दिगंबर
मैं महिषासुरपंथियों और फॉरवर्ड प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में हूँ, क्योंकि मेरे लिये वाल्तेयर का यह श्लोक तमाम शुभाषितों और विधि-निषेधों से अधिक पवित्र है कि "मैं जानता हूँ कि तुम्हारी यह बात गलत है, लेकिन उस बात को कहने के अधिकार की रक्षा के लिए मैं अपनी जान दे सकता हूँ।"
मेरी उनसे शिकायत यह है कि वे मिथक और इतिहास के बीच का फर्क मिटाने की वही भूल कर रहे हैं जो भारत की बहुलवादी संस्कृति पर जेसीवी चलाने वाले छद्म/अंध राष्ट्रवादी जानबूझकर करते रहते हैं। उनका यह सस्ता लोकप्रियता-प्रेरित अभियान बहुलवादी संस्कृति के

हिमायतियों के लिए अत्यंत हानिकारक है।
मिथकों की पुनर्व्याख्या होती है, होनी चाहिए, लेकिन उसे इतिहास का दर्ज़ा देना इतिहास का मखौल उड़ाना है।
अबू तालिब ने कहा था- "तुम अतीत पर पिस्तौल से निशाना लगाओगे, तो भविष्य तुम्हारे ऊपर तोप के गोले दागेगा।"
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