तो कश्मीर बीजेपी के लिए दूसरी बाबरी मस्जिद है
तो कश्मीर बीजेपी के लिए दूसरी बाबरी मस्जिद है
महेंद्र मिश्र
बीजेपी के लिए कश्मीर एक दूसरी बाबरी मस्जिद है। लेकिन वो बाबरी मस्जिद जैसी गल्ती यहां नहीं करना चाहती है। उसे गिरा दे और मुद्दा ही खत्म हो जाए। ऐसे में कश्मीर की समस्या को सुलझाने की बजाय उसे बनाए रखने में उसका ज्यादा फायदा है। लिहाजा वो समस्या की इस भट्टी को न केवल उभार रही है बल्कि उसकी आग को पूरे देश में फैला देना चाहती है। इसमें उसको एक साथ कई फायदे दिख रहे हैं।
सांप्रदायिक राजनीति बीजेपी-संघ के वजूद की पहली शर्त है।
मुद्दे में सांप्रदायिकता की चासनी मिली हुई है तो राष्ट्रवाद का तड़का अलग से लगा है। ऊपर से इसके 2002 का गुजरात बनने की भी संभावना है। जिसकी मोदी जी को शिद्दत से तलाश है। इसलिए बीजेपी के सत्ता में रहते इस समस्या के हल के बारे में सोचना दिन में सपने देखने जैसा है। दरअसल सांप्रदायिक राजनीति बीजेपी-संघ के वजूद की पहली शर्त है। और उसका आखिरी लक्ष्य फासीवादी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना है। इसलिए उस लक्ष्य के हासिल होने तक इस तरह की हर समस्या का जिंदा रहना जरूरी है।
अनायास नहीं संघ के अंदरूनी हल्के में कश्मीर की समस्या का एक अजीबोगरीब समाधान सुझाया जाता है। जिसमें जम्मू-कश्मीर को जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीन हिस्सों में बांटने की बात की जाती है। इस कथित समाधान के साथ जम्मू और लद्दाख को बचा लेने का दावा किया जाता है। भले ही उसकी कीमत घाटी देकर ही क्यों न चुकानी पड़े। ऐसा होने पर बीजेपी के अपने उस तर्क को और बल मिल जाएगा कि मुस्लिम कौम भारत के साथ नहीं रह सकती है, क्योंकि वो देश के प्रति वफादार नहीं है। इसलिए देश में उसके साथ नहीं रहा जा सकता है। या फिर अगर रहना है तो उसे दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रखना होगा। अधिकार देने का मतलब है नया बंटवारा।
मोदी सरकार उसी रणनीति पर काम कर रही है।
उसके नतीजे भी सामने दिखने लगे हैं। कश्मीर एक बार फिर 1990 की तरफ अग्रसर है। और घाटी में जगमोहन पार्ट-2 जारी है। नतीजे के तौर पर यूपीए सरकार के दौरान बसाए गए कश्मीरी पंडित एक बार फिर जम्मू वापस आ रहे हैं। और फिर कभी कश्मीर न जाने की कस्में खा रहे हैं।
...और आखिरी तौर पर देश में एक स्थाई इजरायल और फिलीस्तीन खड़ा करने का मोदी जी का मंसूबा पूरा हो रहा है।


