नवउदारवाद की प्रयोगशाला में भ्रष्टाचार-2
नवउदारवाद की प्रयोगशाला में भ्रष्टाचार-2
डॉ प्रेम सिंह
दूसरी किस्त
काला धन वापस लाकर जनता का दरिद्रय हरने की वकालत करने वाले दरअसल झांसा देते हैं। काला धन जमा करने वाले स्विस अथवा अन्य बैंक इस व्यवस्था का स्वीकृत हिस्सा हैं। यह व्यवस्था धन को काला कर सकती है, लेकिन जिन्होंने वह पैदा किया है, उन पर खर्च नहीं कर सकती। वह खद्यान्नों को बरबाद कर देगी, उनका उत्पादन घटा देगी, लेकिन भूखी और कुपोषित आबादियों को उपलब्ध नहीं होने देगी।
आप मारें या छोड़ें, कहना होगा कि भ्रष्टाचार के विरोध में जो देश गरमा रहा है, उसकी सच्चाई यही है। पिछले तीन दशक से ज्यादा की छोटी-मोटी राजनीतिक सक्रियता के अनुभव पर हमारा मानना है कि भ्रष्टाचार विरोध का यह अभियान वास्तव में राजनीति के विरोध का अभियान है। अमेरिका से भारत तक नवउदारवाद स्वतंत्रा राजनीति की इजाजत नहीं देता। बराक ओबामा को राष्ट्रपति बने दो साल हुए हैं। अगला चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने रिकाॅर्ड धन इक्ठ्ठा कर लिया है। अमेरिका में यह चल सकता है, लेकिन भारत में स्वतंत्रा राजनीति का न रहना, भारत का ही न रहना हो जाएगा। नवउदारवाद की प्रयोगशाला में अर्थनीति के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, भाषा, कला, साहित्य, संस्कृति, यहां तक कि नागरिक-बोध और जीवन-मूल्यों को भी नवउदारवादी मोल्ड में ढाला जा रहा है। अगर राजनीति भी उसी मोल्ड में ढल में जाएगी तो नवउदारवाद का प्रयोग पूरा हो जाएगा। अलबत्ता तो नवउदारवाद के समर्थकों को कोई समस्या नजर नहीं आती, लेकिन जब मंहगाई, बेरोजगारी, बीमारी, कुपोषण, विस्थापन, किसानों व छोटे व्यावसायियों की आत्महत्याओं की खबरें और रपटें आती हैं, वे नवउदारवादी नीतियों को नहीं, उन्हें निर्णायक और त्वरित गति से लागू न कर पाने वाली सरकारों, राजनीति और राज्य को दोष देते हैं।
राजनीति से नफरत का आलम
पिछले दिनों दिल्ली में खूनी दरवाजे के पास शहीदी पार्क में जेपी की मूर्ति के साए में आयोजित एक सभा में टीम हजारे के एक प्रमुख नुमाइंदे स्वामी अग्निवेश के राजनीति और लोकशक्ति पर विचार सुनने को मिले। अवसर कुछ साथियों द्वारा पटना से दिल्ली तक की गई संपूर्ण क्रांति संकल्प यात्रा के समापन का था। अग्निवेश ने राजनीति को बुरा ही बुरा और लोकशक्ति को अच्छा ही अच्छा बताया। अपने मुंह मिया मिठ्ठू बनते हुए खुद को और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के संचालक अपने साथियों को लोकशक्ति का सच्चा प्रतिनिधि और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को सच्चा लोकशक्ति अभियान घोषित किया। बिना किसी संदेह के, गोया लोकशक्ति रसगुल्ला हो, उठाया और गप से खा लिया। जैसे इस देश में लोकशक्ति की पहचान, परिभाषा और साधना का कोई विमर्श और इतिहास न रहा हो।
लोकशक्ति के गुणगान में गांधी का हवाला जरूर दिया जाता है। नवउदारवाद की प्रयोगशाला में गांधी को ऐसी गरीब गाय बना दिया गया है जिसकी रस्सी खींच कर कोई भी अपने खूंटे से बांध लेता है - मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी से लेकर अन्ना-रामदेव तक। हमने आपको बताया था कि भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में धन से लेकर प्रचार तक की व्यवस्था करने वाले अरविंद केजरीवाल अभियान की एक सक्रिय हस्ती किरण बेदी की नजर में छोटे गांधी हैं। नरेंद्र मोदी का गांधी-प्रेम अक्सर प्रकट होता रहता है। उन्होंने जो गुजरात बनाया है उसकी प्रेरणा वे गांधी को मानते हैं। अन्ना हजारे को अपने प्रशंसा-पात्रा के रूप में सबसे पहले नरेंद्र मोदी शायद इसीलिए याद आए!
