आज भी प्रासांगिक हैं डॉ. अंबेडकर
अमित सिंह
भारत के इतिहासकारों ने अंबेडकर को वो स्थान नही दिया जिसके वो हकदार हैं। इसका कारण कुछ भी हो सकता है पर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इसका कारण एक ही है और वो है उनका दलित वर्ग मे जन्म लेना।। मुझे इसमें इतिहासकारों की सवर्ण मानसिकता दिखती है।। अपवाद स्वरूप एकाध इतिहासकार ने डॉ. अंबेडकर को दलित नेता और दलितों के संघर्ष के अग्रदूत के रूप में स्थापित करने तथा उन्हे दलितों तक ही सीमित करने की संपूर्ण कोशिश की तथा उन्हे संविधान निर्माता के रूप में ही आज तक दर्शाया जाता है। परन्तु बाबा साहेब के अंदर बहुत से ऐसे गुण थे। जिसे समाज के सामने लाया ही नही गया। और वो है उनका आर्थिक चिंतक होना। क्योंकि यहाँ फिर उनका दलित होना उनके लिए अभिशाप बन जाता है। क्योंकि भारतीय समाज मे जाति प्रथा लोगो के रग रग मे खून के कतरे की तरह बह रही है।
वैसे तो इतिहास की किसी भी घटना के बारे में किसी भी प्रकार का तर्क दिया जा सकता है इतिहास में घटित घटनाओं की मीमांसा अनेक प्रकार से हो सकती है यदि ऐसा होता तो क्या होता यदि वैसा होता तो क्या होता?? यह मूलतः व्यर्थ की वैचारिक जुगली के इलावा कुछ नहीं। परन्तु बाबा साहेब का सवाल है कि कुछ बुनियादी तथ्यों को याद रखा जाना आवश्यक है।
आर्थिक पहलुओं पर उनके विचारों को इतिहासकारों ने ज्यादा महत्व नहीं दिया फिर भी उन्होंने समय- समय पर अपनी अर्थव्यवस्था संबंधी लेखों को लोगों के सामने रखा। बाबा साहेब को अनुसूचित जातियों की आर्थिक स्थिति का पूरा ज्ञान था कि वे केवल सामाजिक प्रतिष्ठा से ही नहीं आर्थिक तौर से भी पूर्णतया वंचित हैं।
बाबा साहेब ने नेशनल प्लानिंग कमीशन में सन् 1940 में सभी उद्योगों का राष्ट्रीयकारण तथा सामूहिक एवम् सरकारी खेती की बात की थी वो चाहते थे कि सामाजिक और आर्थिक क्रांति के साथ साथ राज्य निर्माण का काम भी एक साथ चले... इस विचार को मूलभूत अधिकार में तो स्थान नहीं मिला पर राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में जरूर शामिल किया गया। अतः संविधान में इसका व्यावहारिक दृष्टि से कोई विशेष असर नहीं है। बाबा साहेब मानते थे कि भूमि बंटवारे से दलितों की समस्या हल नहीं होगी इस लिए वो भूमि का राष्ट्रीयकारण चाहते थे।
बाबा साहेब ने 1947 मे एक लेख प्रांत और अल्पसंख्यक प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने लिखा हमारी समस्या है कि हमारे यहाँ बिना तानाशाही का राजकीय समाजवाद हो, हमारा समाजवाद संसदीय प्रणाली के साथ हो। और सुझाव दिया कि आर्थिक शोषण को समाप्त करने की दृष्टि से मूल उद्योगों का स्वामित्व और प्रबंध राज्य के हाथ मे रहे और बीमा-कंपनियों का राष्ट्रीयकारण हो। इसके साथ साथ ये भी कहा कि खेती में मालिकों, कश्तकारों आदि को मुआवजा देकर राज्य भूमि का अधिग्रहण करे और उस पर सामूहिक खेती की जाए जिससे ना कोई जमींदार होगा, ना कोई काष्तकार और ना कोई भूमिहीन मजदूर।
1938 में बंबई विधानसभा में उन्होंने कहा था कि मुझे अक्सर गलत समझा जाता है इसमे कोई संदेह नही होना चाहिए कि मैं अपने देश से प्यार करता हूँ लेकिन मैं इस सदन मे पूरे जोर शोर से कहना चाहता हूँ कि जब कभी देश हित और अस्पर्श्यों के हितों के बीच टकराव होगा तो मैं अस्पृश्यों के हितों को तवज्जो दूँगा। मेरे अपने हितों और देश हित के साथ टकराव होगा तो मैं देश हित को तवज्जो दूँगा।।
बाबा साहेब मानते थे कि राज्य तभी लोकतांत्रिक हो सकते हैं जब समाज भी लोकतांत्रिक हो। आज हमारा समाज मानस अलोकतांत्रिक है पर राज्य की प्रणाली लोकतांत्रिक हैं इसलिए हमारा लोकतंत्र कुछ अर्थों मे असफल हो रहा है अगर लोकतांत्रिक प्रणाली को सफल बनाना है तो राष्ट्र मानस और लोक मानस को भी लोकतांत्रिक बनाना होगा। बाबा साहेब राजकीय समाजवाद के पक्षधर थे उन्होंने एक बार रेलवे के मजदूरों को संबोधित करते हुए कहा था कि हमारे दो ही दुश्मन है एक ब्राह्मणवाद और दूसरा पूंजीवाद। गरीब का क्या भविष्य है?? क्या इन्हे विधायिका मे चुने जाने की आशा है? उनकी आर्थिक उन्नति के लिए कोई ध्यान देने वाला है ??
