नार्वे में सत्ता परिवर्तन, दक्षिणपंथी अर्ना सोलबर्ग बनेगीं प्रधानमंत्री
नार्वे में सत्ता परिवर्तन, दक्षिणपंथी अर्ना सोलबर्ग बनेगीं प्रधानमंत्री
शेष नारायण सिंह
ओस्लो,10 सितम्बर। नार्वे में दक्षिणपंथी कंज़रवेटिव पार्टी, होयरे की सरकार बनेगी। रात भर चली मतगणना में नार्वे की आयरन लेडी अर्ना सोलबर्ग की अगुवाई वाले गठबंधन ने इतनी सीटें जीत ली हैं कि अब प्रधानमंत्री येंस स्तूलतेंबर्ग के आठ साल की सरकार की विदाई हो गयी है। अति दक्षिणपंथी एफ आर पी यानी प्रोग्रेस पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने की अर्ना सोलबर्ग की राह में अब कोई अड़चन नहीं है। खासकर जब उनके साथ चुनाव अभियान के दौरान शामिल हुयी वेंस्तरे पार्टी और क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी ने साफ़ कर दिया है कि उन्होंने सत्ता बदलने की बात की थी और वे उसमें आड़े नहीं आयेगें। अर्ना सोलबर्ग का रास्ता बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि प्रोग्रेस पार्टी ने पूरे चुनाव में यह बात बार बार कही है कि वे प्रवासियों के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेंगे। वे अश्वेत प्रवासियों को नहीं आने देंगे और जो लोग भी सोमालिया,इथियोपिया और पाकिस्तान से आकर गैर कानूनी तरीकों से लोग रह रहे हैं उनको देश छोड़ने को मजबूर करेंगे।
गठबंधन सरकार की अपनी शर्तें होती हैं और सरकार उनके हिसाब से बनती है। नार्वे में सरकार बनाना राजनीतिक पार्टियों के लिये ज़रूरी इसलिये भी होता है कि यहाँ भारत की तरह संसद को भंग करने का विकल्प नहीं होता। कानून इस बारे में इतना सख्त है कि अब चुनाव 2017 के पहले नहीं हो सकता। अपने चुनावी वायदों में 52 साल की राजनेता, अर्ना सोलबर्ग ने दावा किया था कि अगर उनकी सरकार आ गयी तो वे टैक्स के रेट में भारी कमी करेंगी, पेट्रोलियम पर केन्द्रित अर्थव्यवस्था को अन्य क्षेत्रों में भी ले जाया जायेगा, कुछ सरकारी कम्पनियों का निजीकरण करेंगी और डॉ. मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्र की किताब से कुछ सबक निकालेंगी और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को और ताक़तवर बनायेंगी और इस तरह से नार्वे के कल्याणकारी राज्य के स्वरूप में भारी बदलाव करेंगी। अर्ना सोलबर्ग की सरकार बनने के साथ साथ प्रवासी समुदाय में चिंता साफ़ नज़र आने लगी है क्योंकि जब 2001 से 2005 तक अर्ना सोलबर्ग मंत्री थीं तो उन्होंने प्रवासी नियम कानून बहुत सख्त कर दिया था। अब तो उनको प्रोग्रेस पार्टी का सहयोग भी लेना है इसलिये एशिया और अफ्रीका से आने वाले प्रवासियों के लिये अब मुश्किल पेश आयेगी।
अर्ना सोलबर्ग नार्वे की दूसरी महिला प्रधानमंत्री बनेगीं। इसके पहले 1980 में बरु हार्लेम ग्रुन्तलैंड प्रधानमंत्री रह चुकी हैं जो बाद में संयुक्त राष्ट्र में भी बड़े पद पर गयी थीं। यहाँ महिलाओं को सबसे पहले वोट देने का अधिकार मिला था इसलिये नार्वेजी समाज में महिलाओं की बहुत इज्ज़त है। ऐसा लग रहा है कि अर्ना सोलबर्ग के मंत्रिमंडल में चोटी के तीन पदों पर महिलायें ही होंगीं। प्रोग्रेस पार्टी और वेस्न्तरे पार्टी की नेता महिलायें ही हैं और उनका सरकार में शामिल होना निश्चित माना जा रहा है।
नार्वे की अर्थव्यवस्था यूरोप में बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि फालतू खर्च न करके देश ने पिछले दशक में यूरोप में चल रही आर्थिक संकट की स्थिति से अपने आपको बचाकर रखा हुआ है। नार्वे के कब्जे में नार्थ सी में जो पेट्रोलियम का भण्डार है उसके चलते नार्वे बहुत ही सम्पन्न देश है। इस बात का अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि नार्वे की प्रति व्यक्ति आय एक लाख अमरीकी डालर मानी जाती है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है, शायद तेल की सम्पदा के कारण बहरीन में भी इस से ज़्यादा पर कैपिटा आमदनी है लेकिन मानवाधिकार के बारे में वे बहुत पीछे हैं।
अब सरकार बनने का कठिन काम शुरू होगा और नई सरकार 9 अक्टूबर को काम शुरू कर देगी लेकिन अर्ना सोल्बर्ग की कठिनाई अब शुरू हो रही है। सबसे पहले तो प्रोग्रेस पार्टी की नेता, सीव येन्सन को अपनी राजनीति के करीब लाना होगा क्योंकि वे और उनकी पार्टी बहुत ही ज़बरदस्त तरीके से विदेशों से आकर बसने वालों पर अभियान चला रही थीं।। हालाँकि उन्होंने चुनाव के बाद साफ़ नज़र आ रहे परिवर्तन के मद्दे नज़र कल ही कह दिया था कि सरकार चलाने के लिये एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाया जायेगा। प्रोग्रेस पार्टी पहली बार सरकार में शामिल हो रही है और वह बहुत मुश्किल सहयोगी साबित हो सकती है। प्रोग्रेस पार्टी को साधना बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि उसका इतिहास एक असहिष्णु राजनीतिक जमात का रहा है। इस पार्टी के सदस्य ऐन्डर्स बेहरिंग ब्रीविक ने 2011 में बम से हमला करके 77 राजनीतिक विरोधियों की हत्या कर दी थी। इन दोनों पार्टियों की सरकार को क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक या वेंस्तरे पार्टी का सहयोग लिये बिना बहुमत नसीब नहीं होगा लेकिन वे प्रोग्रेस पार्टी के प्रवासी मामलों के रुख से बहुत नाराज़ हैं। अगर यह दोनों छोटी पार्टियाँ सरकार में शामिल न हुयीं तो अर्ना सोलबर्ग को एक अल्पसंख्यक सरकार चलानी पड़ सकती है जो कि ख़ासा मुश्किल काम हो सकता है।


