नीरज कुमार
नई दिल्ली। 22 दिनों के नाटक वर्कशॉप के बाद कल "आहंग" ने डॉ. हिरण्य हिमकर के लेखन- निर्देशन में दो नाटकों का मंचन किया। पहला नाटक युवा कलाकारों के साथ 'जन्तर-मन्तर' और दूसरा बाल कलाकारों के साथ 'कहानी इलचीपुर की'। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लक्ष्मी शंकर वाजपेयी (पूर्व महानिदेशक आकाशवाणी और दूरदर्शन), डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी (एसोसियेट प्रोफ़ेसर, देशबन्धु कॉलेज, दलित चिंतक और लेखक) और डॉ.शारदा (वरिष्ठ प्रवक्ता NCERT)' जितेंद्र गौड़ (युवा रंगकर्मी) थे। मंच का संचालन आहंग के वरिष्ठ सदस्य व एडमिनिस्ट्रेटिव इंचार्ज महिलाल कैन ने किया।
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने कहा कि मैं 1982 के आस-पास से लगातार नाटक देख रहा हूँ। उस समय से अभी तक मैंने जितने नाटक देखें हैं, उनसे यह नाटक तली भर भी कम नहीं, बल्कि थोड़ा बेहतर ही हैं। नाटक के निर्देशक डॉ. हिरण्य हिमकर को उन्होंने बधाई दी।
डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी ने कहा कि जिस वैचारिकी और थीम को लेकर लेखक और निर्देशक ने नाटक बनाया है, वो काबिले तारीफ है। डॉ. शारदा ने बाल कलाकारों के उत्साह और जज्बे को सलाम करते हुए उनके अभिभावकों को धन्यवाद दिया कि उन्होंने अपने बच्चों को नाटक करने के लिए प्रोत्साहित किया।

मुक्तिबोध की एक पंक्ति है.....
सब चुप, साहित्यिक चुप और कविजन निर्वाक्
चिंतक, शिल्पकार, नर्तक चुप है!
उनके ख्याल में यह सब गप है
मात्र किवदंती।
रक्तपायी वर्ग से नाभिनाल-बद्ध ये सब लोग
नपुंसक भोग-शिरा-जालों में उलझें।

लेकिन आहंग के निर्देशक चुप नहीं हैं।
'जन्तर-मन्तर' और 'कहानी इलचीपुर की' के माध्यम से तिरस्कार, महिलाओं के साथ हो रहे भेद-भाव, दलित और गरीबो की आवाज को कुचले जाने, जमीन की छीन कर पूंजीपतियों को दिए जाने और बड़े-बड़े सपने दिखाकर जनता के साथ विश्वासघात करने तक की बात उठाई जाती हैं। जन्तर-मन्तर को सभी धरना प्रदर्शन स्थल के रूप में जानते है जो स्वतंत्र राष्ट्र-राज्य की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक माध्यम भी है। जहाँ आवाजें दबाई, कुचली जाती रही हैं। इन अभिव्यक्तियों को निर्देशक नाटक के माध्यम से दर्शकों तक लाता है।
नवज्योति, ऋतिका गुप्ता, खुमेश्वर, विजय कुमार, विशाखा, सुमित कुमार पाण्डेय, चाँद बाबू, नारायण हेगड़े, रोहित शर्मा, प्रियंका सिंह और रोशन कुमार सिंह ने नाटक में न सिर्फ बढ़िया एक्टिंग किया है बल्कि जन्तर-मन्तर पर उठने वाली आवाज में अपनी आवाज मिलाते नजर आते हैं।
'कहानी इलचीपुर की' नाटक नहीं मौजूदा राजनीति पर करारा व्यंग्य है। मौजूद राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार की कलई खोलता है। बच्चों के साथ इतना वैचारिक राजनीतिक नाटक करने के पीछे निर्देशक की सोच यह प्रतीत होता है कि जब देश के बड़े राजनीतिक कदाचार से नहीं निबट पा रहे हैं तो बच्चों द्वारा ही उनकी आँखे खोली जाए।
26 बाल कलाकारों के साथ 'कहानी इलचीपुर की' तैयार किया गया है। जिसमें परिधि शर्मा, पार्थ भाटिया, मयंक गर्ग, विवेचना कैन, आकृति गुप्ता, निष्कर्ष अग्रवाल, रजत, सम्यता, सम्यक पार्थ, रिदम शर्मा, श्रुति, वैभव, ईशा, इश्वीन कौर, वाणी गुप्ता, पर्णिका खण्डेलवाल, प्रियांशी खण्डेलवाल, दिव्यांश, आकार गुप्ता, कुश गुप्ता, आर्वी गुप्ता, प्रांजल खण्डेलवाल, मनस, रूद्र, मीमांसा चौधरी और सत्येंद्र ने बखूबी अपनी कलाकारी से लोगो को अपनी बात सुनने पर मजबूर किया और उनकी आँखे खोली।

नाटक में म्यूजिक और गाने की बोल दिया आहंग के साथी स्वर्णजीत जी ने।
नाटक के अंत में सभी कलाकारों को सर्टिफिकेट और मोमेंटो प्रदान किया गया।
डॉ. प्रेम सिंह, डॉ. कुमकुम यादव, डॉ. अश्वनी कुमार, अशोक मनोरम, मनोरमा पाण्डेय और प्रणीता हिमकर का आभार व्यक्त किया गया।