जो महान है, वह अनुकरणीय है, असफल मतलब अछूत !
जो महान है, वह अनुकरणीय है, असफल मतलब अछूत !
अभिषेक श्रीवास्तव
नरेंद्र मोदी के गुरु-चेला संवाद में दो बातें ध्यान देने योग्य हैं। पहली, दिल्ली के बाहर किन इलाकों के बच्चों से रेडीमेड सवाल लिए गए। मणिपुर से लेकर लेह और दंतेवाड़ा तक ऐसे तमाम क्षेत्र जहां किसी न किसी किस्म का सामाजिक-राजनीतिक संकट मौजूद है। मणिपुर के छात्र से कहा गया कि 2024 के चुनाव की वह तैयारी करे क्योंकि 'दस साल' तक तो मोदी सरकार को कोई ख़तरा नहीं है। याद रखें कि लाल किले से अपने संबोधन में भी प्रधान सेवक ने 'दस साल' तक सफ़ाई करने की बात कही थी। इसे इस परिप्रेक्ष्य में देखें कि संघ की हिंदू राष्ट्र बनाने की तीन चरण वाली रणनीति दस वर्षों की ही है क्योंकि 2025 में मोहन भागवत रिटायर हो रहे हैं और आरएसएस के 100 साल पूरे हो रहे हैं। इसी तरह दंतेवाड़ा की छात्रा से कहा गया कि 'माओवादी खून बहाकर बस्तर को लहूलुहान किए हुए हैं'। ध्यान रहे कि 2007 के बाद दूसरी बार नगा और मिज़ो आइआरबी बलों को बस्तर में तैनात करने तथा सलवा जुड़ुम की तर्ज पर सामुदायिक बल विकसित करने का केंद्र सरकार का प्रस्ताव लागू होने वाला है। यानी reconciliation की राजनीति के तहत उत्तर-पूर्व के आदिवासी एक बार फिर छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की जान लेंगे और इसे राष्ट्रवाद से जोड़ा जाएगा।
दूसरी बात, टीवी चैनलों ने निजी स्कूलों से बच्चों से 3 बजे के पहले दिन भर पूछा कि उन्हें मौका मिला तो वे क्या सवाल पूछेंगे। उन्हें मौका तो नहीं मिला, अलबत्ता सरकारी स्कूलों के बच्चों के 'रेडीमेड' सवालों की मार्फत निजी स्कूलों के बच्चों को संबोधित अवश्य किया गया। यानी सरकारी शिक्षण तंत्र का इस्तेमाल निजी शिक्षण तंत्र को साधने में काम आया। यह विरोधाभास ज्यादा स्पष्ट तौर पर प्रधानमंत्री के सुझावों में आप देख सकते हैं जब वे कहते हैं कि प्रकृति से प्रेम करो, लेकिन यह नहीं बताते कि जल, जंगल और ज़मीन को निजी कंपनियों के हाथों में बेचने की रफ्तार तेज़ करने के लिए उन्होंने महीने भर में 90,000 करोड़ की परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी दे दी है। वे कहते हैं कि चांदनी रात में टहलो, लेकिन ये नहीं बताते कि स्मार्ट सिटी की उनकी अवधारणा सूरज-चांद को निगल जाएगी। वे कहते हैं कि महान और सफल लोगों की जीवनियां पढ़ो, और इस तरह वे 90 फीसदी असफल व 99 फीसदी महानताविहीन लोगों से बच्चों की एक दूरी पैदा कर देते हैं। जो महान है, वह अनुकरणीय है। असफल मतलब अछूत।
ज़रा ध्यान से पूरा भाषण और संवाद सुनिए। बाज़ार, survival of the fittest और वर्गविहीन अंधनैतिकता की यह ऐसी ज़ायकेदार खिचड़ी है जो आगामी दस साल के राष्ट्रवादी एजेंडे को सुपाच्य बनाएगी और 2025 में इस देश की 70 फीसदी नौजवान पीढ़ी सब खा-पीकर डकार तक नहीं मारेगी।


