देश के संवैधानिक ढाँचे पर हमला है भू-अधिग्रहण अध्यादेश
देश के संवैधानिक ढाँचे पर हमला है भू-अधिग्रहण अध्यादेश
Ø किसान और मज़दूर विरोधी अध्यादेश के विरोध में आंदोलन, ट्रेड यूनियन और राजनीतिक दल एकजुट
Ø कंपनियों द्वारा किसानों के ज़मीनों की लूट को आसान बनाने की सरकारी कोशिश है भू-अध्यादेश
Ø पूरे देश में खड़ा होगा अध्यादेश के विरोध में प्रतिवाद, संसद सत्र में धरना
नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2014 के आखरी हफ्ते में लाये गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में जनान्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (NAPM), अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP), जनसंघर्ष समन्वय समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन, इंसाफ, दिल्ली समर्थक समूह एवं अन्य संगठनों ने मिलकर दिल्ली के दीन दयाल मार्ग स्थित नेहरु युवा केंद्र में बीती 23-24 जनवरी 2015 को दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया। सभा में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखण्ड, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा के किसान और मज़दूर संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस अधिवेशन के पहले दिन केंद्र सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेशों पर विस्तारित चर्चा हुई और भू-अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में देश व्यापी प्रतिवाद खड़ा करने की योजना बनायी गयी, जबकि दूसरे दिन जन सभा आयोजित की गयी जिसमे विभिन्न राजनितिक दलों के नेताओं ने भू-अधिग्रहण के सम्बन्ध में अपने विचार रखे।
अधिवेशन ने इस बात को रेखांकित किया कि लाया गया भू-अधिग्रहण अध्यादेश देश की संसदीय जनतांत्रिक प्रणाली पर किया गया आघात है क्योंकि ये अध्यादेश संसद में बिना चर्चा कराये दोनों सदनों (राज्य सभा व लोकसभा) के सत्रावकाश के दौरान चोर दरवाजे से उस समय लाये गए हैं जब अगले दो महीने में ही संसद के सत्र चलेंगे। ये अध्यादेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 की घोर अवमानना का निर्लज्ज प्रदर्शन हैं जो कहता है कि इस प्रकार के अध्यादेश केवल विशेष परिस्थितियों या आपातकालीन स्थितियों में लाये जा सकते हैं।
भारतीय संविधान के अनु 39 B में प्राकृतिक संपदाओं पर देश के नागरिकों के अधिकार को परिभाषित किया गया है। लेकिन नया भू-अधिग्रहण अध्यादेश भारतीय संविधान के विरोध में खड़ा होते हुए प्राकृतिक संसाधनों को कंपनियों के हवाले कर देने के और अग्रसर है। इसलिए अध्यादेश जन विरोधी होने के साथ-साथ संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
वक्ताओं ने कहा कि सरकार ने इन अध्यादेशों के जरिये एक ही झटके में जल, जंगल, जमीन ओर खनिज पर लोगों को प्राप्त हुए सीमित अधिकार को ख़त्म करते हुए कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण के रास्ते को बहुत ही आसान बना दिया है। किसानों और मज़दूरों के लिए ज़मीन का मामला उनके अस्तित्व से जुड़ा होता होता है, इसलिए उन्होंने भारत की सडकों पर अपने अस्तित्व और रोजी रोटी की खातिर बरतानिया हुकूमत द्वारा बनाये गये सन् 1894 के भू-अधिग्रहण कानून को बदले जाने के लिए खून बहाया, और आदिवासियों तथा किसानों के ढेरो आंदोलनों और कुर्बानियों के बाद पिछली सरकार “भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्यर्वस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार कानून, 2013 ” नाम से औपनोवेशिक भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव लाने के लिए बाध्य हुई थी। हालाँकि संशोधित कानून भी जमीनों को अधिग्रहित करने का ही कानून था जमीनों को बचाने का नही, फिर भी वह कानून भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में संविधान के तहत स्थापित स्थानीय स्वशासी संस्थाओं और ग्रामसभाओं से परामर्श लेने तथा 70% किसानों के सहमति के प्रावधानों को रखता था। उस कानून में भूमि अधिग्रहण से पहले