डलहौजी के रास्ते पर चल रही देश की सरकार
डलहौजी के रास्ते पर चल रही देश की सरकार
शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
डलहौजी ने भारत पर ज्यादा दिन शासन करने के लिए जो नीति अपनाई, वह साम्राज्यवाद का बहुत ही घिनौना चेहरा था। इस नीति ने सत्ता और जनता के बीच एक खतरनाक खाई बनाई। यह खाई देश की देशजता को छिन्न-भिन्न कर आपसी सद्भाव में कट्टरता का जहर घोल गई। यह जहर बहुत ही खतरनाक था, लेकिन तब जनता विवेकहीन और सत्ता की अंधभक्त न थी। जनता ने गुलामी के दिनों में इस नीति को बहुत कुछ समझ लिया था। फूट डालो और शासन करो ! तब उतना कामयाब न हो सका था।
“फूट डालो और शासन करो !” देश की वर्तमान सत्ता इस मारण मंत्र के पीछे लगातार प्रयासरत है।
यह भारत की अस्मिता को मिटाने का निर्मम हथियार है। गुलाम भारत में इस साजिश को समझने का अवकाश था। तब जाल के धागे दिखाई देते थे। लोग अंधे होने में गर्व नहीं महसूस करते थे। तब जनता डरी हुई जरूर थी, लेकिन सचेत थी।
आजादी के बाद भारत की स्वदेशी सरकारें विदेशी मिजाज से ही जनता से जमीनी स्तर पर पेश आती रहीं। देश की सरकारें सत्ता सुख भोगने के लिए लगातार निर्दयी होती चली गईं। कांग्रेस इससे अछूती नहीं रही, इन्दिरा गांधी की जान इसी वजह से गई, लेकिन देश के लिए फिक्रमंद राजनीतिज्ञों ने कोई जनतंत्र का सही रास्ता नहीं चुना। जनता के सामने कोई भी असरदार और सटीक रास्ता आजादी के बाद से अब तक दिखाई नहीं दिया। वही घूम फिर कर बुरे से बुरे के बीच कम बुरे को चुनना जनता की मजबूरी बनी रही।
2014 के लोकसभा चुनाव में जनता बीजेपी को पूर्ण बहुमत में ले आई, बदलाव और विकास की उम्मीद ने शायद एक बड़ा धोखा खाया।
यह सरकार पिछली सरकारों से ज्यादा मायावी निकली, इसकी माया में फंसी जनता धार्मिक सम्मोहन का शिकार हो गई।
आज देश के हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं। भारत के प्रादेशिक चुनाव वहाँ की जनता के लिए महाभारत बनते जा रहे हैं। सत्ता लोभ में बीजेपी हर कीमत पर प्रदेशों में सरकार बनाने के लिए छल-छद्म का इस्तेमाल कर रही है। फूट डालो और शासन करो, डलहौजी की यह कुत्सित नीति लगातार अपनाई जा रही है। धर्म का प्रयोग कर भूखी और कुपोषित जनता के दिमाग को बरगलाया जा रहा है। देश में सवर्ण सेनायें लाठी, तलवारें, बंदूकों को चलाने का प्रशिक्षण ले रही हैं। जगह-जगह दंगों की राजनीति का घिनौना चेहरा दिखाई दे रहा है। आरक्षण की जमीनी हालात जाने बगैर और संवैधानिक विश्लेषण से अनभिज्ञ कट्टरता का जामा पहने सवर्णववादी बेहूदे जोश में अनाप-शनाब बोल रहे हैं। हिन्दू मुस्लिम धार्मिक और सांप्रदायिक उन्माद को नए सिरे से हवा दी जा रही है। धर्म के प्रति सीधे-साधे लोगों को कट्टरता के जाल में फंसा कर मनुष्यता के खिलाफ जंग छेड़ी जा रही है। उन्मादी और टुच्चे नेताओं के जहरीले बयान बिकी हुई मीडिया चटखारे ले कर गा रही है।
आज देश बेरोजगारी की भयानक समस्या से जूझ रहा है।
शिक्षा और चिकित्सा के लिए आज भी ग्रामीण इलाके अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं को नहीं पूरा कर पा रहे हैं। गरीबी और जहालत देश को लगातार तोड़ती जा रही है। इसके लिए कोई जमीनी काम सार्थक नहीं हो पा रहा है। इस भयानक दौर में देश की सरकार अपनी सत्ता बचाने और प्रदेशों में सरकार बनाने के लिए धर्म का सहारा ले कर सांप्रदायिक कट्टरता को हवा दे रही है। विकास का फर्जी झुनझुना के नाम पर राज्य हड़पने की नीति ही सर्वोपरि सच्चाई है।
बीजेपी की अर्थनीति कांग्रेस से बिलकुल भी भिन्न नहीं है।
कांग्रेस जब एफ़डीआई ला रही थी तो बीजेपी ज़ोर-शोर से विरोध कर रही थी आज बीजेपी उसे लागू कर के मुस्कुरा रही है। देश की विकल्पहीन जनता स्थानीय पार्टियों की ओर मजबूरी में ताक रही है। गरीबी और जहालत से कुपोषित जनतंत्र बेहूदी भक्ति का छलवा बन कर रह गया है।


