ज्योतिषाचार्य कैसे ज्योतिष के कॉमनसेंस का इस्तेमाल करते हैं
आपकी नज़र | स्तंभ | धर्म-समाज-त्योहार | हस्तक्षेप -जगदीश्वर चतुर्वेदी इस पहलू पर बातचीत कर रहे हैं कि कैसे ज्योतिष के प्रचारक या ज्योतिषाचार्य हैं वह कैसे ज्योतिष के कॉमनसेंस का इस्तेमाल करते हैं

xr:d:DAFbvsl0Lzc:31,j:44849533126,t:23040903
ज्योतिष पर पर इस श्रृंखला में आज प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी इस पहलू पर बातचीत कर रहे हैं कि कैसे ज्योतिष के प्रचारक या ज्योतिषाचार्य हैं वह कैसे ज्योतिष के कॉमनसेंस का इस्तेमाल करते हैं (How astrologers use common sense of astrology)।
ज्योतिष के कॉमनसेंस कैसे काम करता है?
ज्योतिष का आम सेंस इस तरीके से काम करता है जिसमें आपकी इच्छित भावनाओं का ख्याल रखा जाता है।
नौकरी पेशा यंग है लेकिन नौकरीपेशा जब किसी एस्ट्रोलॉजर से बात करता है तो ज्योतिष का फलादेश करने वाले की जो दृष्टि होती है वो एक आम सेंस से संचालित होती है उसे आम सेंस को वह कम्युनिकेट करता है पूछने वाले के लिए। मतलब जो यंग लोग हैं जो पूछते हैं वह लड़की हो या लड़का तो उनको सलाह दी जाती है कि और उन पर नजर रहती है। तुम्हारे जीवन में आनंद बहुत है तुम्हारे जीवन में रोमांस बहुत है और लोग बहुत खुश होते हैं।
इसी तरह जो स्त्री नौकरी करती है या नौकरी की तलाश करती है कि मुझे नौकरी लगेगी या नहीं लगेगी और नौकरी लग रही है तो उसमें भविष्य कितना उज्जवल है, या वह जो नौजवान जो नौकरी कर रहा है वह पूछता है कि मेरा भविष्य कितना उज्जवल है और मैं कहां तक जाऊंगा, तो ज्योतिषी एक दूसरे आम सेंस का इस्तेमाल करता है। वो ये कहता है कि आप अपने पेशेवर कौशल में वृद्धि करें। और जब थोड़ा सा उसे अपने इस पेशेवर कौशल में आम सेंस को कम्युनिकेट करने में उलझन दिखाई देती है तो वही वो कोई ना कोई कर्मकांड सजेस्ट कर देता है, जैसे वो कह देगा कि आप अंगूठी पहनें, कोई मंत्र का जाप करिये या किसी की पूजा करिए।
और जब यह टेलीविजन पर जो ज्योतिषी से जो लाइव टेलीकास्ट के जरिए सवाल आते हैं उनमें जब ये चीज आई हैं जैसा कि मैंने शुरू में कहा था कि यह जो पूरी की पूरी सीरीज है वो लाइव टेलीविजन के जारी जो कम्युनिकेशन है ज्योतिष का, लाइव टेलीविजन किस तरह से हिंदू सांप्रदायिक दलबंदी करता है, उस पर हमारी नजर है।
तो जब कोई युवा यह सवाल करता है कि मैं मेरी तरक्की होगी कि नहीं होगी, मेरी नौकरी लगेगी या नहीं लगेगी तो तत्काल ज्योतिषी उसे कोई न कोई कर्मकांड का या तंत्र मंत्र का सुझाव देता है। और जब वो कर्मकांड मंत्र का सुझाव देता है तो वह क्या करता है तो वह सुनने वालों को हिन्दुओं के सामुदायिक गिरोह में शामिल कर लेता है।
