जानिए वायु प्रदूषण से होते हैं कौन-कौन से कैंसर
जानिए वायु प्रदूषण से होते हैं कौन-कौन से कैंसर
जानिए वायु प्रदूषण से होते हैं कौन-कौन से कैंसर
"Cancer air pollution"
वायु प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के परस्पर संबंध के बारे में दशकों से जानकारी है और यह भी कि वायु प्रदूषण कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।
2013 में, इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) ने बाहरी वायु प्रदूषण को कैंसर का कारण माना था।
वायु में पीएम की मात्रा 2.5 से अधिक होने के साथ ही फेफड़ों के कैंसर का जोखिम भी बढ़ जाता है।
मैक्स हैल्थकेयर के कैंसर रोग विभाग के मुख्य परामर्शदाता डॉ गगन सैनी ने कहा,
फेफड़ों के कैंसर संबंधी आंकड़ों के अध्ययन से कैंसर के 80,000 नए मामले सामने आए हैं। इनमें धूम्रपान नहीं करने वाले भी शामिल हैं और ऐसे लोगों में कैंसर के मामले 30 से 40 फीसदी तक बढ़े हैं। इसके अलावा, मोटापा या मद्यपान भी कारण हो सकता है, लेकिन सबसे अधिक जोखिम वायु प्रदूषण से है।
Environmental pollution is a cause for cancer
डॉ गगन सैनी का कहना है कि
“वायु प्रदूषण न सिर्फ फेफड़ों के कैंसर से संबंधित है बल्कि यह स्तन कैंसर, जिगर के कैंसर और अग्नाशय के कैंसर से भी जुड़ा है। वायु प्रदूषण मुख और गले के कैंसर का भी कारण बनता है। ऐसे में मनुष्यों के लिए एकमात्र रास्ता यही बचा है कि वायु प्रदूषण से मिलकर मुकाबला किया जाए। संभवतः इसके लिए रणनीति यह हो सकती है कि इसे एक बार में समाप्त करने की बजाय धीरे-धीरे प्रदूषकों को घटाने के प्रयास किए जाएं और इस संबंध में सख्त कानून भी बनाए जाएं।
भारत को वायु प्रदूषण से बढ़ते खतरों के बारे में और जागरूक बनना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले लक्षणों को समझना और तत्काल डॉक्टर से परामर्श करना जरूरी है।“
वायु प्रदूषण के निशाने पर बच्चे, दुनिया के 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे रोजाना लेते हैं दूषित हवा में सांस
वायु प्रदूषण एवं बाल स्वास्थ्य पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक नयी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 15 साल से कम उम्र के करीब 93 प्रतिशत बच्चे (1.8 अरब) रोजाना ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, जो इतनी प्रदूषित है कि उससे उनके स्वास्थ्य तथा शारीरिक विकास पर गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है। यह त्रासद है कि उनमें से कई की मौत हो चुकी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2016 में गंदी हवा के कारण श्वसन तंत्र में गम्भीर संक्रमण उत्पन्न होने से 6 लाख बच्चों की मौत हो गयी थी।
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( नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। यह समाचारों में उपलब्ध सामग्री के अध्ययन के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य से तैयार की गई अव्यावसायिक रिपोर्ट मात्र है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)
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