नाभिकीय शक्ति, समस्या का त्वरित समाधान नहीं व असुरक्षित है : ग्रीनपीस
बैनर लहराकर पवन खेतों में किया कुडानकुलम का विरोध
बीते महीने (मई, 2013) के शुरूआत में कुडानकुलम नाभिकीय शक्ति उत्पादन केन्द्र को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी मिलने के बाद ग्रीनपीस कार्यकर्ताओं ने नागरकोइल पवन खेतों में हवाई बैनर लहराये और वैकल्पिक ऊर्जा की वकालत करते हुये संदेश दिया कि देश का भविष्य अक्षय ऊर्जा पर निर्भर है, असुरक्षित नाभिकीय शक्ति पर नहीं।

इस अवसर पर ग्रीनपीस इंडिया की ऊर्जा अभियानकर्ता करूणा रैना ने कहा, “कुडानकुलम नाभिकीय शक्ति उत्पादन केन्द्र उस सोच का प्रतिनिधित्व करता है जो भारत में ऊर्जा क्षेत्र के लिये उचित नहीं है। देश में उठ रहे ऊर्जा सम्बंधी सवालों का सही जबाब तो इस रिएक्टर के नजदीक स्थित इन पवन खेतों में मौजूद है।” रैना ने आगे कहा, “पिछले करीब दो साल से यहाँ रहने वाले हजारों ग्रामीण नाभिकीय शक्ति उत्पादन केन्द्र की सुरक्षा सम्बंधी ये सवाल उठा रहे हैं कि अगर अचानक कोई हादसा हो जाता है तो उनका व उनके बच्चों का क्या होगा, इस समुन्दर का क्या होगा जिस पर हम पूरी तरह आश्रित हैं लेकिन मन में बैठे इस भय के बावजूद वे अब भी इडिनथकाराय में डटे हुये हैं। दूसरी तरफ, विरोध-प्रदर्शन करने वालों की सुनने के बजाय प्रशासन ने उन पर लोगों को भड़काने व गुमराह करने का मुकदमा ठोक दिया है और आन्दोलन को तोड़ने के लिये हजारों सशस्त्र पुलिस जवान तैनात कर दिये हैं। पता नहीं, भारत सरकार क्या चाहती है और किस हादसे का इन्तजार कर रही है? ”

करदाताओं के सहयोग के बिना कोई भी नाभिकीय शक्ति उत्पादन केन्द्र स्थापित नहीं किया जा सकता। भारत में पिछले 40 साल में जनता की अरबों डॉलर गाढ़ी कमाई इनमें लगा दी गयी लेकिन देश की बिजली आपूर्ति में नाभिकीय ऊर्जा अब तक मात्र 2.5% योगदान दे पायी है जो कि हाल में शुरू हुये पवन ऊर्जा उद्योग के 5% उत्पादन का सिर्फ आधा है।”

वहीं, ऊर्जा अभियानकर्ता आनंद प्रभु पतंजलि ने कहा, “दूसरे स्थानों की तरह कुडानकुलम में भी दो कारणों से हर नागरिक नाभिकीय शक्ति का विरोध कर रहा है। यह न तो यह सस्ती है और न ही सुरक्षित। हाल ही में तमिलनाडु ने इस प्लांट से पैदा होने वाली बिजली की कीमत का आंकलन किया था और बताया कि यहाँ से पैदा होने वाली बिजली की कीमत 3/किलोवाट/घंटा होगी। सुरक्षा जरूरतों व निर्माण सम्बंधी मापदण्डों को पूरा करने पर बिजली की कीमत और बढ़ जायेगी।”

ग्रीनपीस इंडिया की सीनियर मीडिया आफिसर सीमा जावेद ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन व दीपक मिश्रा ने अपने फैसले में यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक एटॉमिक इनर्जी रेग्युलेटरी बोर्ड (एईआरबी), द न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन आफ इण्डिया (एनपीसीआईएल) और दी डिपार्टमेन्ट ऑफ एटॉमिक इनर्जी (डीएई) अपनी अन्तिम मंजूरी नहीं दे देते, तब तक इस प्लांट को चालू नहीं किया जाना चाहिये। साथ ही फैसले में प्लांट से जुड़े विभिन्न सुरक्षा पहलुओं पर भी जोर दिया गया। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा: “ नियामक प्राधिकरण की हैसियत से एईआरबी और पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिये व प्लांट के शुरू होने से पहले सभी सुरक्षा मापदण्डों को पूरा होना सुनिश्चित कराना चाहिये।”