बाबा साहेब ने पूंजीवाद का पूर्ण विरोध किया था उन्होंने कहा था कि आज देश मे बड़ी जातिओं के 100-200 लोग अरब-खरबपति हैं जो देश की 50 करोड़ की आबादी का शोषण करके पूंजीपति बने हैं वह चाहे सवर्ण हों या दलित। कल इसमे से 5-10 दलित लोग पूंजीपति बन जाए तो क्या 12 करोड़ दलितों का उत्थान हो जाएगा?? इससे पता चलता है कि बाबा साहेब आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक समानता चाहते थे वे समाजवाद चाहते थे जो सभी के लिए हो। उनके मानवतावादी दर्शन में भारतीय संस्कृति को नही बल्कि समानता को स्थान प्राप्त है उन्होंने मानव और समाज के हितों को सर्वोपरि रखा।
इस बात से दिखता है कि बाबा साहेब में भारतीयता और भारतीय आर्थिक व्यवस्था की जानकारी गहराई तक थी। वे जानते थे कि परिवर्तनशीलता का गुण विकास के लिए जरूर है इसीलिए उन्होंने कहा कि स्थिरता गधे का गुण है घोड़े का नहीं। यह दिलचस्प है कि बाबा साहेब अंबेडकर जी ने संविधान पारित होने के तत्काल बाद अपने पहले साक्षात्कार में कहा था कि आज हम अंतर्विरोध के एक नये युग मे प्रवेश कर रहे हैं जिसमे राजनैतिक समानता तो होगी यानी एक वयक्ति-एक वोट।। पर आर्थिक व सामाजिक समानता नहीं होगी।।
अंबेडकर साहेब जी सार्वजनिक क्षेत्र मे अनेक बुनियादी उद्योग खोलने के पक्षधर थे बाबा साहेब ने अपने आर्थिक चिंतन में समाजवादी समाज योजनाबद्ध विकास, कृषि उद्योग, औद्योगिक और राष्ट्रीयकारण पर जोर दिया पर आने वाली संतानों को किसी एक विचार धारा से बाँध कर नही रखा है क्योंकि बाबा साहेब का मानना था कि समय-समय सामाजिक और आर्थिक स्थितियाँ परिवर्तित होती रहती हैं। किसी भी स्थिति को स्थाई रूप देना आजादी का हनन है। बाबा साहेब के प्रयासों से ही ऐसा संविधान बना जिसके अंतर्गत सभी नागरिकों को मूलभूत अधिकार और मताधिकार दिया गया है। बाबा को इतिहास के साथ साथ समाज का भी गहरा ज्ञान था उनकी किताबें-शूद्रो की खोज, अछूत कौन और कैसे, जाति उत्पत्ति का स्वरूप, रुपये की समस्या, जाति प्रथा का उन्मूलन, पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन, कांग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिए क्या किया, मि. गाँधी और अछूतों का उद्धार, सांप्रदायिक गतिरोध और उनका समाधान, भाषाई राज्य और अंत मे भगवान बुद्धा और उनका दम आदि इसका प्रतीक है।।
आजादी के बाद जो नीतियाँ रहीं उनमें बाबा साहेब की विचारधारा उभर कर सामने आती है कुल मिला कर बाबा साहेब मानव विकास के पक्षधर हैं इस विकास इस उत्थान के लिए मानव स्वय जिम्मेदार होगा और अपने विकास का मार्ग स्वय प्रशस्त करेगा। मानव को अपनी स्वतंत्रता और व्यक्तित्व की सुरक्षा करते हुए सहयोग, सदभाव, समता, करुणा, मैत्री, शांति, परोपकरिता, बंधुत्व और सहभागिता को लेकर चलना होगा।।
परिवारिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का सामना करते हुए वे सदैव अध्यनरत रहे। इसके परिणाम स्वरूप वे एक अच्छे वैचारिक लेखक साहित्यकार और यतत्वादी विचारक होकर पूरी दुनिया के सामने आये। और फिर संपूर्ण विश्व को मानवता का संदेश दिया। बाबा साहेब ने एक ऐसे समाज की कामना की जिसमे मानव मानव के नये समाज के अग्रदूत होंगें जहाँ श्रम पूजनीय और सेवा प्रतिष्ठित होगी। जो झूठी तथा दम्भी जातीय प्रतिष्ठा की भावना से मुक्त हों।
