हिटलर, मुसोलिनी का राज (Hitler, Mussolini's regime) समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की शक्तियों के विरुद्ध (Against the forces of equality, liberty and fraternity) था लेकिन इसे अर्थव्यवस्था व समाज के ताकतवर तबकों का समर्थन प्राप्त था

16 वीं लोकसभा का चुनाव (16th Lok Sabha Elections) ऐतिहासिक होने जा रहा है जहां अभी तक चुनाव पार्टियों के आधार पर लड़ा जाता था वहीं इस बार का चुनाव व्यक्ति विशेष के नाम पर लड़ा जा रहा है। इस बार के चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी (BJP's prime ministerial candidate) पहले से ही अपने को प्रधानमंत्री मान चुके हैं। यही कारण है कि 15 अगस्त, 2013 को उन्होंने बनावटी लालकिले से भाषण दिया।

तानाशाही क्यों झलकती है मोदी के हाव-भाव से (Why dictatorship is reflected in Modi's gesture)?

मोदी अपने को देश का चौकीदार बताते हैं जबकि उनके हाव भाव कहीं से चौकीदार की नहीं दिखते हैं। उनका भाषण, उनके हाव-भाव से हमेशा ही तानाशाही झलकती है। वे इटली के प्रचारमंत्री गोयबल्स के तर्ज पर रैलियों में अपनी बात को तब तक दुहराते हैं जब तक कि रैली में शामिल लोगों की तरफ से उनका मनमाफिक जवाब न आ जाये। इस तरह मोदी भारत में नये हिटलर और मुसोलिनी के उत्तराधिकारी के रूप में उभरते नजर आ रहे हैं।

हिटलर, मुसोलिनी का राज समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की शक्तियों के विरूद्ध था लेकिन इसे अर्थव्यवस्था व समाज के ताकतवर तबकों का समर्थन प्राप्त था।

इसी तरह मोदी से अल्पसंख्यक वर्ग के साथ-साथ समाज का धर्मनिरपेक्ष, मानवाधिकार व जनवाद पसंद व्यक्ति डरा हुआ है।

मोदी को कारपोरेट जगत का पूरा समर्थन प्राप्त है, मोदी के अन्दर प्रधानमंत्री बनने की गुणवत्ता सबसे पहले रतन टाटा ने देखी थी। रतन टाटा को जब जनता के विरोध के कारण सिंगुर (पश्चिम बंगाल) से अपनी नैनो को लेकर गुजरात भागना पड़ा था जहां मोदी ने टाटा के लिए लाल कालीन बिछाते हुए अहमदाबाद में 725 एकड़ जमीन टाटा के लिए उपलब्ध कराई। इससे टाटा इतने गदगद हो गये कि मोदी का एक्सरे कर डाला और उनके अन्दर प्रधानमंत्री बनने की गुणवत्ता देख ली।

टाटा की घोषणा करने के बाद मीडिया में कई पूंजीपतियों ने मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया।

मोदी सरकार ने 10 साल के शासन काल में दो लाख हेक्टेयर जमीन पूंजीपतियों को एक से 900 रु. प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से दी है। मोदी ने अदानी ग्रुप को 1 रु. वर्ग मीटर के हिसाब से बड़ौदा शहर से ज्यादा क्षेत्रफल में जमीन मुहैय्या कराई है।

मानेसर में मारुति सुजुकी के मजदूर जब अपनी जायज मांग को लेकर लड़ाई लड़ रहे थे उस समय मोदी ने मारूति सुजूकी कम्पनी को अपने यहां आने का न्यौता दिया और साथ में आश्वासन भी दिया कि यहां पर आपको उद्योग चलाने का पूरा महौल दिया जायेगा। मोदी के इस आमंत्रण का गुजरात के 5000 किसानों ने 15 अगस्त, 2013 को विरोध किया और ‘मारूति वापस जाओ’ के नारे लगाये।

मोदी ने 13 ‘विशेष निवेश क्षेत्र’ बनाने की घोषाणा की है, प्रत्येक ‘विशेष निवेश क्षेत्र’ के लिए सौ किलोमीटर तक किसानों की जमीन अधिग्रहण की जायेगी जिसका लगातार किसान विरोध कर रहे हैं और 15 अगस्त, 2013 तक ‘विशेष निवेश क्षेत्र’ अधिसूचना की रद्द करने की मांग की थी लेकिन मोदी ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए संबंधित विभाग को कह दिया है। प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता लालजी देसाई और सागर रबारी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी 15 अगस्त को बिना अनुमति तिरंगा फहराने के आरोप में दिखायी गयी है।

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आपको तिरंगा (भारतीय झंडा) फहराने के लिए भी सरकार से इजाजत लेना पड़ेगा।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अपने अधिकारों की मांग के लिए धरना-प्रदर्शन करने के लिए प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ती है और प्रशासन कभी भी इजाजत देता नहीं है।

