीछा नहीं छोड़ता, यही हमारा हिंदुत्व है और हिंदुत्व ही क्यों, इस महादेश के हर देश में हर मजहब में इंसानियत का वजूद कुल मिलाकर यही जाति है। कर्मफल है। जाने अनजाने हम हजार जन्मों के पापों का प्रायश्चित्त अपनी अपनी जाति में बंधकर करते रहने को संस्कारबद्ध हैं और परलोक सिधारने से पहले इहलोक का वास्तव समझ ही नहीं सकते।
पीढ़ियों पहले हुए धर्मान्तरण के बावजूद अगवाड़े पिछवाड़े लगे जाति के ठप्पे से हमारी मुक्ति नहीं है।
मेधा और अवसर गैरप्रासंगिक हैं, जाति सबसे ज्यादा प्रासंगिक है और वही लोक परलोक का आधार है और बाकी आधार निराधार है।
सत्ता वर्ग के हुए तो अखंड स्वर्गवास वरना कुंभीपाक नर्कयंत्रणा उपलब्धि। अस्पृश्य दुनिया के मलाई दारों की औकात यही।
जाति हमारी जैविकी संरचना बन गयी है।
जाति राष्ट्र है तो जाति राष्ट्रवाद भी।
जाति देशभक्ति है तो जाति संप्रभुता।
नागरिक और मानवाधिकार, कानून का राज, संविधान, आजीविका, वजूद, प्रकृति और पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधन, संस्कृति, भाषा, साहित्य, माध्यम विधा जीवन के हर क्षेत्र में असमता और अन्याय का आधार है वहीं जाति।
फिर भी जाति कोई तोड़ना नहीं चाहता।
जो स्वर्गवासी हैं, वे देव और देवियां न तोड़ें तो बात समझ में आती है, लेकिन रोजमर्रे की जिंदगी जिनकी इस जाति की वजह से कुंभीपाक नर्क है, वे भी जाति से चिपके हुए जीते हैं, मरते हैं।
यही वजह है कि जाति इस महादेश में हर संस्था की जननी है।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी से बड़ा मिथ्या कुछ नहीं है जैसे सत्यमेव जयते भी सफेद झूठ है।
यथास्थिति बनाये रखने के अकाट्य सांस्कृतिक मुहावरे और मिथ दोनों।
हममें से कोई राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता क्योंकि हम जन्मजात जातिवादी हैं।
हममें से कोई सत्यवादी सत्यकाम हो ही नहीं सकता क्योंकि हम जनम से जातिवादी हैं।
हममें से कोई बौद्ध हो ही नहीं सकता क्योंकि बुद्धमं शरणं गच्छामि कहने से कोई बौद्ध नहीं हो जाता।
हमारा धर्म क्योंकि जाति है जो अभूतपूर्व हिंसा का मुक्त बाजार उतना ही है जितना हिंदुत्व का फर्जी ग्लोबल एजेंडा और श्वेत पवित्र रक्तधारा का असत्य उससे बड़ा, क्योंकि विज्ञान और जीवविज्ञान एक नियमों के मुताबिक विशुद्धता सापेक्षिक है तो सत्य भी सापेक्षिक है और अणु परमाणु परिवर्तनशील है, यह विज्ञान का नियम है तो प्रकृति का नियम है।
फिरभी हम प्राणहीन संवेदनहीन जड़ हैं और अमावस्या की काली अंधेरी रात हमारी पहचान है और कीड़े मकोड़े की तरह अंधकार के जीव हैं, इसका हमें अहसास भी नहीं है।
दुनिया बदलने की जिद न हो तो नहीं बदलेगी दुनिया।
फिरभी हम प्राणहीन संवेदन हीन जड़ हैं और अमावस्या की काली अंधेरी रात हमारी पहचान है और कीड़े मकोड़े की तरह अंधकार के जीव हैं, इसका हमें अहसास भी नहीं है।
क्योंकि जाति के आर पार हम किसी सीमा को तोड़ नहीं सकते।
क्योंकि जाति के आर पार हमारे कोई नागरिक मानवीय संवेदना हो ही नहीं सकते।
क्योंकि जाति के आर पार हम किसी से दिल खोलकर कह ही नहीं सकते, आई लव यू, आमि तोमाके भालोबासि।
हमारे सारे संस्कार और हमारे सारे मूल्यबोध, हमारा आचरण और हमारा चरित्र जाति के तिलिस्म में कैद है और उसी के महिमामंडन के अखंड कीर्तन में निष्णात हम निहायत बर्बर और असभ्य लोग हैं जो रोजमर्रे की ज़िन्दगी में अपने ही स्वजनों के वध के लिए पल प्रतिपल कुरुक्षेत्र रचते हैं और महाभारत धर्मग्रंथ है।
हम धम्म के पथ पर चल नहीं सकते जाति की वजह से।
हम कानून के राज के पक्ष में हो नहीं सकते जाति की वजह से।
हम समता और न्याय की बात नहीं कर सकते , जाति की वजह से।
हमारे लिए संविधान आईन कानून लोकतंत्र ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल अर्थशास्त्र दर्शन और नैतिकता कुल मिलाकर जाति है।
हम जनादेश में अपनी ही जाति का वर्चस्व तय करते हैं। हम जीते तो महाभारत और हम हारे भी तो महाभारत और देश कुरुक्षेत्र।


