निर्मल रानी

वैज्ञानिकों ने आम लोगों की सुख-सुविधाओं के मद्देनज़र तमाम ऐसे आविष्कार किए जो दुनिया के लोगों के लिए निश्चित रूपसे वरदान साबित हो रहे हैं। आज पूरा विश्व छोटे-से छोटे तथा बड़े से बड़े ऐसे सभी आविष्कारों के लिए दुनिया के वैज्ञानिकों का कृतज्ञ है और हमेशा रहेगा जिन्होंने कि मानव की सुख-सुविधाओं के मद्देनज़र कभी टार्च बनाई तो कभी बैटरी,कभी इन्वर्टर तो कभी मोबाईल फोन। यहां तक कि बैटरी चलित स्कूटर व कार से लेकर बड़े से बड़े विमान,पनडुब्बी तथा परमाणु हथियार व परमाणु ईंधन से चलने वाले बिजली घर तक हमारे वैज्ञानिकों ने हमारे ही आराम व फायदे के लिए बना डालें। ज़ाहिर है अपने प्रत्येक वैज्ञानिक आविष्कार को रचनात्मक रूप देने व इसे निर्मित कर इसे उत्पाद का रूप देने के अपने मानदंड भी इन वैज्ञानिकों द्वारा स्थापित किए गए। और इन्हीं वैज्ञानिकों द्वारा यह भी सुनिश्चित किया गया कि अमुक उत्पाद हेतु उसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्रियां किस श्रेणी की हों,कितनी हों तथा उन्हें किस प्रकार इस उत्पाद का अंग बनाकर इसे उसमें शामिल किया जाए।

परंतु समय बीतने के साथ-साथ लगता है वैज्ञानिकों की उन आशाओं व आकांक्षाओं पर पानी ही फिरता जा रहा है जिन्होंने किसी उत्पाद विशेष का आविष्कार कर उसके उत्पादन के कुछ मानदंड स्थापित किए थे। शायद कुछ उसी तरह जैसे कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान व माल की कुर्बानी देकर हमारे देश को इसलिए आज़ाद कराया था ताकि उनकी भावी पीढ़ी स्वाधीन हो कर अपने पैरों पर खड़ी हो और स्वतंत्र,शक्तिशाली एवं समृद्ध भारत का निर्माण करे। हमारा देश दिन रात फले-फूले व तरक्की करे। परंतु देश की धरातलीय स्थिति इसके ठीक विपरीत है यानी आज देश के रक्षक ही देश के भक्षक बने दिखाई दे रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल वैज्ञानिकों व उनके आविष्कार को लेकर उनकी आकंाक्षओं तथा उनके आविष्कार को उत्पादन के स्तर तक ले जाने वाले मुनाफाखोर उत्पादकों के बीच देखा जा रहा है। देश के किसी न किसी कोने से आए दिन कोई न कोई ऐसे समाचार अवश्य प्राप्त होते हैं जिनके द्वारा कभी कहीं से किसी इन्र्वटर के फट जाने की खबर मिलती है तो कहीं इन्वर्टर के साथ की बैटरी में धमाका हो जाता है। कहीं फ्रिज का कम प्रेसर फट रहा है तो कहीं एयर कंडीशनर में धमाके की खबरें मिल रहीं हैं। यहां तक कि विदेशी कंपनियों के मोबाईल फोन व उनमें लगी बैटरी में भी धमाके की खबरें आ चुकी हैं।

ताज़ातरीन दिल दहलाने वाला ऐसा ही हादसा गत दिनों उत्तर प्रदेश के मेरठ जि़ले के ब्रहमपुरी इलाके में हुआ। यहां एक युवा दंपत्ति अपने एक बेटे के साथ एक कमरे में सो रहा था। इसी दौरान अचानक इन्वर्टर के साथ रखी बैटरी में ज़ोरदार धमाका हुआ जिससे बैटरी व इन्वर्टर दोनों में विस्फोट हो गया। परिणामस्वरूप कमरे में आग लग गई तथा पूरे कमरे में धुआं भी फैल गया। इस तीन सदस्यों के बदनसीब परिवार को इतनी मोहलत भी न मिल सकी कि वे कमरे का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल कर स्वयं को बचा पाते और आखिरकार दम घुटने से तीनों की मौत हो गई। प्रारंभिक जांच पड़ताल में यही पाया जा रहा है कि इन्वर्टर तथा बैटरी दोनों ही किसी स्थानीय फैक्टरी में बनवाए गए थे जो कि उत्पाद के मानक पर पूरी तरह खरे नहीं थे,

