देशभक्ति की महामारी- गली के गुंडे सबसे बड़े देशभक्त हो गए
देशभक्ति की महामारी- गली के गुंडे सबसे बड़े देशभक्त हो गए
सैमुअल जॉनसन ने लगभग दो सदी पहले कहा था – पेट्रिऑटिज़्म इस दी लास्ट रेफ़्यूज ऑफ़ ए स्काउन्ड्रेल (देशभक्ति किसी बदमाश की अंतिम पनाहगाह है)।
इंग्लैंड में देशभक्ति बदमाशों की अंतिम शरणस्थली रही होगी मगर हमारे देश में ये उनकी पहली शरणस्थली बन गई है जिसकी मुस्तैद निगहबानी सरकार और पुलिस तंत्र कर रहा है। हालत ये है कि राजधानी दिल्ली के कोर्ट में वकील आरोपियों और पत्रकारों की पिटाई करते हैं और फिर सीना तान कर “भारत माता की जय” बोल अपनी देशभक्ति सिद्ध करते हैं और देशभक्त सरकार इनके खिलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं करती है। गुंडई पर उतारू वकील “हम देशद्रोहियों के साथ बार-बार यही सलूक करेंगे” कह कर “भारत माता की जय” लगा देते हैं और सरकार संतुष्ट हो कान में रूई डाल सो जाती है।
देशभक्ति की बयार में गली के गुंडे सबसे बड़े देशभक्त हो गए हैं।
इनके पास देशभक्ति का शुद्ध भगवा सर्टिफ़िकेट है। ये भारत माता की जय कह कर लोगों पर हमले करते हैं और गौ-माता की जय कहकर मुसलमानों की हत्या करते हैं, दंगे भड़काते हैं। सरकार निश्चिंत है। पुलिस को कोई परेशानी नहीं, क्योंकि इनकी देशभक्ति-मातृभक्ति प्रमाणित है। देशभक्त सरकार को इनकी चिंता क्यों हो? उसे चिंता करनी है उन देशद्रोहियों की जो जब-तब लोगों के हकों की बात करते हैं। ये सब देश के खिलाफ़ षड़यंत्र कर रहे हैं। मोदी जी ने भी कह दिया है कि विदेशी फंड पाने वालों ने बवाल मचा रखा है उनकी सरकार पलटने के लिए।
हालांकि विदेशी फंड वाली बात समझ में नहीं आती। एक तरफ तो आप विदेशी फंड लाने के लिए दुनिया के चक्कर मारे जा रहे हैं और दूसरी तरफ ये भी कह रहे हैं कि विदेशी फंड से सरकार गिराया जा रहा है। इस देश के वे गैर-सरकारी संगठन जो विदेशों से फंड लेते हैं वो ज्यादातर अमेरिका-यूरोप से आता है। वहां कौन आपकी सरकार के खिलाफ़ हो गया है मोदी जी? क्या ओबामा रूठ गए हैं? जुकरबर्ग से कुछ बाताकही हो गई या एंजेला मर्केल नाराज़ हो गईं? वैसे सुना है कि बिल गेट्स और बिल क्लिंटन के एन.जी.ओ. ने भी भारत में पैसा लगाया है। क्या इनकी नजर भी आपकी कुर्सी पर है? बिल क्लिंटन अब अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते – कहीं वे यहां सरकार बनाने का सपना तो नहीं देख रहे।
देशभक्ति राष्ट्रस्तरीय महामारी बन गई है
इस देश में अक्सर महामारियां फैलती रहती हैं। पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस फैल जाता है तो दिल्ली में डेंगू। देशभक्ति राष्ट्रस्तरीय महामारी बन गई है। स्वाइन फ्लू फैलता है तो आसपास छींकने वालों से डर लगता है – बीमारी के वायरस हमें न लग जाएं।
