उज्ज्वल भट्टाचार्या

इस चुनाव में भी भाजपा को मोदी बोनस मिला है। पहले से काफ़ी कम, लेकिन मिला है।

लेकिन बोनस ही मिला है, पगार नदारद है।

संगठन की जगह शाह का माइक्रो-मैनेजमेंट हावी है, पार्टी की संरचनाओं के साथ जिसका कोई संबंध नहीं बन पा रहा है।

आरएसएस की शाखायें बढ़ी हैं, लेकिन उसका आधार राजनीतिक कम, जातिगत और सांप्रदायिक अधिक है। भाजपा शासन में आने पर शाखायें बढ़ती हैं, और फिर काफ़ूर भी हो जाती हैं।

मोदी और शाह के अलावा और किसी नेता की न जनता में पूछ है, न पार्टी के अंदर। और इन दोनों नेताओं की साख तेज़ी से नीचे गिरती जा रही है।

पार्टी में किसी के अंदर हिम्मत नहीं है कि इन कारणों पर सोचे या बात करे। नागपुर की बौद्धिक क्षमता की भी पोल खुल गयी है।

दूसरे क्षेत्रों सहित राजनीति में भी भारत में युवा पीढ़ी का महत्व बहुत बढ़ गया है।

भाजपा के अलावा किसी दूसरे दल ने अभी तक इसे नहीं समझा है। उनके लिये यह कोई मुद्दा नहीं बना है।

लेकिन भाजपा भी युवा पीढ़ी के लिये राजनीति नहीं कर रही है, वह इस पीढ़ी को "मैनेज" कर रही है।

दो स्तरों पर युवा पीढ़ी भाजपा के साथ जुड़ी थी। अब भी कुछ हद तक जुड़ी हुई है।

लाखों रुपये खर्च करके डिग्री हासिल करने वाले मध्यवर्गीय युवा को विकास की नहीं, लेकिन आर्थिक वृद्धि की दर की फ़िक्र है। वह चाहता है कि ऐसी वृद्धि के ज़रिये मलाईदार कार्यस्थान बनाये जायं। मनमोहन से निराश होने के बाद उसे मोदी में आशा की एक किरण दिखी थी, अब भी दिख रही है।

मनमोहनी आर्थिक नीति के कारण करोड़ों युवा सड़क पर हैं। ये समाज के निचले वर्गों के हैं, अक्सर सवर्ण नहीं हैं। मोदी के एजेंडे में अर्थनीति के क्षेत्र में उनके लिये कुछ नहीं था। उनके लिये गुजरात 2002 के सोए हुए प्रेत को उत्तर भारत में लाया गया। उनके लिये

योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज, संगीत सोम गिरिराज सिंह हैं।

ये दोनों हिस्से अभी तक मोदी के साथ हैं। बिहार चुनाव से स्थिति में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया है।

लेकिन उनमें खलबली शुरू हो गई है। दिल्ली और बिहार के परिणाम बताते हैं कि समाज में दूसरे वर्ग भी हैं, उनकी लामबंदी काफ़ी कुछ हासिल कर सकती है।

मोदी संरचना का चरमराकर गिरना अभी बाकी है। संकट आना अभी बाकी है। उसके सिर्फ़ आभास मिल रहे हैं। लेकिन उनका आना कोई रोक नहीं सकता।

आने वाला समय बेहद महत्वपूर्ण होगा। ऐतिहासिक होगा।

भक्त एक-दूसरे को ढाँढस दिला रहे हैं कि सन 2010 भाजपा के मत प्रतिशत में वृद्धि हुई है।

अच्छी बात है। उन्हें ढाँढस की ज़रूरत है।

यह अलग बात है कि इस बार वे दोगुनी सीटों से चुनाव लड़ रहे थे।