इस प्रकार के हादसे प्राय: हमारे देश में कहीं न कहीं होते ही रहते हैं। कुछ समय पूर्व पंजाब में भी ए सी फटने की खबर आई थी। नोएडा व दिल्ली से भी ऐसे कई समाचार आ चुके हैं। गोया ऐसा लगता है कि अपने चंद पैसों की बचत की खा़तिर ऐसे उद्योगों के स्वामी आम लोगों की जान व माल की कोई परवाह नहीं करते। अर्थात् इस निजी क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार अपनी जगह बना चुका है। उदाहरण के तौर पर यदि आप छब्बीस या सत्ताईस प्लेट की बैटरी खरीदने जाएं तो दुकानदार या बैटरी बनाने वाली स्थानीय फैक्टरी का मालिक आपको बाईस या तेईस प्लेट की बैटरी को ही पच्चीस या सत्ताईस प्लेट की बैटरी बता देगा। और ऐसी बैटरी में सिक्का तथा तांबा भी निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं पड़ता। यही हाल इनवर्टर तथा स्टेबलाईजऱ जैसी संवेदनशील विद्युत सामग्रियों का भी है। एल्युमिनियम की बांईंडिग किए गए ट्रांसफार्मर को तमाम अधिक मुनाफाखोर व ठग प्रवृति के दुकानदार कॉपर का बताकर ग्राहक से मोटे पैसे ठग लेते हैं। ऐसे दुकानदारों व लघु उद्योगों के मालिकों को उपभोक्ताओं की जान व माल की परवाह कतई नहीं होती। बल्कि इनका ध्यान तो केवल इस ओर रहता है कि कम से कम लागत में ज़्यादा से ज़्यादा पैसे किस प्रकार कमाए व बचाए जाएं। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि लोगों की जान व माल से खिलवाड़ करने की शर्तों पर कमाई गई दौलत पर भी यह स्वयं को एक सफल व्यवसायी कहने से बाज़ नहीं आते। शायद ऐसे इंसानों से ही आजिज़ होकर शायर को कहना पड़ा है-

किस कदर उरूज पे है पस्ती-ए-इनसान । गुनाह करके भी नाज़ां दिखाई देता है।।

साधारण उपभोक्ताओं के इस प्रकार के संकटों में पडऩे तथा जानबूझ कर अपनी व अपने परिवार के जान व माल पर खेल जाने का एक कारण यह भी है कि स्थानीय उत्पाद की वस्तुएं अथवा देसी उत्पाद आमतौर पर उपभोक्ताओं को न केवल सस्ती उपलब्ध होते हैं बल्कि ऐसी सामग्रियां किश्तों पर भी उपलब्ध हो जाती हैं। और इसी लालचवश या फिर कहिए कि आर्थिक तंगी के चलते मजबूरीवश एक मध्यमवर्गीय व निम्र मध्यमवर्गीय उपभोक्ता ऐसे घटिया उत्पाद खऱीदने को मजबूर हो जाता है। परिणामस्वरूप ऐसे घटिया उत्पाद जिन्हें हमारे देश के लोग 'देसी माल कहकर संबोधित करते हैं, के उत्पादन व इनके बाज़ार में बिकने का सिलसिला यूं ही निर्बाध चलता रहता है। न तो सरकार या प्रशासन इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई करता है न ही गरीब व मध्यम वर्गीय उपभोक्ता इनसे सामान खरीदने या किश्तों पर सामान लेने से बाज़ आता है।

ऐसा भी नहीं है कि इस प्रकार के हादसे केवल देसी उत्पादों के साथ ही घटित होते हों। पिछले दिनों तो भारत में पूरे देश से दर्जनों ऐसे समाचार मिले जिनसे यह पता चला कि विश्वस्तरीय नोकिया कंपनी के मोबाईल फोन में डाली जाने वाली बैटरी में कई जगह धमाका हुआ। कई लोग इसमें घायल भी हुए। किसी की जेब में रखा मोबाईल फोन फटा तो किसी का फोन उस समय फटा जब वह किसी व्यक्ति से अपने मोबाईल फोन से बात कर रहा था। जबकि कुछ मोबाईल फोन उस समय फटे जबकि वे बैटरी चार्जिंग हेतु विद्युत सप्लाई लाईन में लगाए गए थे। परंतु नोकिया जैसी कंपनी जिसमें कि गुणवत्ता नियंत्रण पर ज़ोर दिया जाता है तथा ऐसी बड़ी कंपनियों में उत्पाद की गुणवत्ता नियंत्रण हेतु विशेष विभाग भी बनाए गए हैं, से इस बात की उ मीद कतई नहीं की जा सकती कि उन्होंने चंद पैसे बचाने की खातिर अपना घटिया माल भारतीय बाज़ारों में उतार दिया हो। और यही वजह थी कि जैसे ही नोकिया कंपनी को मीडिया के माध्यम से ऐसे समाचार मिले कि उनके मोबाईल फोन की बैटरियों में विस्फोट हो रहा है तथा उपभोक्ताओं की जान को खतरा पैदा हो गया है,कंपनी ने अत्यंत साहसिक व नैतिकतापूर्ण कदम उटाते हुए पूरे भारतवर्ष में उन बैटरीज़ को ग्राहकों से वापस लेने तथा उनके स्थान पर दूसरी नई बैटरी देने का फैसला कर लिया। मुझे नहीं मालूम कि इस प्रकार की शिकायत मिलने पर किसी भारतीय उद्योग द्वारा भी कभी ऐसा $फैसला लिया गया हो।