डॉ. अम्बेडकर साहेब जी में देश प्रेम और राष्ट्रीयता कूट-कूट कर भरी हुई थी। वे प्रान्तीयता और क्षेत्रवाद के कटु आलोचक थे। 4 अप्रैल 1938 को बम्बई विधान सभा में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि मुझे अच्छा नहीं लगता जब कुछ लोग कहते है कि हम पहले भारतीय हैं और बाद में हिन्दू अथवा मुसलमान। मुझे यह स्वीकार नहीं। धर्म, जाति भाषा आदि की प्रतिस्पर्धी निष्ठा के रहते हुए भारतीयता के प्रति निष्ठा पनप नहीं सकती है। मैं चाहता हूँ कि लोग पहले भी भारतीय हों और अन्त तक भारतीय रहें, भारतीय के अलावा कुछ नहीं। डॉ. अम्बेडकर के अन्तःकरण से निकले यह शब्द उनकी राष्ट्रीय निष्ठा की अभिव्यथित थी जो बड़े बड़े राष्ट्रवादियों में भी मिलना मुश्किल है। बाबासाहब का जीवन आदि से अंत तक प्रेरणादायक और स्फूर्तिदायक है। उनके जीवन के प्रसंगों को काव्य में उद्धृत किया जा सकता है। उनका सम्पूर्ण जीवन अपने आप में एक महाकाव्य है।
आज कल दलित संगठनों का एजेन्डा भी सिर्फ बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर की जयन्ती मनाना, आरक्षण की मांग करना और सुख सुविधाओं की बढ़ोत्तरी की मांग ही रह गई है। सामाजिक परिवत्र्तन, दलितों को मानवाधिकार दिलवाना ,मानवीय गरिमा से युक्त सामाज निर्माण की ललक कहीं पीछे छूट गई गयी है। यह दुखद है। आज देश मे कुछ संघटन बन गये हैं जो बाबा साहेब के नाम को अपने सामाजिक समूह का बड़ा व्यक्ति मान कर उनका नाम लेते हैं पर उनके विचारों को दूर दूर तक पालन नही करते हैं उनका केवल एक ही काम रहता है बस बाबा की मूर्ति के सामने फोटो खिचवाना और फिर उसका प्रचार करना।। ऐसे मित्र बाबा साहेब के अनुयायी नही बल्कि दुश्मन हैं।। जितनी जल्दी हो सके इस समस्या पर विचार कर इसे दूर करना होगा। पिछले 50-60 वर्षो से समाज की बढ़ी हुई ताकत को एक बार पुनः बटोरकर एकजुट करके बाबासाहब के सपनांे का भारत जिसमें न कोई उँचा-नीचा हो, न कोई भूखा-नंगा हो, न कोई अशिक्षित हो, न कोई भेद- भाव हो वाला जातिविहीन समाज बनाने के लिए लग जाना होगा अन्यथा इतिहास हमें एक नकारा और गैर- जिम्मेदार पीढ़ी के रूप में याद करेगी।
संविधान निर्माण उनकी राष्ट्र की साधना का प्रतीक है उसके लिए सबका सहयोग चाहिए, सिर्फ दलितों-पिछड़ों का नहीं। डॉ. अम्बेडकर का मिशन देश की एकता, अखण्डता और खुशहाली का है, सारे भारतीय समाज की भलाई का है। उनका मिशन भारतीय समाज को रुढि़यों, अंधविश्वासों और जड़ताओें से मुक्त कर उदार,बौद्धिक और वैज्ञानिक समाज बनाने का है। उनके मिशन को पूरा करने की दिशा में किया जानेवाला प्रयत्न ही बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
अमित सिंह, कंप्यूटर साइन्स – इंजिनियर , सामाजिक-चिंतक हैं । दुर्बलतम की आवाज बनना और उनके लिए आजीवन संघर्षरत रहना ही अमित सिंह का परिचय है। हिंदी में अपने लेख लिखा करते हैं।