जेसीबी मशीनों ने छलनी कर दिया हिमालय
जेसीबी मशीनों ने छलनी कर दिया हिमालय
अंबरीश कुमार
मैंने पिछले 20 साल से उत्तराखण्ड को बदलते हुए देखा है। शिप्रा नदी लुप्त हो गई। वहां बिल्डरों ने बहुत सा निर्माण कार्य किया। पहले तो धारा मोड़ी और फिर स्रोत को भी पाट दिया और लगभग सभी जल स्रोतों के साथ यही हाल है। पहले पहाड़ में जितनी भी सड़कें बनती थीं उसमें हाथ से पहाड़ को काटा जाता था जिससे पहाड़ को उतना नुकसान नहीं होता था लेकिन आज जेसीबी मशीन की मदद से कटान का काम किया जाता है जिसके कारण पहाड़ पूरी तरह से हिल जाते हैं। वहां जेसीबी मशीन को चलाने वाला ही एक तरह से इंजीनियरी का काम करता है उसे जैसा और जिस तरह से समझ आता है वो पहाड़ में मशीन चलाता है।
कुमाऊं की ओर पहाड़ों का कटान कम हुआ है जबकि गढ़वाल की ओर ज्यादा पहाड़ काटे गए हैं। वहां किसी ने हिमालयन हाइट सोसाइटी बनाई तो आस-पास के पानी के सभी स्रोत नष्ट कर दिए यहां तक कि पहाड़ी इलाके अल्मोड़ा में अप्रैल-मई में पानी का संकट शुरू हो जाता है। जिसके विरोध में कई आन्दोलन भी हुए। उसी तरह से बिहार में आज से 20 साल पहले तक वहां के लोग बाढ़ आने का स्वागत करते थे क्योंकि बाढ़ के कारण उनके खेतों में सिंचाई होती थी और उसी दौरान निमार्ण कार्य भी हुआ करते थे क्योंकि पानी की कमी नहीं होती थी लेकिन जब से नदियों के किनारे तटबंध बने और उन्हें बांधा गया तो तब से नेपाल से जो बाढ़ आती है वो तटबंधों को तोड़ती है और उससे भीषण तबाही होती है।
हम जब भी पर्यावरण या उसे बचाने की बात करते हैं तो वो कुछ सीमित लोगों के बीच में ही करते हैं हमें इसे छात्रों और शिक्षकों के बीच में भी ले जाना चाहिए। हम सोच रहे हैं कि पांचवी या दसवीं के छात्रों को पर्यावरण पर एक व्याख्यानमाला दें। पर्यावरण के मुद्दे को आम लोगों के बीच में ले जाएं, शहरों से गांवों की ओर ले जाएं। स्कूल-कालेजों में पर्यावरण पर शोध होता रहता है तो हमें पर्यावरण के संबंध में एक मोटी समझ बनाने के लिए पर्यावरण से जुड़ा सिलेबस बनाने की आवश्यकता है जिसके माध्यम से और ज्यादा लोगों तक पहुंचा जा सकेगा।
(9 सितम्बर को हिमालय दिवस के मौके पर दिल्ली में हिमालय, पारिस्थितिकीय, लोगः भारतीय अभिजात्य वर्ग की भूमिका विषय पर बैठक में वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार का संबोधन)
प्रस्तुति - विजय लक्ष्मी ढौंडियाल
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