नौकिया कंपनी द्वारा बैटरीज़ वापस लिए जाने के बाद खबर यह भी थी कि नोकिया ने उस कंपनी से भी अपना $करार रद्द कर दिया जो उसके द्वारा निर्धारित मानदंडों पर बनी मोबाईल बैटरी की आपूर्ति नोकिया को किया करती थी। यहां सोचने का विषय यह है कि नोकिया कंपनी द्वारा अपना विवादित उत्पाद वापस लेकर सैकड़ों करोड़ का घाटा आखिर क्यों उठाया गया। सिर्फ इसलिए कि नोकिया की बाज़ार में जो प्रतिष्ठा कायम थी वह बनी रहे तथा उसपर कोई धब्बा न लगने पाए। और ऐेसे ही साहसिक फैसले के परिणामस्वरूप भारतीय बाज़ार में आज भी नोकिया की वही प्रतिष्ठा व साख बरकरार है जो इस घटना से पूर्व थी। परंतु हमारे देश में तो तमाम देसी उत्पाद बनाने वाले उद्योगपत्तियों व इन्हें बेचने वाले व्यापारियों की सोच ही कुछ निराली है। यहां तो मान-प्रतिष्ठाा और इज़्ज़त नाम की वस्तु शायद ऐसे व्यवसायीगण जानते ही नहीं। उन्हें तो केवल अपने लिए अधिक से अधिक पैसा कमाने व संग्रह करने से ही वास्ता है। संभवत: न तो इन्हें अपनी कंपनी या $फर्म के नाम व प्रतिष्ठा की कोई फ़िक्र है न ही किसी उपभोक्ता की जान व माल की कोई परवाह। परिणामस्वरूप ऐसे हादसे होते ही रहते हैं और सभवत: भविष्य में भी इन्हें रोक पाना आसान नहीं है।

लिहाज़ा ऐसे में जबकि तमाम देसी सामग्री के भारतीय उत्पादक अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हों, उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे स्वयं अपनी जान व माल की रक्षा के उपाय करें। सर्वप्रथम उपभोक्ता सस्ते सामानों के चक्कर में पडऩे व घटिया उत्पाद खरीदने से परहेज़ करें। कोशिश करें कि जहां वह देसी उत्पाद खरीदने हेतु थोड़े पैसों का प्रबंध कर रहे हैं वहीं कुछ और पैसों का इंतज़ाम कर स्टैंडर्ड की कंपनी का गारंटेड माल ही खरीदें। और यदि जेब इजाज़त नहीं दे और मजबूरी वश सस्ता व देसी माल खरीदना ही पड़े तो विक्रेता से माल के विषय में पूरा विवरण हासिल करें वह भी मौलिक नहीं बल्कि लिखित रूप से उससे उत्पाद की विश्वसनियता की पूरी गारंटी लें ताकि ज़रूरत पडऩे पर वह अपने वचन से मुकर न सके। इसके अतिरिकत ऐसे संवेदनशील सामान के प्रयोग हेतु कंपनी द्वारा दी गई सभी हिदायतों का भी पूरा पालन करें। इसके साथ-साथ प्रशासन का भी यह कर्तव्य है कि वह बाज़ार पर इस बात की नज़र रखे कि दुकानदार द्वारा उपभोक्ताओं को कौन सा माल क्या कहकर व क्या बताकर बेचा जा रहा है। झूठ बोल कर व गुमराह कर उपभोक्ता को अपना सामान बेचने वाले व्यापारियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की भी ज़रूरत है। अन्यथा उपभोक्ताओं के जान व माल के नुकसान को शायद रोका नहीं जा सकेगा।