दुर्गति हो गई राममंदिर आंदोलन के महानायक परमहंस की समाधि की
दुर्गति हो गई राममंदिर आंदोलन के महानायक परमहंस की समाधि की
शाह आलम, अयोध्या से
राम मन्दिर निर्माण आंदोलन के अगुवा रहे महंत रामचन्द्र दास परमहंस की समाधि दिन ब दिन दुर्गति होती जा रही है और एक दशक बाद लोग भूल भी चुके हैं कि यह समाधिस्थल उस व्यक्ति का है, जिसने भारतीय जनता पार्टी के सांप्रदायिक एजेंडे को लागू करने के लिए धर्म को हथियार बनाया था और आज भाजपा जिस स्थिति में है, उसमें परमहंस के योगदान को चाहकर भी भुलाया नहीं जा सकता। इस समाधि की सुध उन संगठनों को भी नहीं है जिनको उन्होंने शिखर पर पहुंचाया था।
अयोध्या के सरयू तट पर स्थित परमहंस की समाधि स्थल पर भव्य स्मारक बनाए जाने के लिए मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, गोरखपुर के सांसद योगी आदित्य नाथ, दिगम्बर अखाड़ा के महन्त सुरेश दास, भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू महासभा कई बार इसे बनवाने की घोषणा कर चुके हैं। इतनी घोषणाओं के बाद भी समाधि की स्थिति बद से बदतर होती चली गई। शायद आगामी 31 जुलाई को उनके श्रद्धाजंलि के दिन अगर इन संगठनों को याद रहा तो पूर्ण में की गई घोषणाओं की कड़ी में कुछ और नया जुड़ जाये।
22-23 दिसंबर 1949 की रात बाबरी मस्जिद में सबसे पहले मूर्ति स्थापित करने वाले रामचंद्र परमहंस ही थे। इस मामले में रामचंद्र परमहंस की गिरफ़्तारी भी हुई थी। परमहंस आजीवन राम मंदिर निर्माण को लेकर सक्रिय रहे।1989 में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ तो रामचंद्र परमंहस को इसका अध्यक्ष बनाया गया। गठन के शुरुआती दिन से लेकर जिंदा रहने तक न्यास के वे अध्यक्ष रहे ही वहीं लंबे समय तक दिगम्बर अखाडा़ के महन्त भी रहे। इसलिए दिगम्बर अखाड़ा के महन्त सुरेश दास ने परमहंस की समाधि पर 25 लाख की लागत से स्मारक बनाने की घोषणा दो अगस्त 2006 की थी, लेकिन वे आज तक वे इसकी साफ-सफाई भी नहीं करवा सके। हिन्दुत्ववादी संगठन, राममंदिर आंदोलन को शिखर तक पहुंचाने वाले महंत रामचंद्र परमहंस के कार्यों का सिला इस तरह देंगे और इतनी जल्दी अपने महनायक का यह हश्र करेंगे यह उम्मीद तो किसी को भी नहीं थी।
ऐसी उम्मीद इसलिए भी नहीं थी कि भाजपा को सत्ता की चाभी मिलने में परमहंस सबसे बड़े टूल थे। इसीलिए 1अगस्त 2003 को अंतिम संस्कार में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपायी, उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख रहे के।पी।सुदर्शन, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डा। मुरली मनोहर जोशी, गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद संघ के सरकार्यवाह मोहन भागवत, विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंहल, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू, केन्द्रीय कृषि मंत्री राजनाथ सिंह, मध्य प्रदेश भाजपा की अध्यक्ष सुश्री उमा भारती सहित देश की कई हिन्दुत्ववादी नेता शामिल हुए थे।
दरअसल 92 वर्षीय महंत रामचंद्रदास परमहंस का 31जुलाई 2003 की सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। 1अगस्त 2003 को सरयू के किनारे तुलसीघाट पर उनके अंतिम संस्कार के लिए व्यवस्था की गई थी। इसी दौरान शमशान घाट पर मंच का निर्माण किया गया था। मंच पर सभी हिंदुत्ववादी एक स्वर में मंहत रामचंद्र परमहंस जैसे ‘हिन्दुत्वादी’ महापुरुष को याद कर रहे थे। परमहंस कहते थे ‘अगर साक्षात भगवान श्रीराम भी आकर कहें तो भी मैं नहीं मानूंगा, उसी जगह पर मंदिर बनकर रहेगा।’
सवाल तो यह भी है कि जिन्होंने सत्ता पाने के बाद भगवान श्रीराम को ही भुला दिया वे महंत रामचंद्रदास परमहंस को क्यों कर याद करेंगे, लेकिन अपने उस महानायक की समाधि का यह हश्र करेंगे इसकी उम्मीद तो कतई नहीं थी। महंत रामचंद्रदास परमहंस की समाधि उन लोगों के लिए एक सबक की तरह शिलालेख बनकर खड़ी है जो भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी संगठनों के कथित हिंदुत्ववादी एजेंडे को लागू करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं।