जाहिर है ये प्रश्न किया जा सकता है कि सवाल पूछने वाला अगर ईसाई हो तब? तो क्या वह उसे समाधान को मानेगा जो समाधान हिंदू रीति रिवाज के अनुसार जो, उसे सजेस्ट किया गया है। नहीं मानेगा अगर वो प्रश्न पूछने वाला मुसलमान हो तो क्या वो समाधान को मानेगा जो कर्मकांड और तंत्र-मंत्र के हिसाब से सजेस्ट किया गया, नहीं मानेगा। और ज्योतिषी की मुसीबत यह है कि वह ना तो इस्लामिक कल्चर के हिसाब से जो समाधान है कर्मकांड के तंत्र-मंत्र के उनको वो जानता है और न ईसाइयत के हिसाब से जो समाधान हैं उन्हें जानता है। तो वहां जो श्रोता होता है वो हिंदू होता है और उसे ज्योतिषी कर्मकांड के समाधान जो सुझाता है उसके जारिए हिंदू सामुदायिक घेर में ले जाता है। और यह उसका इनडायरेक्ट काम है जिसमें कि वह सांप्रदायिक दलबंदी में श्रोता समूह को सामुदायिक या सांप्रदायिक धारा में खींच लेता है।
मसलन अगर मान लो कोई प्रश्न पूछने वाला व्यक्ति है, उसने पूछ लिया कि मैं मरणासन्न अवस्था में हूं, तो बताइए मैं क्या करूं? तो ज्योतिषी तुरंत कहता है कि तेरा मारकेष चल रहा है और तुझे महामृत्युंजय का जाप करना चाहिए और बगैर वगैरा वगैरा।
क्या मुसलमान महामृत्युंजय का जाप करेगा?
फर्ज करो अगर वह व्यक्ति मुसलमान है तो वह महामृत्युंजय का जाप तो नहीं करेगा। वह रुद्राभिषेक भी नहीं करेगा। तो ऐसी स्थिति में ज्योतिष का जो सार्वजनिक कम्युनिकेशन है वह हिंदुत्व की गोल बंदी का एक बहुत महत्वपूर्ण उपकरण बन के उभरता है और यही वजह है कि जो टेलीविजन कम्युनिकेशन में लाइव कवरेज में ज्योतिषी और दर्शक के बीच के जो संवाद सुनने में आए उनमें यह चीज आम थी कि श्रोता हिंदू होते थे, ज्योतिषी भी हिंदू होता था और समाधान भी हिंदू होता था।
ऐसी स्थिति में यह हिंदुत्व की गोलबंदी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण बन के उभरता है। यही वजह है कि टेलिविजन कम्युनिकेशन में लाइव कवरेज में ज्योतिषी और दर्शक के बीच संवाद सुनने में आए, जिन्हें मैंने वर्षों, महीनों सुना है, उनमें यह चीज कॉमन थी कि श्रोता हिंदू होते थे, ज्योतिषी भी हिंदू होता था और समाधान भी हिंदू होता था।
लोग पूछते हैं ना कि बंगाल में इतना कैसे हिन्दूकरण हुआ और हिंदू सांप्रदायिकता का कैसे विकास हुआ।
मैंने बहुत पहले बहुत पहले, 2004 में एक पुस्तक लिखी थी और उस समय मैं इस कवरेज को लेकर रेगुलर अखबारों में लिख रहा था। दर्शकों के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की जो प्रक्रिया एस्ट्रोलोजी के जरिए अपनाई जाती है, उसके बारे में मैंने सबसे पहले ध्यान खींचा। बीजेपी कहीं नहीं थी, लेकिन मैंने कहा था कि यह जो बंगाली दर्शक है, यह बंगाली दर्शक अब बंगाली दर्शक नहीं रहा बल्कि एक हिंदुत्ववादी दर्शक में कन्वर्ट होने जा रहा है। लेकिन उस समय किसी ने इसे ध्यान नहीं दिया।
इस पूरी की पूरी सीरीज को करने का मेरा मकसद ये है कि हम यह जानें कि वे कौन से उपकरण हैं, जिनके जरिए बड़े पैमाने पर ये जो हिंदुत्व या ये जो सांप्रदायिक विचारधारा आरएसएस की, इसका तेजी से प्रसार हुआ है उसमें एस्ट्रोलॉजी या ज्योतिष का फलादेश एक बहुत महत्वपूर्ण उपकरण है जो टेलीविजन कम्युनिकेशन के जारी जिसका इस्तेमाल किया गया जिसकी कभी हम लोग चर्चा नहीं करते।
तो आगे जानने के लिए इस वीडियो संवाद को सुनिए


