शासक नरभक्षी हो गए हैं क्या
रणधीर सिंह सुमन
जम्मू-कश्मीर में लगभग 40 दिनों से सेना और जनता में राजनीतिक विफलता के कारण छाया युद्ध हो रहा है।
जनता की ओर से लगभग 70 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, कई हजार लोग घायल हैं। वहीं हमारी सेना के भी लोग मारे गए हैं, भारी संख्या में घायल हैं। विपरीत परिस्तिथियों में काम करने के कारण उनके कार्यक्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

सेना दुश्मनों से लड़ने के लिए होती है, नागरिकों से नहीं।
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लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे देश में सेना का उपयोग अपनी ही जनता के खिलाफ किया जा रहा है।
कश्मीर में जहाँ सांसद और विधायक निर्वाचित हैं, स्वायत्तशासी संस्थाएं हैं, पता नही वह क्या कर रही हैं।
कर्फ्यू लगा हुआ है इन्टरनेट की सेवाएं बंद हैं।
मोबाइल बंद है, अखबारों के ऊपर सरकार द्वारा प्रतिबन्ध न होने के बावजूद भी प्रकाशन व वितरण ठप सा हो गया है।

अघोषित आपातकाल है।
15 अगस्त को प्रधानमंत्री बलूचिस्तान व पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों को राजनीतिक समर्थन देकर विश्व को कौन सा सन्देश देना चाहते हैं। उनकी पार्टी के लोग कश्मीर का सवाल मुसलमान सवाल के रूप में देखते हैं और प्रधानमंत्री बलूचिस्तान व पाक अधिकृत कश्मीर के मुसलमान जनता की चिंता ज्यादा किये हुए हैं।

वहीं, विदेश मंत्री स्तर की वार्ता शुरू करने का प्रस्ताव भी चल रहा है।
सरकार की विदेश नीति और गृह नीति अलिखित है। जब जो चाहे इन नीतियों के सम्बन्ध में भाषण देना शुरू कर दे, वही गृह नीति व विदेश नीति हो जाती है।

जम्मू-कश्मीर में चाहे जनता मरे या हमारी सेना, दोनों दुखद हैं।
शासक संवादहीनता के शिकार हैं। भारतीय नागरिक मर रहे हैं। नरभक्षी शासकों की जुबान चुप है।
संवाद के माध्यम से राजनीतिक तरीके से समस्या का समाधान हो सकता है। ताकत से नहीं जीता जा सकता है।
सीमा पर एक तरफ तो मोर्टार व गोलियां चल रही होती हैं तो वहीं बाघा बॉर्डर व हुसैनी वाला बॉर्डर पर पाकिस्तान से ही मिठाइयों का आदान प्रदान हो रहा है। जिससे यह साबित होता है कि शासक नरभक्षी हो गए हैं। इंसान के मरने से उनके ऊपर कोई असर नहीं होता है।
Ruler have become cannibals, No human death would have any impact on him