नवउदारवाद की प्रयोगशाला में गांधी की एक अलग प्रतिमा गढ़ी जा रही है। वरना क्या कारण है कि सरेआम संविधान और पद की जिम्मेदारी और मानव मर्यादा को धता बता कर हजारों निर्दोष नागरिकों की हत्या कराने वाले नरेंद्र मोदी के प्रशंसक अन्ना हजारे को गांधीवादी कहा और लिखा जा रहा हैे? और गांधावादी चुप ही नहीं, समर्थन में हैं। गांधी की रट लगाने वाले सिविल सोसायटी एक्टिविस्ट कभी लोहिया का नाम नहीं लेते। शायद वे गांधीवादियों की चैथी कोटि का नामकरण होने से डरते हैं जो नवउदारवाद की प्रयोगशाला में गढ़ कर उनके रूप में सामने आई है। हालांकि संभावना नगण्य है, पिछड़ा-राज आने पर ये लोग लोहिया को भी लपेट सकते हैं और दलित-राज आने पर अंबेडकर को। क्या इस जमात को थेथर गांधीवादी कहा जा सकता है?
अग्निवेश ने भी अपने भाषाण में गांधी का हवाला दिया कि वे उन्हीं का काम आगे बढ़ा रहे हैं। इन महानुभावों की नजर में वही लोकशक्ति है जो उनके आह्नान पर जंतर-मंतर और रामलीला मैदान पहुंचती हैऋ कपिल सिब्बल के चुनाव-क्षेत्रा में जनमत संग्रह करवाती है और टीवी-अखबारों में जन लोकपाल विधेयक के पक्ष में ताल ठोकती है। नवउदारवाद की प्रयोगशाला में लोकशक्ति का आधार और मायने बदल गए हैं। जिन्हें नवउदारवादी सुरक्षा कवच प्राप्त है वे ही लोकशक्ति हैं। उन्हें रेहड़ी नहीं लगानी पड़ती, कचरा नहीं बीनना पड़ता, उनके बच्चे ढाबों पर बर्तन नहीं मांजते, उनकी औरतें कई-कई घरों में झाड़ू-पोंछा-बर्तन नहीं करतीं, उन्हें मलमूत्रा सफाई, कमरतोड़ फुटकर मजदूरी, कारीगरी, किसानी आदि नहीं करनी पड़ती। नवउदारवाद के सुरक्षा कवच के भीतर धन के स्रोतों की कमी नहीं रहती क्योंकि देश के संसाधनों की लूट में उनका कम-बत्ती हिस्सा तय है। उनके सब काम सरते हैं क्योंकि उनकी आपस में सघन नेटर्विंकग है। वे अंग्रेजी बोलते हैं या आगे चल कर बोलेंगे। लाख कर्ज हो जाए वे आत्महत्या की बात नहीं सोचते। उनकी जवानी का आलम कि चालीस और पचास पार करने पर भी वे युवा कहलाते हैं और युवाशक्ति को निर्देशित करते हैं।
अग्निवेश ने अपने भाषण में इसी 28-29 मई को हैदराबाद बनी सोशलिस्ट पार्टी का जिक्र किया। यह बताने के लिए कि भ्रष्ट राजनीति का मुकाबला राजनैतिक पार्टियां बना कर नहीं किया जा सकता। उनके मुताबिक कोई भी नवगठित राजनीतिक पार्टी राजनीतिक होने के नाते भ्रष्ट ही होगी। मंच पर उपस्थित जस्टिस राजेंद्र सच्चर ने उनसे कहा कि वे भ्रष्टाचार के विरु( संघर्ष को वास्तविक और व्यापक बनाने के लिए सोशलिस्ट पार्टी में शामिल होने की बाबत सोचें। अग्निवेश ने ऊंचे ओटले से जवाब दिया कि राजनीतिक पार्टी बनाना या उनमें शामिल होना भटके हुए लोगों का काम है। कुछ ‘भटके हुए’ लोगों के नाम भी उन्होंने उछाले कि ऐसे लोग चाहें तो सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हों।
मजेदारी यह है कि राजनीति को चरित्रातः भ्रष्ट मानने और बताने वाले ये लोग मनमोहन सिंह को परम ईमानदार और सोनिया गांधी को त्याग की देवी बताते हैं। नवउदारवाद की प्रयोगशाला में जो दो भावी प्रधानमंत्री तैयार हो रहे हैं - राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी - उनसे भी इन सबको कोई शिकवा-शिकायत नहीं होती है। खुद भी सब राज्यसभा जाने का सपना पाले रहते हैं और उसके लिए आपस में होड़ भी लगाते हैं। राजनीति के शीर्ष पर बैठे नेता प्रशंसा के पात्रा हैं, आप खुद पिछले दरवाजे से संसद में दाखिल होना चाहते हैं - फिर राजनीति को भ्रष्ट बताने का क्या अर्थ है?
जारी.......


