जेपी- आज भी तलाश है इस अंधेरी कोठरी में किसी रोशनदान की, जबकि अंधेरा और गहराता जा रहा है.......

बिपेन्द्र कुमार

आठ अक्तूबर 1979 की वह सुबह . . . .

भुलाये नहीं भूलती वह सुबह जब जेपी के निधन की खबर पहुंची थी।

उस वक्त मैं पटना कॉलेज में पढ़ता था और लंगरटोली में अजय भवन के सामने वाले मकान में रहता था।

ख़बर मिलते ही जेपी आवास यानी महिला चर्खा समिति के लिए निकल गया था।

वहां पहुंचने के पहले ही कदमकुआं की उस संकरी गली में पांव रखने की जगह नहीं थी।

बताया गया कि सब लोग श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल पहुंचें। वहीं अंतिम दर्शन के लिए लोकनायक को रखा जाएगा।

कदमकुआं से गांधी मैदान पैदल पहुंचते-पहुंचते तो श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल परिसर से लेकर आगे की सड़क तक जनसैलाब पसर चुका था। उसके बाद लोगों को कतार में लगाने का काम शुरू हुआ।

देखते- देखते चाहरदिवारी पार कर आधा गांधी मैदान तक कतार लग गयी।

जेपी को श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल के बरामदे में रखा गया था।

लोग एक ओर की सीढ़ी से चढ़कर पुष्प अर्पित कर दूसरी ओर की सीढ़ी से नीचे उतर जा रहे थे।

घंटों की प्रतीक्षा के बाद हर व्यक्ति के पास बस कुछ सेकेंड था अंतिम दर्शन के लिए।

यह सिलसिला पूरी रात चलता रहा।

हम लोग दुबारा रात बारह बजे आये, तब भी उतनी ही लंबी कतार लगी हुई थी। हॉल के मेनगेट के पास जूता-चप्पल का ढेर जमा था।

मतलब कि भीड़ में जिनका भी जूता-चप्पल दूसरे के पांव से दबकर निकला वे अपना जूता-चप्पल वापस नहीं ले सके थे। पटना के चारों ओर की सड़कों से जनसैलाब तो उमड़ ही रहा था पीछे की गंगा भी नावों से पट गयी थी।

गंगा पार के लोग नाव से आ रहे थे।

बेमिसाल जनसैलाब था। सबसे बड़ी खासियत यह जनसैलाब उस लोकनायक के लिए उमड़ी थी जिसने ताउम्र खुद को सत्ता से दूर रखा।

अगले दिन अंतिम यात्रा शुरू होने तक तो पूरे देश के तमाम बड़े नेता पहुंच चुके थे। बड़े नेताओं में कौन नहीं आया था, याद कर पाना मुश्किल है। सबसे अधिक उम्र के नेता आचार्य कृपलानी थे।

91 वर्षीय कृपलानी की आँखे अपने जेपी को तलाश रही थीं। उन्होंने कहा था, मुझे छोड़ तू क्यों चला गया।

अंतिम यात्रा शुरू हुई तो इंदिरा गांधी को देख कुछ अति उत्साही युवक मुर्दाबाद का नारा लगाने लगे। शव वाली गाड़ी पर सवार चंद्रशेखर ने डांटकर उन्हें ऐसा करने से रोका।

जनसैलाब देख गांधी संग्रहालय के आगे बांसघाट पहुंचने वाले रास्ते को आम लोगों के लिए रोक दिया गया तो हजारों लोग गंगा के किनारे-किनारे कीचड़-पानी को पार करते बांस घाट पहुंच गए। उस वक्त भी गंगा हर ओर से नावों से घिरी हुई थी।

बिहार आंदोलन के दौरान दुष्यंत कुमार ने जेपी के बारे में लिखा थाः

एक बूढ़ा है मुल्क में, या यूं कहें

इस अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान है।......

अतीत को याद करने पर पाता हूं कि जेपी की अंतिम यात्रा से वापस आये जनसैलाब को आज भी तलाश है इस अंधेरी कोठरी में किसी रोशनदान की, जबकि अंधेरा और गहराता जा रहा है। .......

लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन।

वरिष्ठ पत्रकार बिपेंद्र कुमार की फेसबुक टाइमलाइन से साभार