तो राजग नहीं, अलकायदा के रास्ते जा रही है भाजपा !
तो राजग नहीं, अलकायदा के रास्ते जा रही है भाजपा !
जगदीश्वर चतुर्वेदी
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मेरठ में मोदी की हिमायत करते हुये जो बयान दिया है उससे साफ हो जाना चाहिये कि मोदी को अगुवा बनाकर संघ परिवार देश में विकास का नहीं विभाजनकारी एजेण्डा लागू करना चाहता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा में राष्ट्रीय भूमिका दिये जाने का समर्थन करते हुये कहा कि "हिन्दुत्व ही वह रास्ता है जिससे देश में परिवर्तन लाया जा सकता है।"
मोदी का कद बढ़ाये जाने का विरोध कर रहे भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार का नाम लिये बिना उन्होंने कहा कि " कोई पसन्द करे या नहीं करे, हिन्दुत्व ही वह मार्ग है जो देश में परिवर्तन लायेगा। इसी में देश का सम्मान निहित है"।
भागवत ने संघ के प्रशिक्षण शिविर में कहा कि "हमने नेता और एजेण्डा बदल कर देख लिया, कुछ काम नहीं आया। राजनीति के द्वारा भारत को महाशक्ति नहीं बनाया जा सकता है, ऐसा सिर्फ हिन्दुत्व से किया जा सकता है।"
यानी भाजपा में जो कुछ बदलाव आये हैं वे संघ के आदेश पर आये हैं। संघ का इससे चरित्र फिर से साफ हुआ है कि वह सांस्कृतिक संगठन का मुखौटा लगाये राजनीतिक संगठन है।
दूसरी बात यह कि जब सारी दुनिया साइबर युग में जाने की सोच रही है देश, नस्ल, राष्ट्र, राष्ट्रवाद आदि की सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है ऐसी स्थिति में हिन्दुत्व के नाम पर एकजुट करना देश को 14वीं सदी में ले जाने की कोशिश ही कही जायेगी।
तीसरी बात यह कि मोदी के बहाने आने वाले समय में विकास का नहीं हिन्दुत्व का एजेण्डा आने वाला है।
भाजपा का पुनः हिन्दुत्व की शरण में लौटना इस बात का संकेत है कि भाजपा के पास 21वीं सदी का कोई सपना नहीं है। वे हिन्दुओं को गरमाकर कुछ समय बाद अलकायदा टाइप दिशा ग्रहण करेंगे। यह बात आडवाणी पहचान रहे हैं और यही वह बिन्दु है जहाँ पर उनको चुप रहने को कहा गया है।
आज भाजपा के सामने दो रास्ते हैं। पहला- राजग का रास्ता और दूसरा अलकायदा का रास्ता। अलकायदा रास्ता प्रकारान्तर से काँग्रेस की सेवा है और भारत की सत्ता राहुल गाँधी को सौंपने की एक तरह से प्रच्छन्न घोषणा भी है।
मोदी काँग्रेस से वैसे ही लड़ रहे हैं, जैसे ओसामा बिन लादेन कभी अमेरिका से लड़ रहा था और अन्त में अमेरिका के हाथों अफगानिस्तान सौंपकर ही मरा।


