ज्ञान के साथ समाज से जुड़ना है लक्ष्य– प्रो. गिरीश्वर मिश्र
ज्ञान के साथ समाज से जुड़ना है लक्ष्य– प्रो. गिरीश्वर मिश्र
हिंदी विश्वविद्यालय का 18वां स्थापना दिवस समारोह का उद्घाटन
अहिंदी भाषी साहित्यकारों को हिंदी सेवी सम्मान प्रदान
वर्धा 29 दिसंबर, 2015: (आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सभागार) महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ज्ञान के साथ-साथ आसपास के परिवेश और समाज से जुड़कर शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलाव की दिशा में अग्रसर हो रहा है। भाषा और साहित्य के अलावा ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सहारे हम हिंदी को आगे ले जाने की दिशा में प्रयासरत है। विश्वविद्यालय गांधी जी के सामाजिक मॉडल को चरिचार्थ कर रहा है। उक्त उदबोधन कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने दिए। वे विश्वविद्यालय के 18वें स्थापना दिवस समारोह के उदघाटन के अवसर पर अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के प्रधानमंत्री प्रो. अनंतराम त्रिपाठी, सम्मान्य अतिथि के रूप में कथाकार श्रीमती चित्रा मुदगल एवं ओड़िया कथाकार प्रो. यशोधारा मिश्रा, कुलसचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र, महात्मा गांधी फ्यूजी गुरूजी शांति अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार, प्रदर्शनकारी कला विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुरेश शर्मा मंचासीन थे।
समारोह में विश्वविद्यालय की ओर से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे, हिंदी की सुप्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुदगल, ओडिया भाषा की साहित्यकार प्रो. यशोधारा मिश्रा, साहित्यकार जयराम गंगाधर फगरे, तेलुगु भाषा प्रो. एम. वेंकटेश्वर और मराठी भाषी साहित्यकार डॉ. छाया पाटील को अहिंदी भाषी लेखकों, साहित्यकारों, भाषाविदों को ‘हिंदी सेवी सम्मान’ से विभूषित किया गया। उन्हें कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र तथा प्रो. अनंतराम त्रिपाठी के हाथों प्रशस्ति पत्र, शॉल, नारियल एवं पुष्पगुच्छ प्रदान कर सम्मानित किया गया।
कुलपति प्रो. मिश्र ने कहा कि विश्वविद्यालय का जैसे-जैसे विस्तार हो रहा है वैसे हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ रही है और समाज से हमारे प्रति अपेक्षाएं भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में हिंदी की क्षमता को आगे बढ़ाने के लिए हमें समर्पित होकर कार्य करने होंगे। उन्होंने अध्यापक, अधिकारी एवं विद्यार्थियों से अपेक्षा व्यक्त की कि वें विश्वविद्यालय की विकास यात्रा में शामिल होकर आगे बढ़े। उन्होंने विश्वविद्यालय की अकादमिक गतिविधियां और शैक्षणिक पाठ्यक्रमों का जिक्र अपने वक्तव्य में किया। उन्होंने कहा कि पारंपारिक ज्ञान के साथ आधुनिक जीवन सवालों को टकराने की क्षमता विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में है। विद्यार्थियों को जीविका के लिए तैयार करना हमारे पाठ्यक्रमों के केंद्र में है। उन्होंने इस वर्ष में की हासिल की गईं कईं उपलब्धियों जैसे केंद्रीय विद्यालय, हिंदी शिक्षण एवं प्रशिक्षण केंद्र, शब्दकोश, समाजविज्ञान कोश तथा हिंदी समय डॉट कॉम आदि का जिक्र अपने वक्तव्य में किया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. अनंतराम त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर आज तक के इतिहास पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि 1975 में नागपुर में सम्पन्न प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव के आधार पर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी। कई उतार-चढ़ाव के बाद यह विश्वविद्यालय आज हिंदी भाषा, साहित्य और प्रौद्योगिकी को लेकर आगे बढ़ रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना काल से जुड़़ा होने का सौभाग्य मुझे मिला और आज मैं देख रहा हूं कि गांधी और विनोबा की कर्मभूमि में यह विश्वविद्यालय उनके विचार, संदेश और दर्शन के साथ विकसित हो रहा है। उन्होंने पूर्व के कुलपति और पूर्व कुलसचिव के योगदान को याद करते हुए उनके कार्यशैली का जिक्र अपने वक्तव्य में किया।
