दबे पांव आ रही जीएम सरसों
विक्की कुमार ([email protected])

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देश में जीएम फसलों के सहारे दूसरी हरित क्रांति लाने की सोच रही है और इसकी शुरुआत जीएम सरसों से की जा रही है।
संभावना है कि जीएम सरसों को खेतों में उगाने की अनुमति जल्द ही सरकार दे देगी। इसके लिए जरूरी फील्ड ट्रायल किये जा चुके हैं और सरकार की जैनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी से इसे हरी झंडी मिल चुकी है।
अगर जीएम सरसों खेतों में उगाई गई तो यह भारत में पहली खाद्य जीएम फसल होगी।
अब हम आपको समझाते हैं कि क्या है जीएम फसल और क्या है इस पर चल रही बहस ?
जीएम का अर्थ जेनिटकली मोडिफाइड होता है। इसे अन्य तीन जीन टेक्नोलॉजी, रीकॉम्बिनेन्ट डीएनए व जेनेटिक इंजीनियरिंग नामों से भी जाना जाता है।
वास्तव में जीएम फसल, एक प्राणी के जीन को निकाल कर दूसरे असंबंधित प्राणी में डालने और तैयार करने की प्रक्रिया ही जीएम कहलाती है।
दूसरे शब्दों में किसी फसल में इच्छित गुण के लिए किया गया कृत्रिम बदलाव ही जीएम फसल कहलाती है। जिसका मकसद पैदावार को बढ़ाना, सूखे से लड़ने की क्षमता को बढ़ाना, कीड़े से लड़ने की ताकत को बढ़ाना साथ ही फसलों पर डाले जाने वाले कीटनाशक से लड़ने की क्षमता को बढ़ाना है।
वर्तमान में 28 देशों के 18 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर जीएम फसल की पैदावार की जा रही है।

जीएम फसलों में मुख्य रूप से सोयाबीन, मक्का, कॉटन और सरसों पर 99 प्रतिशत की हिस्सेदारी है,
वहीं एक प्रतिशत में आलू, पपीता व बैगन की पैदावार होती है।
वहीं दूसरी तरफ विरोध की बात करें तो देश भर के कई किसानों, विशेषज्ञ के साथ भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) ने इसके विरोध फलस्वरूप एक आंदोलन कर रही है। साथ ही उन्होंने अपने विरोध ज्ञापन में लिखा है कि केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) संशोधित जीन वाली जीएम सरसों को अनुमति देने की ओर तेजी से अग्रसर है।
पिछली वर्ष 2010 में इस कमेटी द्वारा बीटी बैगन को अनुमति दिए जाने के बाद इसी मंत्रालय द्वारा बीटी बैगन पर अनिश्चित काल के लिए प्रतिबंध लगाया गया था, जो अब तक जारी है। अर्थात् छः साल गुजर जाने के बाद भी इसका अभी तक सुरक्षित रूप नहीं विकसित किया जा सका है। साथ ही यह भी कहां गया है कि जीएम के बीज एवं कीटनाशक पर सिर्फ दो अमेरिकन कंपनियों मोंसेंटो व बेयर जो अब एक हो गई है का कब्ज़ा है।

अर्थात भविष्य में पहले से चरमराई देश की खेती को विदेशी कंपनियों के हाथों में देना सही नहीं।
साथ ही स्वास्थ्य पर असर, उत्पादकता और प्रतिरोधकता पर असर व जैव विविधता इसके विरोध में शामिल है। हम सभी को मालूम है कि सरसों का उपयोग विभिन्न प्रकार के दवाओं के उत्पादन में किया जाता है जिस पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

नौनिहालों को मालिश में सरसों तेल का उपयोग हम सभी कई सालों से करते आ रहे हैं, जिस पर भी खतरा लाजिमी है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने अगले 17 अक्टूबर तक इसे व्यवहारिक रूप में लाने पर रोक लगा दी है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर तथा न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने कहा है कि जीएम सरसों को व्यावहारिक रूप से जारी करने से पहले सार्वजनिक रूप से विचार और उन्हें आकलन समिति के समक्ष रखा जाएगा।
सरसों देश की सर्दियों की प्रमुख फसल है, जिसकी बुवाई अक्टूबर मध्य से नवम्बर अंत तक की जाती है।
आने वाले 17 अक्टूबर को इस पर होने वाला फैसला अहम् होगा।
देखना होगा, दबे पांव आ रही जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट बीटी बैगन की तरह इसे भी अनिश्चित काल तक बैन करती है या देश के हजारों किसानों को दुखी करती है ?