टेरर पॉलिटिक्स : मायावती पर सवाल उठाने वाले अखिलेश इस पर क्यों नहीं बोलते?
टेरर पॉलिटिक्स : मायावती पर सवाल उठाने वाले अखिलेश इस पर क्यों नहीं बोलते?
टेरर पॉलिटिक्स : मायावती पर सवाल उठाने वाले अखिलेश इस पर क्यों नहीं बोलते?
राजीव यादव
आज की तारीख में 10 साल पहले 23 दिसंबर 2007 को चिनहट, लखनऊ में दो कश्मीरी शाल बेचने वाले युवकों को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को मारने के नाम पर फर्जी मुठभेड़ में यूपी पुलिस ने मार गिराया था।
तत्कालीन एडीजी लॉ एंड ऑर्डर व वर्तमान में भाजपा नेता बृजलाल ने दावा किया था कि ये आतंकी मुख्यमंत्री मायावती को मारने आये थे। नेपाल के रास्ते घुसने को बताते हुए कहा कि सर्विलांस के जरिए मोबाइल ट्रेस किया गया। जबकि बरामदगी में कोई मोबाइल था ही नहीं।
बुजुर्गों से उम्मीद नहीं करते, क्यों कि उन्हें भूलने की आदत इस लोकतंत्र में पड़ गयी है। पर 2007 के इस दौर को सूबे के युवाओं को जरूर याद करना चाहिए। जब मायावती ने उस मकोका जिसने अनगिनत बेगुनाह युवाओं का जीवन लील लिया उसी के तर्ज पर यूपी कोका जैसा काला कानून लाने की कोशिश की थी। जिस टेरर पॉलिटिक्स के जरिए मोदी ने खुद पर हमले के नाम पर इशरत जहां, सादिक जमाल मेहतर आदि को मरवाया था, उसको यूपी में दोहराने की कोशिश मायावती ने की थी। जिसको उस दौर में खड़े हुए जनांदोलनों के दबाव में नहीं कर पायीं।
अगर ये नहीं था तो मायावती जी को जरूर बताना चाहिए कि वे किस खतरे की वजह से एसपीजी सुरक्षा मांग रही थीं। उन्हें ये भी बताना चाहिए कि बीजेपी मुख्यमंत्री राजनाथ के कार्यकाल में आदिवसियों को फर्जी मुठभेड़ में मरवाने वाले विक्रम सिंह को और वर्तमान बीजेपी नेता बृजलाल जैसे पुलिस वालों को मुस्लिम युवकों को उत्पीड़ित करने की क्यों खुली छूट दी थी?
क्या शाल बेचने वाले उन कश्मीरी युवकों को इंसाफ नहीं मिलना चाहिए, जो आतंकी सियासत की भेंट चढ़ गए?
आखिर मायावती पर सवाल उठाने वाली सपा और अखिलेश इस पर क्यों नहीं बोलते?
इसीलिए कि ये सब टेरर पॉलिटिक्स करते हैं और बहुसंख्यक अवाम में डर-दहशत फैलाकर उसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ खड़ा करते हैं।