साहित्यकार श्रीमती चित्रा मुदगल ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में महाराष्ट्र को चेतना की भूमि की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि सभी ने मिलकर देखे सपने सच होते है और यह विश्वविद्यालय इसका एक उदाहरण है। इसकी नींव में जो इरादे किये थे वे ठोस से इसलिए आज इसे मजबूती मिल गयी है। उन्होंने विश्वास जताया कि हिंदी के विस्तार का सपना यह विश्वविद्यालय पूरा करेगा और इसके लिए विद्यार्थियों में प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
हिंदी सेवी सम्मान प्राप्त साहित्यकारों का वक्तव्य
हिंदी सेवी सम्मान प्राप्त प्रो. यशोधारा मिश्र ने कहा कि हिंदी मेरे लिए मातृभाषा से कतई कम नहीं है। जयराम गंगाधर फगरे ने कहा कि यह मेरे साथ-साथ महाराष्ट्र का भी सम्मान है। इससे और कार्य करने की ऊर्जा मिलेगी। डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे ने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी अधिक खुशी इस सम्मान से मिली है क्योंकि इस सम्मान के साथ मेरी स्मृतियां जुड़ी हुईं हैं। डॉ. छाया पाटील ने कहा कि वर्धा की पावन भूमि में प्राप्त इस सम्मान से मैं अभिभूत हुई हूं। प्रो. वेंकटेश्वर का सम्मान प्रो. के.के. सिंह ने स्वीकार किया। उन्हें दिए गये प्रशस्ति पत्र का वाचन प्रो. एल. कारूण्यकारा, प्रो. सूरज पालीवाल, प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल, प्रो. अरबिंद कुमार झा, प्रो. अनिल कुमार राय ने किया।
कार्यक्रम का प्रारंभ विश्वविद्यालय के कुलगीत एवं वैष्णव जन तो... से किया गया। संचालन डॉ. रामानुज अस्थाना ने किया और आभार कुलसचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने माना। राष्ट्रगान से समारोह का समापन हुआ।
चेतना का दीप हिंदी विश्वविद्यालय प्रदर्शनी का उद्घाटन
स्थापना दिवस समारोह से पूर्व ‘चेतना का दीप हिंदी विश्वविद्यालय’ प्रदर्शनी का उदघाटन अतिथियों के द्वारा अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ भवन में किया गया। डायस्पोरा, लीला, जनसंपर्क, प्रकाशन आदि विभागों द्वारा लगायी गयी इस प्रदर्शनी में विश्वविद्यालय का विकास एवं हिंदी के प्रचार-प्रसार के कार्यों को प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनी का संयोजन डायस्पोरा विभाग के डॉ. राजीव रंजन राय ने किया। प्रदर्शनी में मेघा आचार्य की चित्रकला एवं की दीप्ति ओगरे की हस्तकला प्रदर्शनी भी आकर्षण का केंद्र बनी।
‘गांधी-कलाम’ कार्टून चित्रकला प्रदर्शनी का उद्घाटन
समता भवन में गांधी-कलाम चित्रकला प्रदर्शनी का उदघाटन कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रो. अनंतराम त्रिपाठी एवं चित्रा मु्दगल प्रमुखता से उपस्थित थे। प्रदर्शनी में प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट विनय चाणेकर, राजीव गायकवाड़, अशोक बुलबुले, सुरेश राऊत, सतीश उपाध्याय एवं राहुल दहेकर सहित देशभर के तीस कार्टूनिस्ट के कार्टून प्रदर्शित किए गए है।
स्थापना दिवस समारोह की शुरूआत अतिथियों द्वारा गांधी हिल पर गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुई। मंचासीन अतिथियों का स्वागत प्रो. मनोज कुमार ने किया। विश्वविद्यालय के पिछले एक वर्ष का लेखा-जोखा प्रो. सुरेश शर्मा ने प्रस्तुत किया।
डायरी एवं कैलेंडर का लोकार्पण
इस अवसर पर अतिथियों द्वारा विश्वविद्यालय से प्रकाशित नववर्ष की डायरी, कैलेंडर एवं टेबल कैलेंडर तथा ताना-बाना पत्रिका का प्रकाशन किया गया।
हिंदी विश्व विशेषांक का लोकार्पण
विश्वविद्यालय की द्वैमासिक पत्रिका ‘हिंदी विश्व‘ का स्थापन दिवस अंक का लोकार्पण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सभागार मे किया गया। इस अवसर पर संपादन मंडल के सदस्य बी. एस. मिरगे, डॉ. शंभू जोशी, राजेश यादव, डॉ. अमित विश्वास तथा गिरीशचंद्र पाण्डेय की उपस्थिति रही। अंक का आकल्पन राजेश आगरकर ने किया।


