जिंदा रहकर लड़ना सिखाते हैं अमरकांत
जिंदा रहकर लड़ना सिखाते हैं अमरकांत
अमरकांत की कहानी लंबी इसीलिये है क्योंकि ज़िंदगी की तस्वीर फ्रेम से बड़ी होती है
प्रलेस इंदौर ने किया अमरकांत स्मरण कार्यक्रम आयोजित
इंदौर। प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई ने 2 मार्च को प्रसिद्ध कहानीकार अमरकांत स्मरण कार्यक्रम आयोजित किया। देवी अहिल्या केंद्रीय ग्रंथालय के अध्ययन कक्ष में आयोजित इस कार्यक्रम में अमरकांत की कहानी डिप्टी कलक्टरी का पाठ इकाई के सदस्यों ने किया और इसके बाद कहानी पर परिचर्चा हुई।
अमरकांत का हाल ही में निधन हुआ है। इकाई के सचिव अभय नेमा ने लेखक का परिचय देते हुये बताया कि अमरकांत का जन्म 1925 में उत्तर प्रदेश के बलिया के ग्राम नगरा में हुआ था। 1942 के स्वतंत्रता संग्राम में कूदने के कारण उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। अंततः 1946 में बलिया से इंटर किया। 1947 में इलाहाबाद विवि से बीए करने के बाद 1948 में आगरा के दैनिक पत्र सैनिक में काम किया। वे आगरा में ही प्रगतिशील लेखक संघ के संपर्क में आए। अनेक पत्रिकाओं से संबद्ध रहे। इसी दौरान कहानी लिखना शुरू किया। अमरकांत को प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी कहानियों का प्रमुख कहानीकार माना जाता है। उन्हें भारत का गोर्की भी कहा जाता है। उनके प्रकाशित कहानी संग्रह में जिंदगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र मिलन, कुहासा हैं। उपन्यासों में सूखा पत्ता, आकाश पक्षी, काले-उजले दिन सुखजीवी, बीच की दीवार, ग्राम सेविका और बाल उपन्यास वानर सेना है।
कहानी डिप्टी कलेक्टरी का पाठ ब्रजेश कानूनगो, एसके दुबे, अश्विनि कुमार दुबे, केसरी सिंह चिढार, अभय नेमा ने किया। कहानी पर परिचर्चा की शुरुआत में चैतन्य त्रिवेदी ने कहा कि इस कहानी का कालखंड देश और समाज का स्वपनिल समय था। लोग बहुत से सपनों और कल्पना के साथ आगे बढ़ रहे थे। कहानी मध्यमवर्गीय मानसिकता की पड़ताल करती है। कहानी में शहरी मध्यमवर्ग का परिदृश्य खड़ा किया गया है। अमरकांत की कहानियां, मार्कंडेय और शेखर की कहानियों से अलग परिदृश्य खड़ा करती हैं। कहानी में विवरण विस्तार से है।
अरविंद जोशी ने कहा कि कहानी का फलक व्यापक है। कहानी उस वक्त के मूल्य बताती है। एक पिता के लिये उसके पुत्र का सही सलामत सामने रहना ही महत्वपूर्ण है। आज बेटे का कार्पोरेट कंपनी में या विदेश में रहना महत्वपूर्ण है। सीमा व्यास ने कहा कि कहानी रुककर एक समय की पड़ताल करती है। एक कालखंड को समझने के लिये यह ठहराव जरूरी है। तौफीक गौरी ने कहा कि कहानी के हालात आज के हालात से मिलते-जुलते हैं। बेटे की नाकामयाबी से दुख होता है और यदि बेटा कामयाब भी हो जाता है तो भी माँ-बाप के हिस्से में दुख ही आता है। लेखक का जोर इसी बात पर रहा है कि उसका बेटा उसके सामने सुरक्षित रहे। कहानी एक आम हिंदुस्तानी की सोच और मध्यम वर्ग का दोगलापन उजागर करती है।
जीतेंद्र चौहान ने कहा कि कहानी में मध्यमवर्गीय पिता की आकांक्षा बताई गई है। कहानी की भाषा सरल है।
ब्रजेश कानूनगो ने कहा कि यह मनोवैज्ञानिक कहानी है। बच्चों और पालक के रिश्तों पर यह लंबी कहानी है।
तपन भट्टाचार्य का कहना था कि कहानी एक कालखंड को सामने रखती है। आदिवासी समाज में यह कालखंड अब भी जीवित है। एस के दुबे ने कहा कि आकांक्षाओं के चलते समझौते किए जाते हैं। सुविधाएं जुटाई जाती हैं। कहानी में 4-6 महीने का कालखंड समेटा गया है। कहानी का अंत निराशाजनक नहीं है। पिता बेटे के लिये सिगरेट लाता है, भगवान पर भरोसा करता है। आज के संदर्भ में पिता की महत्वाकांक्षा व्यापमं जैसे घोटाले करवा रही है।
अश्विनी कुमार दुबे ने कहा कि यह अपने दौर की चर्चित कहानी है। उस वक्त रेणु ग्रामीण अंचल की कहानी लिख रहे थे, वहीं अमरकांत शहरी मध्यम वर्ग की विसंगतियों को अपनी रचनाओं में उतार रहे थे। कहानी की खासियत यही है कि अंत में पिता कहते हैं कि हमें लड़ना अपनी मेहनत, श्रम और साधना से ही है। यह एक अच्छी बात है। एक पिता यह सोचता है कि जिंदा रहना जरूरी है, हमारे हथियार भोथरे नहीं हुये हैं और हम लड़ेंगे। अमरकांत ने अपने कालखंड की विसंगतियों को व्यापक फलक पर उतारा है। अमरकांत की कहानी लंबी इसीलिये है क्योंकि ज़िंदगी की तस्वीर फ्रेम से बड़ी होती है।
केसरीसिंह चिढ़ार ने कहा कि उस दौर में जो बच्चे फेल होते थे वे निराश नहीं होते थे। उनका जीवट मजबूत होता था। वे हताशा को हावी नहीं होने देते थे। यही मूल्य इस कहानी में अभिव्यक्त होता है।
प्रलेस मध्यप्रदेश के महासचिव विनीत तिवारी ने कहा कि आज का मध्यमवर्ग कहीं अधिक जटिल और बहुपरतीय है। प्रेमचंद के बाद अमरकांत ने इस जटिल यथार्थ को रेखांकित करने की भाषा विकसित की, उन्होंने भाषा के अंत की घोषणा नहीं की।
अभय नेमा ने कहा कि अमरकांत ने मध्यमवर्गीय मनोभावों का सजीव चित्रण किया है। बेटे को सिगरेट का पैकेट पहुंचाना आधुनिकता न होकर मध्यमवर्गीय अवसरवाद का परिचायक है। प्रमुख पात्र के अवसाद और उससे उबरने की प्रक्रिया का सुंदर चित्रण किया गया है। कहानी के कुछ हिस्से फिल्म का आभास देते हैं।
सारिका श्रीवास्तव ने कहानी को उम्दा बताया। कार्यक्रम के अंत में आभार माना केसरी सिंह चिढ़ार ने।


