टीम तो खेल की लिए बनाई जाती है आंदोलन के लिए नहीं
टीम तो खेल की लिए बनाई जाती है आंदोलन के लिए नहीं
टीम खेलती है, आंदोलन नहीं करती
टीम अन्ना गिरफ्तार हो गई. इस गिरफ्तारी की हम सभी उसी तरह निंदा करते हैं, जैसी आम आंदोलनकारी की गिरफ्तारी की जाती है. पर कई जगह आंदोलनकारी सिर्फ गिरफ्तार ही नहीं किए जाते बल्कि बुरी तरह पीटे जाते है. कई बार गोली चलती है और मारे भी जाते हैं. पर किसी आंदोलन को सिर्फ नेता की गिरफ्तारी पर पूरा देश जन जाता है तो कई बार कई लोगों के मारे जाने और जेल में सड़ने के बावजूद जगह नहीं मिलती.
इस देश में गाँधी से लेकर जेपी आंदोलन भी हुए और लाठी गोली चली. कोई भी नेता अदालत में यह कहने नहीं गया कि ' हूजुर माई बाप हम आंदोलन करने जा रहे है इजाजत दिलवा दे और सुरक्षा भी.
आंदोलन कोई खैरात नहीं है जो मांगी जाए. आंदोलन तो आंदोलन की तरह ही होगा. पर आंदोलन को नई भाषा और मुहावरों से सजाने वालों ने नाम दिया है 'टीम अन्ना'.
टीम तो खेल की लिए बनाई जाती है आंदोलन के लिए नहीं. न तो 'टीम गांधी' इस देश में बनी और न ही 'टीम जेपी'. बाद के आंदोलन ले तो न तो 'टीम नक्सलबाड़ी' बनी और न ही 'टीम असम आंदोलन या टीम बोधगया आंदोलन'.
टीम मेधा पाटकर भी नहीं बनी जो बिचारी हमारे साथ बस्तर के सर्किट हाउस में कांग्रेसी गुंडों का निशाना बनी. नगरनार आंदोलन में वे समर्थन करने गई थीं और कांग्रेस और भाजपा के लोगों ने उनपर हिंसक हमला किया था. पर किसी चैनल तो दूर छत्तीसगढ़ के अख़बारों में भी इसकी ढंग से खबर नहीं आई.
उत्तर प्रदेश में दो बार किसान आंदोलन में गोली चली, किसान मारे गए. जैतापुर में किसान मारे गए फिर पुणे में किसान मारे गए. कितनी बार दिल्ली में आंदोलन हुआ और कितनी कवरेज हुई और कितनी बार बिजली गुल आंदोलन हुआ. देश में तीस हजार से ज्यादा किसान ख़ुदकुशी कर चुके हैं. हजारों लोग अलग-अलग आंदोलनों में अपन जान गँवा चुके हैं.
सीमा आजाद जैसी युवती जेल में सिर्फ इसलिए सड़ रही है क्योंकि उसके झोले से पुस्तक मेले से खरीदी गई धुर वामपंथी धरा की कुछ पुस्तकें मिल गईं. किसी एक दिया भी इस युवती के लिए नहीं जलाया.
उत्तर प्रदेश में हालत गंभीर है, पर कोई टीम आंदोलन- आंदोलन खेलने नहीं आई. यहाँ झूले लाल पार्क में खुद अन्ना के समर्थक नेताओं को हसन गंज थाने के दरोगा ने धरना देने के सवाल पर कहा था - कानून हमें न बताओ, कानून (डंडा) मेरे हाथ में है. पर तब भी कोई टीम नहीं आई.
खैर अन्ना आंदोलन करें उनका समर्थन किया जाना चाहिए. पर समाज की बुनियादी दिक्कतों को भी देखें. कांग्रेस की निंदा की गई क्योंकि भूमि अधिग्रहण कानून का मसौदा उसने इन्टरनेट पर डाला. सवाल उठा कितने किसान इन्टरनेट देखते हैं. पर टीम अन्ना का आंदोलन क्या सिर्फ इन्टरनेट पर ही होना चाहिए. या उन गांवों में भी जाना चाहिए जहाँ के लोगों के पास 'बिजली गुल आंदोलन' के लिए बिजली तक नहीं है और दिए के लिए तेल नहीं कैंडल वे क्या जलाएंगे. इसलिए आंदोलन करने वालों को इस दिशा में भी सोचना चाहिए होगा.
अंबरीश कुमार


