सर्वेक्षण तो केजरीवाल को अगला मुख्यमंत्री बना चुके है तो साथ ही दिल्ली विधानसभा चुनाव में मोदी की हार की भविष्यवाणी कर रहे हैं, पर सर्वेक्षण पर भरोसा कम ही होता है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में ज्यादातर लोग वोट के हथियार का इस्तेमाल मोदी को सबक सिखाने के लिए कर सकते हैं। इसलिए यह चुनाव जिताने से ज्यादा हराने वाला नजर आता है
नई दिल्ली। पिछले दस दिन में दिल्ली विधानसभा चुनाव एकतरफा होता नजर आ रहा है। इस चुनाव में केजरीवाल को जिताने से ज्यादा मोदी को हराने की ध्वनि सुनाई पड़ रही है। अब ये तो नतीजे ही बताएंगे कि मोदी नसीब वाले है या इस चुनाव बाद ' बद-नसीब ' बन जाएंगे। सर्वेक्षण तो केजरीवाल को अगला मुख्यमंत्री बना चुके है तो साथ ही मोदी की हार की भविष्यवाणी कर रहे हैं, पर सर्वेक्षण पर हम लोगों का भरोसा कम ही होता है। इसलिए दस तक का इन्तजार करना चाहिए। पर आम लोगों का जो मूड समझ में आ रहा है और भाजपा के दिग्गज नेता जिस अंदाज में केजरीवाल के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं, उससे पार्टी की घबराहट सार्वजनिक होती जा रही है। पार्टी की दिल्ली इकाई पहले से अलग-थलग पड़ चुकी है और कार्यकर्त्ता भ्रमित और पस्त है।
मोदी ने जिस तरह मोहल्लों-मोहल्लों में भाषण दिया है उससे यह चुनाव फिर मोदी बनाम केजरीवाल बन गया है। किरण बेदी अब हाशिए पर हैं और आलाकमान ने बोलती अलग बंद कर दी है। योगेंद्र यादव ने सही कहा है कि अगर एक ढंग का लाइव इंटरव्यू किरण बेदी का प्रसारित हो जाए तो आप को पूर्ण बहुमत वैसे ही मिल जाएगा। किसी प्रचार की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी आम आदमी पार्टी का प्रचार भाजपा ज्यादा कर रही है, आप कम। पर बहुत ध्यान से देखें दिल्ली में बहुत से राजनैतिक दल क्या कर रहे हैं? कांग्रेस हारी हुई लड़ाई लड़ रही है और भाजपा उसे ताकत देने में जुटी है। कांग्रेस और गिरी तो भाजपा मुंह के बल गिरी नजर आएगी। बाकी दल और उनके कार्यकर्त्ता भी एक साफ स्टैंड ले चुके हैं। भाजपा को हराने का, मोदी को हराने का। मुकाबले में आप है इसलिए जाहिर है वोट आप को ही जाएगा। पर यह अन्य लोगों का यह वोट आप को जिताने से ज्यादा भाजपा को हराने का है। आप को जिताने वाला वोट आप के तीस हजार कार्यकर्ताओं ने तैयार कर दिया है जिसमे नौजवान ज्यादा है। झुग्गी झोपड़ी वाले ज्यादा हैं, दलित और पिछड़े ज्यादा हैं जिन्हें आम आदमी पार्टी बहुत सी कमजोरियों के बाद अपनी नजर आती है।
भाजपा ने नौ महीनों में जो किया उससे पार्टी अमीरों की पक्षधर नजर आने लगी है, यह भाजपा के शीर्ष नेता भी समझ रहे हैं। अडानी अंबानी और अन्य बड़े कारपोरेट घरानों का दस लाख का सूट पहनने वाले मोदी से क्या संबंध है यह सार्वजनिक हो चुका है। गांव गरीब और आम आदमी मोदी के एजेंडा से बाहर है। वे तो कभी अंबानी के साथ दीखते हैं तो कभी अडानी के। उन्हें फायदा पहुँचाने वाला भूमि अधिग्रहण अध्यादेश आ चुका है। मजदूरों के खिलाफ रुख साफ़ हो चुका है। मोदी की राजनीति भी साफ़ हो चुकी है और अहंकार भी। देश ने पहला प्रधानमंत्री देखा जो गली मोहल्ले में एक सामान्य से नेता से मुकाबला कर रहा है और पसीने छूट रहे हैं। दरअसल सिर्फ प्रचार प्रसार की राजनीति बहुत लंबी नहीं चलती और यही अप्रत्यक्ष मुद्दा भी है। फिर जिस अंदाज में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को तरह-तरह के मामले फंसाने और उलझाने का प्रयास किया गया उससे आम लोगों में नाराजगी भी बढ़ रही है। काला धन लेकर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस हो या भाजपा जब चुनावी चंदे के मसले पर उस पार्टी को घेरने का प्रयास करे जो सब कुछ वेब साईट पर डाले हो तो मामला और हास्यास्पद हो जाता है। इसलिए ज्यादातर लोग वोट के हथियार का इस्तेमाल मोदी को सबक सिखाने के लिए कर सकते है। इसलिए यह चुनाव जिताने से ज्यादा हराने वाला नजर आता है।
अंबरीश कुमार
जनादेश