निगरानी हो रही चप्पे-चप्पे पर कि कातिल बेहद हरकत में हैं और जमाना सो रहा
निगरानी हो रही चप्पे-चप्पे पर कि कातिल बेहद हरकत में हैं और जमाना सो रहा
निगरानी हो रही चप्पे-चप्पे पर कि कातिल बेहद हरकत में हैं और जमाना सो रहा है।
मजहब नफरत का, सियासत कातिल, हुकूमत फौजी और बाजार खुल्लाताला?
कयामत का इससे बड़ा कोई रसायन हो तो बताइये!
बंटवारा फिर जीने लगे हैं हम, वरना दिलों की दास्तां वही और खुशबू महब्बत की वही वही!
हमने किसी से कहा नहीं कभी कि मुहब्बत है, यकीन कर लें
न किसी ने हमसे कहा है कि मुहब्बत है, यकीन कर लें
हम फिर वहीं बंटवारे के वारिसान है लावारिस हर तरफ
इसीलिए खूनखराबा दहशतगर्दी बेलगाम है हर तरफ
इसी लिए जंगी यह मजहबी जुनून सरहदों के आर-पार
कि फिर कत्ल हुआ है एक ब्लागर मजहब के नाम
पता नहीं पल-छिन पल-छिन कौन कहां मारा जा रहा है!
पता नहीं पल-छिन पल-छिन कहां खून बह रहा है!
किसी संतन को अब सीकरी से कोई काम नहीं
सियासत ही मजहब है, इंसानियत कहीं नहीं
जो अखंड हिंदू राष्ट्र का ऐलान कर रहे हैं हर तरफ
वे भी जंगी दहशतगर्द उसी तरह हैं, जो हम देख रहे हैं
इंसानियत का मुल्क बांट रहे हैं दुनिया में हर तरफ।
बांग्लादेश में 40 साल के एक धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर की उसके फ्लैट में गला काटकर निर्मम हत्या कर दी गई। देश में यह चौथे ब्लॉगर की हत्या हुई है। निलय नील की अज्ञात लोगों ने ढाका के उत्तरी गोरहान इलाके में हत्या की। उनका शव चौथी मंजिल स्थित उनके फ्लैट से बरामद किया गया।
बहरहाल इंडियन एक्सप्रेस की खबर हैः
Niloy Neel, another secular blogger, hacked to death in Bangladesh, fourth this year
Niloy Neel, a secular blogger, was hacked to death at his flat in Dhaka today by five machete-wielding assailants
- See more at: http://indianexpress.com/article/world/neighbours/another-secular-blogger-niloy-neel-hacked-to-death-in-bangladesh-fourth-this-year/#sthash.rS7quu7z.dpuf
शायद ओम थानवी के खिलाफ जारी मुहिम के जिम्मेदार भी हम हैं जो हमने खुल्ला ऐलान कर दिया कि आरएसएस के बाजारु हुकूमत के खिलाफ रीढ़ सिर्फ उन्हीं की साबूत है।
माफ कीजिये थानवी साहेब, हमारी मंशा यह कतई नहीं थी कि आपको पिटवाने का इंतजाम करें लोग इस तरह।
पिटवा न भी सकें तो पिटवाने की अफवाहें फैला सकें इस तरह।
हम भूल रहे थे कि कानून के नाम पर दरिंदगी का कारोबार हर कहीं फूल रहा है और मजहबी सियासत के आजादी किसी की सख्त नापसंद है जैसे सरहदों के आर-पार हर बार कहीं न कहीं मुहब्बत की शहादत हर किस्से का अंजाम है।
उन किस्सों के तमाम किरदार भी फिर हमीं हैं।
कत्ल जो हुआ, वह भी हम, और कातिल भी हम।
चूंकि इंसानियत का मुल्क में सन्नाटा है पसरा हुआ।
लोग अंधे भी हैं।
लोग बहरे भी हैं।
लोग गूंगे भी हैं।
उपभोक्ता हैं नागरिक।
भोग के लिए कुछ भी कटवा लें।
