बहराइच। बहराइच के रुपइडीहा में हरित स्वराज की एक सभा में किसानों को आगाह किया गया कि वे पंजाब की तथाकथित हरित क्रांति से सबक लेते हुए समय पर चेत जाएं वर्ना इस अंचल की भी खेती किसानी तबाह हो जाएगी। हरित स्वराज की तरफ से ग्राम रामपुर में आयोजित इस सभा में बाद में तराई अंचल में परम्परागत बीजों के संरक्षण के लिए एक तराई बीज संरक्षण केंद्र बनाने का एलान भी किया गया। इसके लिए हरित स्वराज की तराई इकाई संसाधन जुटाएगी।
इस मौके पर कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने अपने सन्देश में कहा कि सुदूर गाँव में किसानों के सवाल पर इस तरह की पहल बहुत महत्पूर्ण है क्योंकि ज्यादातर कार्यशाला या गोष्ठी शहरों खासकर महानगरों में होती हैं जिसका वह प्रभाव किसानों पर नहीं पड़ता जो उनके बीच जाकर संवाद करने से पड़ता है। हरित स्वराज खेती किसानी और पर्यावरण पर ठोस पहल कर रहा है। जलवायु परिवर्तन 21 वीं सदी की सबसे बड़ी, संवेदनशील और मारक समस्याओं में एक है। हुदहुद जैसी त्रासदी इसकी बानगी है जो प्रकृति के अनावश्यक दोहन का नतीजा है। ऐसे में यह सभा किसानों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
सभा में बोलते हुए किसान नेता डॉ. सुनीलम ने कहा कि देश में खेती किसानी पर संकट के बदल मंडरा रहे हैं। आजादी के समय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) में किसानों की भागीदारी जो 52 फीसद थी वह अब घटकर 13 फीसद रह गई है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकार का लक्ष्य इसे छह फीसद तक पहुँचाना है। साफ़ है सरकार भूअर्जन और अन्य नीतियों के जरिए खेती किसानी और गाँव को तबाह करना चाहती है। इस मामले में ज्यादातर राजनैतिक दलों की नीतियां एक जैसी है। सभी दलों की विकास नीति का मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक शहर बसाना है। आजादी के बाद से औसतन एक करोड़ रुपया गाँव से शहर को जाता है। डॉ. सुनीलम ने कहा कि इस तरह प्रति वर्ष साढ़े छह लाख करोड़ रुपया प्रति वर्ष गाँव से शहर जाता है। इस सबके चलते शहर तो जगमगा रहा है और गाँवों में अँधेरा बढ़ता जा रहा है। अब तो किसानों का पैसा बैंकों के जरिए पूँजीपतियों को दिया जा रहा है।
हरित स्वराज ने तराई अंचल में सीमांत किसानों की बदहाली और खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक के बढ़ते इस्तेमाल पर किसानों को आगाह करने के लिए इस सभा का आयोजन किया था जिसमें आसपास से बड़ी संख्या में किसान परिवार पहुँचे थे। इस मौके पर वक्ताओं में पंजाब का उदाहरण देते हुए तराई अंचल के किसानों को आगाह भी किया। पंजाब में उर्वरकों और कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल से वहाँ भूमि की उर्वरा शक्ति पर बुरा असर पड़ा है और अब भूजल के जरिए यह आम आदमी को प्रभावित कर रहा है। भूजल में आर्सेनिक की मात्र तो बढ़ी ही है अन्य विषैले तत्व भी बढ़ते जा रहे हैं जिसके चले कैंसर जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है। अब वही सब तराई में दोहराया जा रहा है जो बहुत घातक है।
हरित स्वराज के संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि तराई अंचल में भी परम्परागत बीज अब ख़त्म होते जा रहे हैं। सांवा कोदो जैसे अब बहुत से उदाहरण हैं। अगर ये परम्परागत बीज ख़त्म हो गए तो कृषि क्षेत्र का बहुत बड़ा नुकसान होगा। इसलिए तराई अंचल में परम्परागत बीजों के संरक्षण के लिए हरित स्वराज ठोस पहल करने जा रहा है। यहाँ पर एक तराई बीज संरक्षण केंद्र बनाया जाएगा। हरित स्वराज के सरदार गुरनाम सिंह ने इस मौके पर एलान किया कि वे अब रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल पर अंकुश लगाते हुए प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने का प्रयास करेंगे। इसके लिए वे अंचल के किसानों की बैठक भी बुलाने जा रहे हैं।
जनादेश