लोकसभा चुनाव के बाद पहला वह चुनाव है जिसने मोदी का तिलिस्म (राजनैतिक) तोड़ दिया है
नई दिल्ली। आम तौर पर किसी भी चुनाव के मतदान के नतीजों के बाद ही कोई विश्लेषण लिखने की परम्परा रही है। पर पहली बार सारे के सारे एग्जिट पोल, सारे के सारे चैनलों ने एक सुर में भाजपा के सत्ता में न आने का एलान कर दिया हो तो नतीजे अब बहुत ज्यादा बदल जांए यह संभव नहीं है। यह चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद पहला वह चुनाव है जिसने मोदी का तिलिस्म (राजनैतिक) तोड़ दिया है। अहंकार भी तोड़ दिया है। नसीब भी गया। पहली बार कोई प्रधानमंत्री बड़ी म्युनिस्पैलिटी के चुनाव में मोहल्ला मोहल्ला घूमा था। जिसकी जरूरत नहीं थी, फिर भी कही अश्वमेघ का घोडा मोहल्ले का नौजवान न रोक ले यह डर जरूर था। साथ ही अपने पर कुछ ज्यादा ही विश्वास भी तो अन्य नेताओं पर अविश्वास। हारी हुई बाजी को जीत में बदल देने का विश्वास। पर यह भूल गए कि जनता नौ महीने के राजकाज पर अपनी राय भी देने वाली है। जो पेट्रोल और डीजल के अंतरराष्ट्रीय दाम में हुई गिरावट से देश की महंगाई को नहीं देखने वाली थी। नून तेल लकड़ी से महंगाई देखी जाती है, आटा दाल चावल और आलू प्याज से महंगाई नापी जाती है। फिर तुर्रा यह कि ' आपकी टेंट में तो अब पैसा बच रहा होगा, जैसे जुमले भी घाव पर नमक जैसे ही लगते हैं। इस सबके बाद एक ठीक ठाक पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र को ताक पर रखकर जिस तरह किरण बेदी को मोदी और शाह ने पार्टी की दिल्ली इकाई पर थोपा उसने रही सही कसर भी पूरी कर दी। मोदी और शाह तो आम आदमी पार्टी ही नहीं भाजपा की दिल्ली इकाई से भी लड़ रहे थे। पैसे के बूते पर, सत्ता के बूते पर और कारपोरेट घरानों और उनके चैनलों के बूते पर। वे भूल गए हर बार विज्ञापन से जीत नहीं मिल पाती।
भारतीय जनता पार्टी के संगठन के हिसाब से भी यह चुनाव बहुत निर्णायक हो गया है। पार्टी में मोदी-शाह की कार्यशैली को लेकर दिल्ली का यह चुनाव अभी काफी उथल पुथल मचाने वाला है। किरण बेदी से लेकर शाजिया इल्मी जैसे उधार के दगे हुए कारतूसों से जंग नहीं लड़ी जाती यह भी दस को साफ़ हो जाएगा। इस चुनाव को मोदी और मीडिया ने जरुरत से ज्यादा तूल दिया और तरह-तरह के हथकंडे भी अपनाए। जो चुनाव दिल्ली भाजपा बनाम आप पार्टी था उसे मोदी ने अपने अहंकार में मोदी बनाम मफलर वाला बना दिया। आम लोगों को यह मफलर वाला अपनी गली का ही नौजवान नजर आया। जो अडानी से लेकर अंबानी तक को चुनौती देता है, बिना किसी डर के। उधर एक अड़ियल पुलिस वाली को मुकाबले में आगे कर मोदी शाह ने रही सही कसर पूरी कर दी। कभी भी कोई युद्ध के दौरान सेनापति नहीं बदलता। पर मोदी ने बीच युद्ध में पार्टी का सेनापति बदल दिया और किसी की भी नहीं सुनी। और इसे मास्टर स्ट्रोक बताया गया जो पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को रास नहीं आया था। इसके बाद चुनावी शतरंज में साम दाम दंड भेद सारे हथकंडे अपना लिए गए। पुलिस भी लगे गई तो बदमाश भी और साजिश वाले भी जुट गए। सारी लड़ाई ' एक दिए की और तूफ़ान, की लड़ाई में बदल गई। इस सबके चलते झुग्गी झोपडी से लेकर हाशिए का समाज आज सड़क पर उतरा और फिर चुनावी आकलन ने माहौल बदल दिया है। अब दस के बाद शुरू होगी दूसरी राजनैतिक लड़ाई।
अब आम आदमी पार्टी इस देश के मुख्यधारा की पार्टियों में पूरी ताकत के साथ शामिल हो गई है। और इसका श्रेय श्री नरेंद्र मोदी को सौ फीसद दिया जाना चाहिए।
अंबरीश कुमार
जनादेश