दिलों की दास्तां पर गौर करें तो कश्मीर में बहते खून की उमस से दिल फिर बेताब होगा और पंजाब की सारी नदियां फिर अनबंधी बहने लंगेगी मुल्कों के आर-पार और हिमालय का जख्म हर दिलोदिमाग में पिघलता ग्लेशियर होगा।
अगर अखंड होना है किसी मुल्क को तो मजहबी वह हो ननहीं सकता यकीनन। बंटवारे के किस्सों पर फिर गौर करें कि दंगाई मजहब ने कैसे कैसे बंटवारे को अंजाम दिया है।
किस्से तो फिर भी किस्से हैं, सरहदों के आर पार इतिहास भूगोल के दायरे, मजहब और पहचान के दायरे तोड़कर तनिक खड़े हो हकीकत की जमीं पर तो दिलों की दास्तां भी पढ़ लें दिलों की जुबां और हरफों पर न जायें, आवाज पहचान लें, चीखें फिर वहीं हैं, जो हमारी चीखें हैं हर बार, बार-बार हर कहीं। खून भी हमारा ही बह रहा।
बहुत दहशतजदा हूं कि बांग्लादेशी ब्लागरों का चेहरा अब न जाने किस किस के चेहरे पर चस्पां हो और डरता हूं कि पाकिस्तान को जो लोग नर्क बनाये हैं, वे ही लोग बांग्लादेश में हैं, फिर वे ही लोग नेपाल में भी खूब हरकत में हैं, श्रीलंका में भी वहीं लोग खड़े हैं तो गुजरात हो या पंजाब, कश्मीर हो या असम या फिर आदिवासी दलित भूगोल का कोई कोना है, पिर पिर वे ही हाथ रंगे हैं।
हम जानते थे कि अंदर ही अंदर क्या-क्या पक रहा है और कैसे कैसे लेआउट बन रहा है, कैसे कैसे कांटेंट बदल रहा कि सच को कैसे कैसे झूठ में बदला जा रहा है कि कत्लेआम की खातिर क्या-क्या मैनेजमेंट हैं कि डाउ कैमिकल्स के गुल कहां-कहां बहार हैं कि उंगलियों की छाप से लेकर डीएनए प्रोफाइलिंग जैसे बवासीर नासूर में तब्दील हैं कहां-कहां।
हमें यकीनन मालूम था कि थानवी हमारे दरम्यान रहेंगे नहीं और न हम कहीं होगें फिर यहां।
कि दोस्ती हमारी थी नहीं कभी, दुश्मनी भी थी नहीं कभी, फिर भी सच कहना बहुत जोखिम का है कि हमारे बीच जो भी लिख पढ़ रहे हैं मेहनतकशों के हकहकूक के लिए अब उन्हें भूमिगत आग बनकर जीना है कि खुशबू से भी कातिलों के निशाने सध जाते हैं इन दिनों और शब्दभेदी वाण भी हैं। निगरानी हो रही चप्पे-चप्पे पर कि कातिल बेहद हरकत में हैं और जमाना सो रहा है।
नील अपने फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहते थे। वह 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों को अंजाम देने वाले लोगों को मौत की सजा की मांग करने वाले समूह ‘गंजगारन मंच’ के कार्यकर्ता भी थे। गंजगारन मंच के प्रवक्ता इमरान एव सरकार ने कहा कि हमला फ्लैट में खुद को संभावित किरायेदार बताकर दाखिल हुए।
नील की हत्या से पहले फरवरी महीने में 45 साल के ब्लॉगर अविजीत रॉय की निर्मम हत्या कर दी गई थी। इसके बाद ब्लॉगर वशीकुर रहमान की हत्या की गई। अलकायदा से जुड़े संगठन ‘इंडियन सबकान्टिनेंट’ :एक्यूआईएस: ने धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगरों की हत्या की जिम्मेदारी ली थी।
कट्टरपंथी समूह ‘अंसार बांग्ला टीम’ ने भी इन हत्याओं की जिम्मेदारी ली थी। मंच के कार्यकर्ता तथा ब्लॉगर अहमद रजीब हैदर की दो साल पहले मीरपुर स्थित उनके आवास पर हत्या कर दी गई थी।
पलाश विश्वास