जबसे देशभक्ति की महामारी फैली है रास्ता चलते हर इंसान से डर लगता है। कहीं किसी को हमारी दाढ़ी में देश के खिलाफ़ षड़यंत्र न दिख जाए। दुकानदार राशन कम तोल रहा हो तो टोकने में डर लगता है। कहीं “भारत माता की जय” बोलकर वो हमें ही न अंदर करवा दे।
देश शेयर बाज़ार से भी ज्यादा संवेदनशील हो गया है।
मजदूर उचित मजदूरी मांगे तो देश का नुकसान होने लगता है। विद्यार्थी शिक्षा मांगे तो देश खतरे में पड़ जाता है। दलित अपने अधिकारों की बात करे तो विदेशी षड़यंत्र की बू आती है। कश्मीर या पूर्वोत्तर के लोगों के हकों की बात हो तो देश को दर्द होने लगता है। आदिवासी अपने जल-जंगल-जमीन की बात करे तो देश की गति कम पड़ने लगती है। दूसरी तरफ हजारों करोड़ रुपए का कर्ज बड़ी कंपनियां बिना डकार लिए निगल जाएं तो देश के कान पर जूं तक नहीं रेंगती क्योंकि मालिक लोग तो देशभक्त हैं, बाकी लोगों की तरह वे अपने हकों के नाम पर धरना-प्रदर्शन नहीं करते, पगार बढ़ाने के लिए हड़ताल नहीं करते, सरकार के खिलाफ़ नारे नहीं लगाते। अडानी-अंबानी की जमात ही देश की निःस्वार्थ सेवा कर रही हैं। वे दिन-रात देश की चिंता करते हैं और सोते जागते “भारत माता की जय” बोलते हैं। थोड़े बहुत पैसे दबा लिए तो क्या, उससे भी वे देश सेवा ही करेंगे।
सरकार ने देशभक्ति पर फुल सब्सिडी दे रखी है। वर्ल्ड बैंक को भी इससे कोई एतराज़ नहीं। इससे न तो मौद्रिक घाटा बढ़ता है और न ही राजकोषीय। राशन की दुकानों पर राशन मिले न मिले देशभक्ति का ‘ट्रेड फेयर’ धड़ल्ले से चल रहा है। सरकार देश को अगर सस्ते में बेच रही है तो देशभक्ति बिल्कुल मुफ़्त। सौ प्रतिशत सेल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आर.एस.एस. के पास इसका भरपूर स्टॉक है। जर्मनी से इंपोर्टेड मगर एकदम देसी।
साधो, ये सचमुच मुर्दों का देस!
इस बीच खबर है कि केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने विश्वविद्यालयों में भीमकाय तिरंगा फहराने का फरमान निकाला है। इस पर सालाना करोड़ों रुपए खर्च होंगे – एक अनुमान के अनुसार एक साल में लगभग 185 करोड़। इतने पैसों से कितने बच्चों की पढ़ाई हो सकती है, कितने स्कूल खुल सकते हैं, आदि ऐसे सवाल उठाना बेमानी है। मुफ़्त देशभक्ति बांटने के लिए भी कुछ निवेश तो करना पड़ता है। देश हित का मामला है। वैसे भी उबलती देशभक्ति के इस दौर में सवाल उठाना देशद्रोह है। ये दीगर है कि देश कहीं सूखे से मर रहा है तो कहीं मलेरिया से, कहीं कुपोषण से। देश कहीं कैरियर के दबाव में आत्महत्या कर रहा है तो कहीं फसल चौपट होने पर कीटनाशक खा जान दे रहा है। कहीं देश को दहेज के लिए जलाया जा रहा है तो कहीं बलात्कार कर उसका गला दबाया जा रहा है। लाचारी, बेइज्जती, शर्मिन्दगी और हताशा ओढ़े देश कभी सड़क पर होता है तो कभी मरघट में, घर तो कबके जलाए जा चुके हैं। साधो, ये सचमुच मुर्दों का देस!


