मुद्दों को स्पर्श करने के लिए 16 मई के बाद कविता और प्रतिरोध के सिनेमा जैसे आयोजन हो रहे हैं। हम उनकी मदद करने की हैसियत में नहीं रहे हैं।
हस्तक्षेप (http://www.hastakshep.com/old) को और ज्यादा प्रासंगिक, और ज्यादा मुखर बनाने के लिए अमलेंदु की मदद करने में लगे हैं। हमें फिक्र है कि यह आयोजन कब तक कैसे चल पायेगा। सर्वर मंहगा होता जा रहा है, संचालन के लिए अब और सहयोगियों की भी आवश्यकता है।
हम चाहते हैं कि हमारे रिटायर होने से पहले सभी भारतीय भाषाओं में हम संवाद शुरु कर सकें। डोनेट करने का बड़ा सा बोर्ड टांगने के बावजूद हिंदी वालों की नींद में कोई खलल पड़ नहीं रही है।
आनंदस्वरूप वर्मा और पंकज बिष्ट के बाद
हम फिक्रमंद हैं कि आनंदस्वरुप वर्मा और पंकज बिष्ट के बाद हमारे वैकल्पिक मीडिया आंदोलन का क्या आखिरकार होना है।
टीवी की तरह टीआरपी दर्शन जैसे सोशल मीडिया को खाने चबाने लगा है, उससे लगता नहीं है कि बहुत देर तक हमारा पढ़ना-लिखना बोलना सम्भव होता रहेगा।
O- पलाश विश्वास