अब देश में सबसे ज्यादा दहेज उत्पीड़न के मुकदमे बंगाल में
बलात्कार सुनामी के बाद दहेज हत्याओं का अंतहीन सिलसिला
सबिता बिश्वास

हम लोग बड़े गर्व से कहा करते थे कि बंगाल में कमसकम विवाह के मामले में जाति धर्म की कोई दीवार नहीं है।
यहां अंतरजातीय, अंतरभाषाई और अंतरधर्मीय विवाह में आम तौर पर कोई सामाजिक अड़चन नहीं पैदा होती। प्रेम विवाह या विवाह के बिना लिव टुगेदर से भी बावेला मचता नहीं है।

सबसे बड़ी बात कि बंगाल में दहेज उत्पीड़न होता नहीं है। अब ये सारे मिथ टूट रहे हैं।
हमारे लिए यह बहुत बड़ा सदमा है कि बंगाल की बौद्धमय और उदार, प्रगतिशील विरासत की अब रोज-रोज हत्या होने लगी है।
महिषासुर विवाद के बावजूद हम दुर्गा पूजा और खास तौर पर कालीपूजा की बंगाली संस्कृति को बंगाल में मातृसत्ता की परंपरा से जोड़ते रहे हैं।
देश में आखिर तक ग्यारवीं शताब्दी तक बुद्धमय रहने की विरासत, बाउल फकीर, वैष्णव परंपरा, लगातार किसान आदिवासी मेहनतकश जनविद्रोह की जमीन, मतुआ आंदोलन और नवजागरण की पृष्ठभूमि बंगाल में वाम अवसान के बाद मुकम्मल मनुस्मृति शासन की पितृसत्ता के निरंकुश एकाधिकार में तब्दील हैं।
मां माटी मानुष के नाम बाजार की तमाम ताकतों की मौकापरस्त सत्ता वर्ग के नागरिक समाज की गोलबंदी से जो परिवर्तन हुआ, उसके बाद बंगाल में स्त्री उत्पीड़न का सिलसिला हैरतअंगेज है। खासकर तब जबकि बंगाल की मुख्यमंत्री खुद एक स्त्री है और ऐसी स्त्री है, जिसे इस मुकाम तक पहुंचने के लिए तजिंदगी प्रतिकूल परिस्थितियों का समाना करना पड़ा है।

एक स्त्री के राजकाज में बंगाल में कामदुनी से काकद्वीप तक जो बलात्कार सुनामी चल रही थी, वह अब अभूतपूर्व घरेलू हिंसा का जलाजला में तब्दील है।
दीदी जबकि देश भर में नोटबंदी के खिलाफ राजनीतिक नेतृत्व कर रही हैं और शायद जयललिता के अवसान के बाद विपक्ष के बावी प्रधानमंत्री बनने के लिए अपने पांख मजबूत करने में लगी हैं, ऐसे वक्त बंगाल में भारत भर में सबसे ज्यादा दहेज उत्पीड़न के बीस हजार मामले दर्ज हैं।
बंगाल का न सिर्फ तेजी से केसरियाकरण हो रहा है, न सिर्फ बंगाल में जीवन के किसी भी क्षेत्र में बहुजनों का प्रवेश निषिद्ध है, न सिर्फ अस्पृश्यता का रंगभेद में तब्दील हैं बंगीय संस्कृति, अब इस निरंकुश केसरिया समय में बंगाल बर्बर असभ्य पितृसत्ता का आखेटगाह बन गया है और इसका ममता बनर्जी की अपार लोकप्रियता से फिलहाल कोई संबंध नहीं दिख रहा है।
अपने जनाधार और राजनीतिक सदिच्छा से वह हालात बदल सकती हैं, लेकिन बलात्कार सुनामी की पीड़ितों के पक्ष में खड़े होने के बजाय उन्होंने कामदुनि से लेकर काकद्वीप तक बलात्कारी पितृसत्ता का चेहरा बनने की कोशिश की है। जिसके नतीजतन आज हालात नियंत्रण से बाहर हैं।
हमने कुछ ही दिनों पहले यादवपुर विश्वविद्यालय की मेधावी छात्रा मिता मंडल की दहेज हत्या के बारे में लिखा था।

उस वक्त भी हम इसे अपवाद ही मान रहे थे।
अभी-अभी सोदपुर पीयर लैसनगर की बेटी काजल की हत्या ससुराल वालों ने दस लाख के दहेज के साथ गाड़ी, आई फोन और घर सजाने के तमाम आसबाब की मांग लेकर कर दी है। जबकि शादी की रस्म अष्टमंगला से पहले उसकी लाश ससुराल से मायके लौट आयी है।
गौरतलब है कि नकदी संकट के बावजूद काजल के पिता ने दहेज में कोलकाता के उपनगर बागुईहाटी के वाशिंद काजल के ससुराल वालों को साढ़े चार सौ ग्राम सोने के जवरात और नकद एक लाख रुपये का भुगतान शादी के वक्त कर दिया था।

इस मुश्किल वक्त में ससुराल वालों की मांग पर मोहलत का इंतजार कर रहे थे मायके के लोग कि बेटी की लाश घर लौट आयी।
स्त्री उत्पीड़न के खिलाफ तमाम कायदा कानून बनाने वाले राजा राममोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर के बंगाल में पिछले साल दहेज उत्पीड़न के बीस हजार मुकदमे दर्ज हुए हैं।
रूपकंवर के राजस्थान बंगाल से दहेज उत्पीड़न के मामले में पीछे है। दूसरे नंबर पर राजस्थान में दहेज उत्पीड़न के पिछले साल बंगाल से छह हजार मामले कम दर्ज हुए।