देखो तुम्हारा ईश्वर तो रोज़ मर रहा है...फंदे पर लटकते इस ईश्वर को कौन बचाएगा..
देखो तुम्हारा ईश्वर तो रोज़ मर रहा है...फंदे पर लटकते इस ईश्वर को कौन बचाएगा..
देखो तुम्हारा ईश्वर तो रोज़ मर रहा है...फंदे पर लटकते इस ईश्वर को कौन बचाएगा..
No to #Modi at #10DowningStreet
मनुस्मृति का नस्ली नरसंहारी, यह राजकाज सिर्फ जमींदारियों और रियासतों के मालिकान के वंशजों के वर्चस्व के लिए!
बनियों की सरकार किसानों के बाद खुदरा कारोबार के सफाये में लगी और एफडीआई से बिजनेस और इंडस्ट्री का भी सत्यानाश, क्योंकि मुनाफावसूली सिर्फ महाजिन्न के मालिकान करेंगे!
मारे जायेंगे आम लोग, अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े, आदिवासी बहुजन गैरहिंदू तो मारे जायेंगे आम सवर्ण भी!
न ब्राह्मण बचेंगे, न राजपूत और भूमिहार!
जो बजरंगी मौत की दस्तक से अब्दुल्ला दीवाना है!
Knock! Knock!Knock!. नी करी दी हालो हमरी निलामी, नी करी दी हालो हमरो हलाल।
हमारे युवा रंगकर्मी जनकृति के संपादक कुमार गौरव ने यह रपट हमें टैग किया जो गौरतलब हैः
मैं राष्ट्रवादी हूँ
क्यूंकि
मेरे घर नहीं जलाए गए
मेरे परिवार की इज्जत चौराहों पर उछली नहीं
मैं फुटपाथ पर नहीं सोता
मैंने कभी मौसम की मार से फंदे को हार नहीं समझा
कोई गोली मेरे सीने को नहीं चिरी
कभी मुझे रोटी सपने में नहीं दिखाई दी
मेरी आँखें अब कुछ नहीं देखती
मेरा ईश्वर तो मंदिरों में चैन की नींद सो रहा है
मैं मौन हूँ
मैं जानता हूँ, आखिर मेरा कुछ नहीं होगा
मेरा राष्ट्र जो मुझसे लिपटा है
................................................कुमार........................
बंद करो यह बकवास मुद्दे... कांग्रेस ने देश को गर्त में डाला, तुम आग में डाल दो...60 साल से सर में दर्द था, तुम 60 महीनों में सर ही गायब कर देना.
तुम जितना हिंदू-मुस्लिम करोगे... इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ोगे उतना जनता तुम्हें उखाड़ेगी.... यथार्थ यह है कि जो देश का विकास चाहता है उसको तुम्हारी हिन्दुत्ववादी राजनीति कचरा लगती है... जिस देश के किसान आत्महत्या कर रहे हों, आधी जनता गरीबी से नीचे जी रही हो, युवा अपने भविष्य को लेकर सशंकित हो, वहां की सरकार हिन्दू-मुस्लिम, गाय गोबर, जातिवाद इन्ही मुद्दे में फंसी हुई है.
यह कोई साजिश नहीं कर रहे सरकार... यह उसी राष्ट्र का हिस्सा है, जिसका बखान हम विदेशी जमीन पर करते हैं... जिस राष्ट्र में अन्नदाता आत्महत्या करने पर मजबूर है, क्या उस राष्ट्र पर गर्व किया जाए... शर्म तो इस बात पर आती है कि ऐसे गंभीर मुद्दे को छोड़ हम धार्मिक झंडों की लड़ाई लड़ते हैं... कोई बता सकता है कि यह किस धर्म के हैं...यह तो किसी पार्टी विशेष के भी नहीं. इनके समक्ष बस सत्ता बदली है जिसने इसके लिए केवल मरने के अलावा कोई रास्ता नहीं छोड़ा...
हमारे देश में तथाकथित अन्नदाता को ईश्वर की संज्ञा दी गई है. देख लीजिये आप, यह है हमारा स्वर्णिम राष्ट्र जहां ईश्वर आत्मह्त्या करता है... जहाँ ईश्वर पूंजीपतियों एवं नेताओं के राज में मरने पर मजबूर है...
हाँ, एक बार ओर गर्व से कहो हम विकसित हैं और पूरे विश्व में खोखली ताकत का ढिंढोरा पीटो.
पलाश विश्वास