भारत में नई आर्थिक नीति लागू हुए दो दशक से ऊपर हो चुके हैं लेकिन अभी तक वह पूरी तरह से लागू नहीं हो पायी है। अभी तक कल्याणकारी राज्य का मुखौटा लगाकर नई आर्थिक नीतियों को लागू किया जा रहा था लेकिन इसके अगले चरण को लागू करने में यह मुखौटा अड़चन बन रहा है। नई आर्थिक नीति के अगले चरण को फासीवादी तरीके से ही लागू किये जा सकता है।

फासीवाद में समस्याओं के मूल कारणों और उसके जिम्मेदार कारणों से ध्यान हटाते हुए एक झूठा हौवा खड़ा करके अंध देश भक्ति जगायी जाती है। जिसे कुछ शक्तिशाली लोगों का समर्थन प्राप्त होता है। यही कारण है कि आज मोदी देश को झूठे खतरों से आगाह करके सत्ता में आना चाहते हैं जिसे शक्तिशाली कॉरपोरेट जगत का समर्थन प्राप्त है।

सच्चाई यह है कि भारत नहीं भारत की जनता का जीवन संकट में है जबकि यहां पर करोड़पतियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।

गुजरात में ग्रामीणों इलाकें में 11 रु. तथा शहरी इलाकों में 17 रु. प्रतिदिन के कम आय वालों को गरीब माना जाता है वहीं मोदी के पीएम इफेक्ट से 25 दिनों में (मध्य फरवरी 2014 से 9 मार्च, 2014 तक) 20000 करोड़ रु. की बढ़ोतरी हो चुकी है।

भारत की जनता के जीवन का संकट का मूल कारण (The root cause of the crisis in the life of the people of India) है पूंजीपतियों की लूट जो दिन दूना रात चौगूना बढ़ती रही है। इस लूट को छिपाने के लिए भारत की जनता के सामने मनगढंत बातों का जाल बुना जा रहा है जो कि फासीवाद के आने की आहट है।

हिटलर और मोदी में व्यावहारिक सम्बन्ध (The practical relationship between Hitler and Modi)

हिटलर ने शादी नहीं की थी। मोदी भी अपनी पत्नी का नाम अप्रैल 2014 से पहले कभी नहीं लिया था। हिटलर एक पक्का राष्ट्रवादी था। मोदी भी अपने को हिन्दू राष्ट्रवादी कहते हैं।

हिटलर एक धर्म विशेष के लोगों को देश का दुश्मन मानता था। मोदी सभी धर्मों के टोपी, पगड़ी तो पहन लेते हैं लेकिन मुस्लिम टोपी कभी नहीं पहनी।

हिटलर कम्युनिस्टों और समाजवादियों को विदेशी एजेंट कहता था। संघ परिवार कम्युनिस्ट विचार को विदेशी के रूप में प्रचारित करते हैं।

हिटलर को आलोचना बर्दाश्त नहीं होती थी। मोदी के गृहमंत्री हरेन पांड्या मोदी सरकार में ही मार दिये गये लेकिन सही कातिलों को पता नहीं चला।

हिटलर अखंड जर्मनी का सपना देखता था। मोदी जी अखंड भारत की बात करते हैं।

हिटलर ने बचपन में पेंट करने और रंग बेचने का काम किया। मोदी जी भी बचपन में चाय बेचा करते थे।

हिटलर अपने पड़ोसी देशों को जर्मनी का दुश्मन मानता था। मोदी पाकिस्तान और चीन को दुश्मन मानते हैं। प्रचार के साधन अखबार, पत्र-पत्रिकाएं हिटलर के प्रचार में लगे थे उसी तरह आज मोदी के प्रचार में इलेक्ट्रानिक, प्रिंट, सोशल मीडिया लगी हुई है।

हिटलर ने मजदूर आन्दोलनों को कुचल दिया था। मारूति सुजूकी के खिलाफ गुड़गांव के मजदूर लड़ रहे थे तो मोदी जी मारूति सुजूकी को गुजरात में आने का निमंत्रण दे रहे थे और यह मारूति सुजूकी के प्रबंधन को आश्वासन दे रहे थे कि गुजरात में मजदूरों के विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा।

हिटलर ये प्रचार करके सत्ता में आया था कि देश की समस्याओं को चुटकी में खत्म कर देगा। मोदी जी भी अपने लिए 60 माह (5 वर्ष) मांगते हैं उससे देश की सभी समस्याएं खत्म हो जायेगी और भारत अग्रणी देशों की सूची में आ जायेगा।

क्या मोदी हिटलर बन पायेंगे?

सुनील कुमार

सुनील कुमार, लेखक सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता हैं