विकास परियोजनाओं के सामाजिक प्रभाव के अध्ययन का उल्लेख था और कहा गया था कि भूमि अधिग्रहण का कुल परिणाम ऐसा होना चाहिए कि वह प्रभावित लोगों के लिए गरिमामय जीवन का रास्ता तैयार कर सके, और इस मकसद से भू-अधिग्रहण से पहले परियोजनाओं के सामाजिक प्रभाव के आकलन का स्पष्ट प्रावधान था। परन्तु मोदी सरकार द्वारा लाये गए नए भू-अधिग्रहण अध्यादेश में कॉर्पोरेट के निहित स्वार्थ में इन सारे प्रावधानों को तिलांजलि दे दी गयी है और इसके साथ ही साथ वनाधिकार कानून 2006, वन संरक्षण कानून आदि जैसे 13 अन्य कानूनों को भी अध्यादेश के अन्तर्गत लाया गया है, जिसके वजह से लोगों के अधिकारों को निहित करने वाले जनपक्षीय कानून निष्प्रभावी हो जायेंगे, और सरकार तथा कंपनियों द्वारा व्यक्तिगत और सार्वजनिक ज़मीनों के अधिग्रहण/अतिक्रमण की प्रत्येक कार्यवाही कानूनी प्रक्रिया के दायरे से मुक्त हो जायेगी।
अधिवेशन ने फौरी तौर पर अध्यादेश के विरोध में निम्न कार्यक्रम तय किये –
1. 26 जनवरी को पूरे देश भर में ग्रामसभाओं द्वारा भू-अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में अध्यादेश पारित किये जायेंगें।
2. 30 जनवरी 2015 को गाँधी जी के शहादत दिवस पर पूरे देश में अध्यादेश की प्रतियां जलाई जायेंगीं।
3. देश भर में जिला मुख्यालयों, भाजपा के कार्यालयों के समक्ष अध्यादेश के विरोध में धरना दिया जाएगा।
4. गैर भाजपा शासित राज्यों की विधान सभाएं इस अध्यादेश के खिलाफ प्रस्ताव पारित करें, इसके लिए राज्यों के सत्ताधारी पार्टियों के नेताओं से संवाद कायम किया जाएगा।
5. संसद के बजट सत्र के शुरुआत में एक दिन (Feb 22/23) देश के सभी जिलों में प्रतिवाद कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, और जंतर मंतर पर भी एक विशाल धरना आयोजित किया जाएगा।
6. 20मार्च 2015 से 8 अप्रैल 2015 के बीच राष्ट्र व्यापी यात्रा आयोजित की जायेगी।
7. जन आंदोलनों की सामूहिक पहल के तौर पर जमीनों के अधिग्रहण, उपयोग, आवंटन और प्रस्तावित अधिग्रहण के ऊपर एक श्वेत पत्र ज़ाहिर किया जायेगा
अधिवेशन के दूसरे दिन हुई जन सभा को नर्मदा बचाओ आन्दोलन – NAPM की नेता मेधा पाटेकर, भाकपा (माले) की नेता का० कविता कृष्णन, माकपा नेता का० हन्नान मौला, कांग्रेस के नेता कैपटन अजय राव, आम आदमी पार्टी के नेता योगेन्द्र यादव, प्रेम सिंह (सोसलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया), भारतीय मजदूर संघ के नेता श्री पाण्डेय एवं आदिवासी मुक्ति संगठन के विजय पांडा और रोमा (AIUFWP) ने प्रमुख रूप से संबोधित किया।
.@kavita_krishnan our strength on ground is our capital and we need to make that stronger and then only political parties will come with us
— NAPM India (@napmindia) January 24, 2015
.@kavita_krishnan in RePublic there is no space for 'public' today and we need to ask this govt, where are we?
— NAPM India (@napmindia) January 24, 2015
.@kavita_krishnan UPA had same agenda and wanted to do what NDA is doing, but people's pressure got them to repeal 1894 Act #LandOrdinance
— NAPM India (@napmindia) January 24, 2015
.@HMOIndia in opposition said SIA was soul of 2013 Act, look what they have done today, Hannan Mollah, CPIM #LandOrdinance
— NAPM India (@napmindia) January 24, 2015
.@DrChandanMitra was with us in PSC to bring consensus on 2013 Act as member with me, but he is also not saying anything on #LandOrdinance
— NAPM India (@napmindia) January 24, 2015
.@AapYogendra @medhanarmada, Capt Ajay Singh of Congress at strategy dialogue on countering #LandOrdinance pic.twitter.com/1haQZhMtNu
— NAPM India (@napmindia) January 24, 2015
Durlabh Singh from himachal Pradesh talks about their struggle agnst SEZ and plans for combating #LandOrdinance pic.twitter.com/H4vkMPF5Xs
— NAPM India (@napmindia) January 23, 2015


