दरअसल इनके पास आर्थिक स्थति को सुधारने का न कोई मन्त्र है और न रोडमैप
हस्तक्षेप डेस्क
नई दिल्ली। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जनता दल यू नेती नीतीश कुमार ने आम बजट को निराशाजनक बताते हुए कहा है कि मध्यम वर्ग की बात करें, ये लोग बार बार कहते थे, 5 लाख़ रूपये तक टैक्स नहीं लगना चाहिए। परन्तु बड़ी बड़ी बातें करने के बाद अंत में 2 लाख़ को 2.50 लाख़ कर मामूली रियायत दी गई है जो निराशाजनक है। इस प्रकार से अनेक वायदे इन्होंने अपने चुनाव के दौरान किये थे जिनका कोई ज़िक्र नहीं हुआ। कुछ नई सांकेतिक योजनाओं की घोषणा ज़रूर हुई है परन्तु नीतियों के लिहाज़ से कोई स्पष्ट सन्देश नहीं दिया गया। देखा जाए तो ये सरकार पुराने ढर्रे पर ही चल रही है, नया कुछ भी नहीं है।
जद यू नेता ने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण के रिपोर्ट को देखने के बाद हम लोगों को उम्मीद जगी थी। बिहार जैसा पिछड़ा राज्य जिसका परफॉरमेंस सर्वश्रेष्ठ रहा है चाहे जीडीपी की विकास दर हो, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो, अथवा 2005-06 से 2011-12 तक की विकास दर हो, सभी नज़रिए से बिहार सबसे आगे रहा है। ऐसे पिछड़े राज्यों के विकास की रफ़्तार को बनाए रखने के लिए और देश की क्षेत्रीय विषमता को दूर करने के लिए जो सहायता आवश्यक थी, उसका कोई ज़िक्र नहीं बजट में नहीं किया गया है। देश में क्षेत्रीय आर्थिक विषमता को पाटने की किसी नीति या नज़रिए का ज़िक्र नहीं किया गया। चाहे पिछड़े राज्यों के विकास में समानता के अधिकार अथवा उनकी परफॉर्मेंस के आधार पर नीतिगत योजना हो या विशेष राज्य के दर्जे की बात हो, इन मुद्दों को पूरी तरह इग्नोर कर दिया गया है। इसी तरह कृषि की चर्चा में 2nd green revolution के लिए पहले से चलाई जाने वाली पूर्वी राज्यों की योजना का कोई उल्लेख नहीं हुआ। बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्य मेंदूसरी हरित क्रांति किसी योजना की बात नहीं की, जो दो कृषि विश्वविद्यालय और उद्यान विश्वविद्यालय खोलने की बात थी, उसमें भी बिहार को अनदेखा कर दिया गया। पहले से राजेन्द्र कृषि विश्विद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की बात चल रही थी, उसी की घोषणा कर देते। पर ऐसा नहीं हुआ।
श्री कुमार ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में हो, या बिहार के औद्योगीकरण के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की जो जन-जन की मांग है या विशेष पैकेज की जो बात इन्होंने की थी या जिस तरह का रेल बजट है, हर तरह से बिहार की अनदेखी की गयी है। यहाँ तक कि बौद्ध सर्किट को भी छोटा कर दिया, वैशाली राजगीर को छोड़ दिया, नए नालंदा विश्विद्द्यालय का कोई ज़िक्र नहीं। उन्होंने कहा कि देखा जाए तो बस कुछ अमीर राज्यों का ख्याल रखा गया है। पिछड़े राज्यों को पिछड़ा रहने के लिए छोड़ दिया और चुनाव के अपने सारे वादे भूल गए। यह पहला बजट था, और इसके माध्यम से अपने नज़रिए को पेश करते तो इनकी विश्वसनीयता बनती। इसी तरह से अपने वादों को भूल कर देश की जनता को महंगाई की मार झेलने के लिए छोड़ दिया गया।
जद (यू) नेता ने चुटकी लेते हुए कहा कि अच्छे दिन क्या लायेंगे लगता है कि पुराना दौर ही ज़ारी है। लोगों को ठग कर के वोट ले लिया पर अब भूल गए। बिहार को पूर्णतया अनदेखा कर दिया जबकि चाहे इनका आर्थिक सर्वेक्षण हो या हाल में रंगराजन समिति ने बिहार को गरीबी उन्मूलन में सबसे आगे माना है, इन सभी बातों की बजट में अनदेखी की गयी क्योंकि बिहार का विकास हो इसकी इन्हें कोई चिंता नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा जो नेता देश की बुरी आर्थिक स्थिति से उबारने के लिए जनता से समर्थन मांगते रहे और लोगों ने बढ़ चढ़ कर वोट भी दिया वो अब आर्थिक स्थिति का रोना रो रहे हैं। कहते हैं कड़वी दवा है– परन्तु यह तो कोई दवा ही नहीं है ! कम से कम जो पिछड़े राज्य अच्छा कर रहे हैं उन्हें प्रोत्साहित करते ताकि बाकी राज्य भी अच्छा करने की सोचें। यही बात रेल बजट में भी नज़र आयी। आम बजट में क्षेत्रीय विषमता को दूर कर समावेशी विकास करने के लिए कोई प्रयास नहीं दीखता है। दरअसल इनके पास आर्थिक स्थति को सुधारने का न कोई मन्त्र है और न रोडमैप।