रणधीर सिंह सुमन

अमेरिका में विपक्ष के विरोध के कारण अमेरिकी बजट पास नही हो पाया और वहाँ आवश्यक कर्मचारियों को छोड़ कर काम बंदी चल रही है। यह अमेरिकी बहाना हो सकता है जबकि वास्तविकता यह है कि वह पूरी तरीके से दिवालिया हो चुका है। बैंक, बीमा कम्पनियाँ पहले से ही दिवालिया चल रही हैं। युद्ध उद्योग के कारण उसकी मुद्रा डॉलर दुनिया में राज कर रही है। अब जरूरत है भारत, रूस, चीन, ईरान सहित मजबूत देश डॉलर की उपयोगिता को समाप्त करें और आपस में सारा व्यापार अपनी अपनी मुद्रा में करें। अमेरिका की शोषणकारी और सम्राज्यवादी प्रवित्तियों से मुक्त हों।

अमेरिका वित्तीय संस्थानों, बैंक, कॉर्पोरेशंस और विदेशी संस्थानों से कर्ज लेता है। इस पर वह ब्याज भी अदा करता है। जिन प्रमुख देशों के बैंकों, वित्तीय संस्थानों या विदेशी निवेशकों से वह कर्ज लेता है, उनमें प्रमुख रूप से हॉन्ग कॉन्ग, चीन, बेल्जियम, लक्जमबर्ग और ताइवान शामिल हैं। जरूरत पड़ऩे पर अमेरिका स्विस बैंक से भी कर्ज लेता है। आज वह कर्ज अदा करने की स्थिति में नहीं है।

साम्राज्यवादी शक्तियों के चँगुल से निकलने का सही समय यही है और मानवता को बचाए रखने के लिए अपने-अपने मुल्कों की जनता का शोषण रोकने के लिए डॉलर की दादागिरी ख़त्म करना आवश्यक है। हम अमेरिका से कोई ऐसी वस्तु आयात नहीं करते हैं कि जिसके बगैर हमारा काम न चल सके और यह समस्त चीजें दुनिया के दुसरे देशों से भी लिया जा सकता है। अमेरिका कभी भी हमारा स्वाभाविक मित्र हो ही नहीं सकता उसकी अर्थव्यवस्था लूट और गुंडागर्दी के ऊपर ही आधारित है और जब उनका विलाप प्रारम्भ हुआ है।

नेशनल इंटेलिजेंस के निदेशक क्लैपर ने रुँवासे अंदाज में कहा कि यह केवल वॉशिंगटन का राजनीतिक मसला भर नहीं है बल्कि "इसकी वजह से हमारी अमरीकी सेनाओं, कूटनीतिज्ञों और नीति निर्माताओं की मदद करने की ताकत भी प्रभावित होती है और इस तरह के हालात में हर बीतते दिन के साथ यह ख़तरा बढ़ रहा है।"

क्लैपर ने कहा कि कर्मचारियों को वेतन ना देना, जबरन छुट्टी पर भेजना उन्हें आर्थिक दिक्कतों में डालता है और यह विदेशी गुप्तचर संस्थाओं के लिए बेहद मुफ़ीद है। यह विदेशी गुप्तचर संस्थाओं के लिये सपने सच होने जैसा है।"

वहीँ, अमरीका की तकनीकी गुप्तचर संस्था के निदेशक जनरल कीथ एलेक्जैंडर ने कहा कि उनकी संस्था ने हजारों गणितज्ञों और कंप्यूटर विशेषज्ञों को छुट्टी पर भेज दिया है जिसका उन्हें वेतन नहीं मिलेगा।

आज जब अमेरिका जो पूरी दुनिया में कत्लेआम करते हुये नजर आ रहा था, वह छाती पीट कर रो रहा है। चापलूस मुल्क उनके आँसू कब तक पोछेंगे। आँसू उनके बन्द नहीं हो सकते हैं चाहे तीसरी दुनिया के सारे नागरिकों का क़त्ल करके समस्त संपत्ति दे दी जाये। अमेरिका ने सिर्फ इंसानों का कत्लेआम ही किया चाहे वह इराक हो, लीबिया हो, सीरिया हो, अफ्गानिस्तान हो। वहीँ जो उसके साथ रहा उसकी स्थिति सोमालिया जैसी कर दी कि जहाँ आज समुद्री डाकुओं को छोड़ कर कुछ बचा नहीं है। इसीलिए ओबामा अपने कुनबे के साथ अमेरिका में विलाप कर रहे हैं और उनके सारे दौरे रद्द हो गये हैं।