धर्मनिरपेक्षता के क्षत्रपों की तिकड़ी राज्यसभा में संघ परिवार की जीत क्यों तय कर रही है
धर्मनिरपेक्षता के क्षत्रपों की तिकड़ी राज्यसभा में संघ परिवार की जीत क्यों तय कर रही है
धर्मनिरपेक्षता के क्षत्रपों की तिकड़ी - समाजवादी पार्टी संघ परिवार के साथ सैफई से लेकर संसद तक में खड़ी है, लेकिन यूपी में चुनावी हितों के मद्देनजर इसका खुलासा होने नहीं देना चाहती।
यूपी में 2017 में इलेक्शन है और धुरंधर क्षत्रप मुलायम को दोनों हाथ में लड्डू रखने और खाने के गुर खूब मालूम हैं। समाजवादी पार्टी संघ परिवार के साथ सैफई से लेकर संसद तक में खड़ी है, लेकिन यूपी में चुनावी हितों के मद्देनजर इसका खुलासा होने नहीं देना चाहती।
मुलायम के हाल में बने रिश्तेदार भयंकर धर्मनिरपेक्ष हैं और संसद में उनकी कोई ताकत नहीं हैं। वे एकदम सुरक्षित खेल रहे हैं, जबकि उन्हें हाशिये पर फेंकने वाली फिलहाल सत्ता समीकरण में उनके साथ नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल यू, बंगाल की ममता बनर्जी और ओड़ीशा को कारपोरेट हवाले करने वाले नवीन पटनायक राज्यसभा में कोयला और खान अधिनियमों में संशोधन के अहम सुधारों को पास करने में धर्मोन्मादी संघ परिवार के हम साथ साथ हैं, परिवार। फिर भी पूछते रहेंगे, हम आपके हैं कौन।
हम शुरू से लिख रहे हैं कि सरकार को भूमि अधिग्रहण संशोधन की जल्दबाजी नहीं है।
अमेरिकी हितों के मद्देनजर टाप पर रहा है बीमा संशोधन बिल, वह स्मूथली पारित हो गया धर्मनिरपेक्ष कंधों पर सवार।
देश के आदिवासी भूगोल को बेदखल करने से धर्मनिरपेक्ष वोट बैंक की राजनीति को कुछ आता जाता नहीं है। सिर्फ ओड़ीशा में झारखंड और छत्तीसगढ़ के बाद सबसे ज्यादा आदिवासी हैं, जिनकी जमीनें नवीन पटनायक पहले ही कारपोरेट हवाले कर चुके हैं।
बंगाल में तीस फीसद मुसलमान वोटर हैं तो नमाज पढ़ने या हिजाब ओढ़ने तक से परहेज नकरके धर्मनिरपेक्ष ममता मोदी को कमर में रस्सी बांधकर जेल भेजने का ऐलान करती हैं लेकिन बंगाल में आदिवासी वोट सिर्फ सात फीसद हैं। जंगल महल दखल करने का उनका एजेंडा पूरा हो गया। वाम भी हाशिये पर हैं।
इसलिए बेहिचक संसद में ममता संघपरिवार में शामिल और बाहर संघ परिवार के खिलाफ जिहाद, जिहाद, जिहाद। ताकि मुसलमान गलतफहमी में रहे।
इसी तरह बिहार में भी आदिवासी वोटरों का प्रतिशत काफी कम है, जो चुनाव नतीजों के गणित के हिसाब से बेमतलब है।
अब समझ लीजिये कि कैसे धर्मनिरपेक्षता के क्षत्रपों की यह तिकड़ी कोयला और खान संशोधन विधेयकों को पास कराने के लिए कांग्रेस के विरोध के बावजूद राज्यसभा में संघ परिवार की जीत क्यों तय कर रहे हैं। उनकी धर्मनिरपेक्षता का आशय क्या है।
सर्वभारतीय पार्टी होने के कारण आदिवासियों के हितों की कतई परवाह न करने वाली और आजादी के बाद से आदिवासियों को लगातार तबाह करते रहने वाली कांग्रेस के लिए सत्ता में वापसी के लिए आदिवासी हितों के रक्षक बतौर दीखने की गरज है, इसलिए भूमि, कोयला और खनन विधेयकों को उसका समर्थन निषिद्ध है।
व्यापारी कांग्रेस के वोटबैंक नहीं है, इसलिए खुदरा कारोबार रसातल में जाये तो कांग्रेस को फर्क नहीं पड़ता और न देश के संसाधन बेचने के अपने अभियान संघ परिवार की ओर से और तेज किये जाने से उसके पेट मों कोई तितलियां हैं। देश बेचने का मौलिक सौदागर फिर वहींच कांग्रेस। विदेशी पूंजी की काजलकोठरी में सबके चेहरे कारे हैं।
यही सबसे बड़ा कोयला घोटाला है, जिस पर कोई मुकदमा चलेगा नहीं।
इसलिए हम तीसरा विकल्प धर्मनिरपेक्ष विकल्प नहीं मानते क्योंकि संसदीय सहमति की राजनीति में धर्मनिरपेक्षता सबसे बड़ी धोखाधड़ी है।
इसीलिए हम बार बार लाल नील एकता के तहत मेहनतकश के वर्गीय ध्रूवीकरण का एकमात्र रास्ता बता रहे हैं। अंध गलियों में भटकने के बजाये लाल और नील ताकतों को बहुजन सर्वहारा तबके के वर्गीय ध्रूवीकरण के लिए काम करना चाहिए।
वाम को धर्मनिरपेक्ष सत्ता लोलुप क्षत्रपों के चंगुल से निकलकर मेहनकश जनता की गोलबंदी को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
वहीं, नीले झंडे के अनुयायियों को समझ लेना चाहिए कि जिस बाबासाहेब को वे अपना ईश्वर बनाये हुए हैं, वे जातिव्यवस्था को खत्म करने के लिए जिये मरे और समता औक सामाजिक न्याय के लिए उऩका जो जाति उन्मूलन का एजेंडा है, वह बहुजनों को वर्ग मानने की बुनियाद पर खड़ा है। वर्गीयध्रूवीकरण का मकसद जितना वाम है, उससे कमसकम भारतीय संदर्भ में वह अंबेडकरी कहीं ज्यादा है।
इस सत्य को समझे बिना इस केसरिया कारपोरेट समय में न वाम का कोई भविष्य है और न बहुजन आंदोलन का।
पलाश विश्वास


